भारतीय रुपये का अवमूल्यन:
हाल के महीनों में भारतीय रुपये में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरावट दर्ज की गई है। रुपया जनवरी 2025 में 86.63 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंचा। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है। इस लेख में रुपये की गिरावट के कारणों, प्रभावों, और समाधान की चर्चा की गई है, साथ ही UPSC के दृष्टिकोण से इससे संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं को भी शामिल किया गया है।
रुपये की गिरावट के प्रमुख कारण
- वैश्विक कारक:
- अमेरिकी डॉलर की मजबूती: अमेरिका की सख्त मौद्रिक नीति और मजबूत आर्थिक संकेतकों ने डॉलर को मजबूती दी है, जिससे अन्य मुद्राओं पर दबाव बढ़ा।
- कच्चे तेल की ऊंची कीमतें: भारत, जो अपनी तेल आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है, को बढ़ते आयात बिल का सामना करना पड़ा।
- विदेशी पूंजी निकासी: विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से बड़ी मात्रा में पूंजी निकाली, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ा।
- आंतरिक कारक:
- चालू खाता घाटा (CAD): भारत का आयात-निर्यात असंतुलन रुपये को कमजोर करता है।
- निर्यात में स्थिरता: निर्यात में अपेक्षित वृद्धि न होने से रुपये की मांग में कमी आई।
रुपये की गिरावट के प्रभाव
नकारात्मक प्रभाव:
- मुद्रास्फीति में वृद्धि:
कमजोर रुपये के कारण आयातित वस्तुएं जैसे पेट्रोलियम, इलेक्ट्रॉनिक्स, और खाद्य तेल महंगे हो गए, जिससे महंगाई बढ़ने का खतरा है। - विदेश यात्रा और पढ़ाई महंगी:
भारतीय छात्रों और यात्रियों के लिए विदेशी खर्च बढ़ गया। - विदेशी कर्ज का बोझ:
डॉलर में लिए गए ऋण का भुगतान महंगा हो गया है।
सकारात्मक प्रभाव:
- निर्यातकों को लाभ:
रुपये की कमजोरी से भारतीय वस्तुएं अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ती हो गई हैं, जिससे निर्यातकों को फायदा हुआ। - IT और सेवा क्षेत्र का लाभ:
सॉफ्टवेयर सेवाओं और IT उद्योग को डॉलर में भुगतान होने के कारण फायदा हुआ।
UPSC दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बिंदु
1. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- 1991 के आर्थिक संकट के बाद रुपये का मूल्य निर्धारण बाज़ार की मांग और आपूर्ति के आधार पर किया जाने लगा।
- 2013 में “तपेर टैंट्रम” के दौरान रुपये में तेज गिरावट हुई थी।
2. आर्थिक अवधारणाएं:
- चालू खाता घाटा (CAD):
आयात और निर्यात का असंतुलन रुपये को कमजोर करता है। - भुगतान संतुलन (BoP):
विदेशी निवेश और पूंजी प्रवाह रुपये की स्थिरता को प्रभावित करते हैं। - फॉरेक्स रिजर्व (विदेशी मुद्रा भंडार):
RBI इसका उपयोग मुद्रा को स्थिर रखने के लिए करता है।
3. वैश्विक परिप्रेक्ष्य:
- चीन का दृष्टिकोण:
चीन अपनी मुद्रा को कमजोर रखता है ताकि निर्यात को बढ़ावा मिल सके। - भारत का दृष्टिकोण:
भारत को अपने आयात-निर्यात में संतुलन बनाते हुए रुपये की स्थिरता बनाए रखनी होगी।
रुपये को स्थिर करने के लिए समाधान
- विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन:
भारतीय रिजर्व बैंक को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। - आयात निर्भरता कम करना:
ऊर्जा में आत्मनिर्भरता और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना। - निर्यात प्रोत्साहन:
मेक-इन-इंडिया और उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को मजबूत करना। - नीतिगत सुधार:
विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए लचीली नीतियां अपनाना।
भविष्य की संभावनाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये में और गिरावट संभव है। अगर वर्तमान आर्थिक परिस्थितियां जारी रहती हैं, तो आने वाले महीनों में रुपया और कमजोर हो सकता है। सरकार और रिजर्व बैंक को इन चुनौतियों से निपटने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियां अपनानी होंगी।
निष्कर्ष
भारतीय रुपये का अवमूल्यन एक जटिल मुद्दा है, जो कई आंतरिक और बाहरी कारकों से प्रभावित होता है। हालांकि यह अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां प्रस्तुत करता है, लेकिन यह निर्यातकों और आत्मनिर्भरता की दिशा में अवसर भी प्रदान करता है।
UPSC के लिए संभावित प्रश्न
- प्रत्यक्ष प्रश्न:
- “रुपये के अवमूल्यन के कारणों और प्रभावों की व्याख्या करें।”
- “रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने के लिए सरकार और RBI के प्रयासों का मूल्यांकन करें।”
- अप्रत्यक्ष प्रश्न:
- “मुद्रा अवमूल्यन का चालू खाता घाटा (CAD) पर प्रभाव।”
- “रुपये की कमजोरी का भारतीय IT और सेवा क्षेत्र पर प्रभाव।”
- निबंध (Essay):
- “भारतीय रुपये का अवमूल्यन: चुनौती और अवसर।”
- “वैश्विक बाजार में रुपये की स्थिति और भारत की आर्थिक नीतियां।”
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