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UPSC Prelims Topic – HISTORY
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प्रसंग:
सावित्रीबाई फुले की 194वीं जयंती (3 जनवरी) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर भारत की पहली महिला शिक्षिका को श्रद्धांजलि अर्पित की।
पृष्ठभूमि:
- सावित्रीबाई फुले, जो दलित समुदाय से थीं, का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव गांव में हुआ था।
- 10 वर्ष की उम्र में उनका विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ, जिन्होंने सावित्रीबाई को शिक्षित किया।
- दोनों ने मिलकर सामाजिक बंधनों को तोड़ते हुए एक-दूसरे का साथ दिया और समाज में सुधार के लिए कई कदम उठाए।
मुख्य बिंदु:
- महिलाओं की शिक्षा में क्रांति:
- उस समय जब महिलाओं की शिक्षा को अस्वीकार्य माना जाता था, सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने 1848 में पुणे के भिडेवाड़ा में देश का पहला बालिका विद्यालय खोला।
- उन्होंने शूद्रों और अति-शूद्रों के लिए भी स्कूल खोले, जिससे कुछ राष्ट्रवादियों, जैसे बाल गंगाधर तिलक, के बीच असंतोष पैदा हुआ।
- सामाजिक सुधार:
- बालहत्या प्रतिबंधक गृह (Balhatya Pratibandhak Griha): गर्भवती विधवाओं के लिए एक केंद्र, जो भेदभाव का सामना कर रही थीं। यह एक घटना से प्रेरित था, जहां एक ब्राह्मण विधवा को शिशु हत्या के लिए उम्रकैद की सजा मिली थी।
- सावित्रीबाई ने अंतरजातीय विवाह, विधवा पुनर्विवाह, बाल विवाह, सती प्रथा और दहेज प्रथा के उन्मूलन की वकालत की।
- सत्यशोधक समाज:
- 1873 में, फुले दंपत्ति ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जो जाति, धर्म और वर्ग से परे सभी के लिए समानता का मंच था।
- उन्होंने ‘सत्यशोधक विवाह’ की शुरुआत की, जिसमें ब्राह्मणवादी रीतियों को त्याग कर शिक्षा और समानता को बढ़ावा देने की शपथ ली जाती थी।
- काव्य और साहित्य:
- 1854 में, सावित्रीबाई ने 23 वर्ष की आयु में अपनी पहली काव्य संग्रह काव्य फुले प्रकाशित की।
- 1892 में उन्होंने बावन काशी सुबोध रत्नाकर प्रकाशित की।
- साहस और सेवा का जीवन:
- 28 नवंबर, 1890 को अपने पति ज्योतिराव के अंतिम संस्कार में, सावित्रीबाई ने परंपराओं को तोड़ते हुए अंतिम संस्कार का नेतृत्व किया और उनकी चिता को अग्नि दी।
- 1896 के अकाल और 1897 के बुबोनिक प्लेग के दौरान उन्होंने राहत कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- बीमार बच्चे को अस्पताल ले जाते समय वह खुद प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च, 1897 को उनका निधन हो गया।
निष्कर्ष:
सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा, साहित्य और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह आज भी प्रेरणादायक है। उनका जीवन साहस, करुणा और सेवा का प्रतीक है, जिसने सामाजिक बंधनों को तोड़कर देश में समानता और शिक्षा की अलख जगाई।
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