राष्ट्रपति और राज्य विधेयक
President and State Bills
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में तमिलनाडु राज्य द्वारा पारित उस विधेयक को स्वीकृति देने से इनकार कर दिया है, जिसमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु NEET परीक्षा से छूट प्रदान करने की मांग की गई थी। यह घटनाक्रम राज्य विधायिकाओं और केंद्र के बीच विधायी शक्तियों के संतुलन पर एक बार फिर चर्चा को जन्म देता है।
संवैधानिक प्रावधान: राष्ट्रपति और राज्य विधेयकों के संबंध में
• भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 राष्ट्रपति की भूमिका को स्पष्ट करते हैं जब राज्य विधानमंडल कोई विधेयक पारित करता है।
• राज्यपाल जब किसी विधेयक को “राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु आरक्षित” करता है, तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं:
- विधेयक को स्वीकृति देना
- विधेयक को अस्वीकृत करना
- विधेयक को पुनर्विचार हेतु राज्य विधानमंडल को लौटाना
तमिलनाडु NEET छूट विधेयक – पृष्ठभूमि
• तमिलनाडु सरकार ने NEET (National Eligibility cum Entrance Test) से छूट प्रदान करने हेतु विधेयक पारित किया था ताकि राज्य की उच्चतर माध्यमिक शिक्षा प्रणाली के छात्रों को लाभ मिल सके।
• राज्य का तर्क है कि NEET ग्रामीण, सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के साथ भेदभाव करता है।
• यह विधेयक पहले 2021 में पारित हुआ था और राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया था।
राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकृति – प्रभाव और निहितार्थ
• राष्ट्रपति की अस्वीकृति संविधानिक व्यवस्था में केंद्र के प्रभुत्व को रेखांकित करती है, खासकर शिक्षा जैसे समवर्ती विषयों में।
• यह राज्यों की स्वायत्तता पर प्रश्न खड़े करता है, खासकर तब जब राज्य अपनी जनसंख्या के हितों को देखते हुए निर्णय लेना चाहते हैं।
• यह उदाहरण एक “केंद्रीयकृत संघवाद” (Centralised Federalism) की ओर संकेत करता है।
महत्त्वपूर्ण शब्द – नोट के साथ
• अनुच्छेद 200: राज्यपाल राज्य विधानमंडल से पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है।
• अनुच्छेद 201: राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकृति, अस्वीकृति या पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है।
• NEET: अखिल भारतीय स्तर पर मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के लिए आवश्यक परीक्षा।
• Concurrent List (समवर्ती सूची): वह विषय सूची जिस पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। शिक्षा इसी में आती है।
संवैधानिक विश्लेषण
केंद्रीय दृष्टिकोण:
• शिक्षा एक समवर्ती विषय है, इसीलिए केंद्र को यह अधिकार प्राप्त है कि वह एकरूप प्रवेश प्रणाली लागू करे।
• NEET के माध्यम से मेडिकल शिक्षा में समानता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है।
राज्य दृष्टिकोण:
• राज्यों को अपने क्षेत्रीय सामाजिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।
• क्षेत्रीय असमानताओं को ध्यान में रखते हुए राज्यों को छूट की अनुमति मिलनी चाहिए।
समाजशास्त्रीय और विधिक विश्लेषण
• NEET की अनिवार्यता ने ग्रामीण और गैर-कोचिंग आधारित छात्रों के लिए प्रतियोगिता कठिन कर दी है।
• यह सामाजिक न्याय और समान अवसर की भावना के खिलाफ प्रतीत होता है।
• राज्य द्वारा पारित विधेयक का अस्वीकृत होना संविधान की संघीय भावना को चुनौती देता है।
वर्तमान उदाहरण: अन्य राज्य विधेयकों की स्थिति
राज्य | विधेयक | राष्ट्रपति की स्थिति |
---|---|---|
तमिलनाडु | NEET छूट विधेयक | अस्वीकृत |
केरल | यूनिवर्सिटी चांसलर पर राज्य सरकार का नियंत्रण | निर्णय लंबित |
पंजाब | कृषि विधेयकों की निरस्तीकरण हेतु कानून | निर्णय लंबित या अस्वीकृत |
विधायी प्रक्रिया में सुधार के सुझाव
• राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय की समय सीमा सुनिश्चित होनी चाहिए
• राज्यपालों को राजनीतिक आधार पर विधेयक को लंबित नहीं रखना चाहिए
• समवर्ती विषयों पर राज्यों की राय और अनुकूलन की स्वतंत्रता होनी चाहिए
निष्कर्ष
यह मामला स्पष्ट करता है कि भारत में संघीय व्यवस्था के बावजूद, राज्यों की विधायी स्वायत्तता सीमित है, खासकर जब बात शिक्षा जैसे समवर्ती विषय की हो। राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों की अस्वीकृति को न्यायिक समीक्षा के अधीन रखा जाना चाहिए, ताकि संघीय संतुलन बना रहे।
[UPSC परीक्षा प्रासंगिक बिंदु]
• अनुच्छेद 200 और 201 की व्याख्या
• समवर्ती सूची और संघीय संरचना
• NEET परीक्षा और सामाजिक न्याय
• राज्यपाल और राष्ट्रपति की विधायी भूमिका
• संघवाद बनाम केंद्रीकरण – भारत का अनुभव
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