जनप्रियतावाद (Populism) और सुशासन (Good Governance)
समाचार में क्यों?
• भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने लोकतंत्र से “इमोक्रेसी” (Emocracy) की ओर बढ़ते झुकाव पर राष्ट्रीय बहस की आवश्यकता पर बल दिया।
• उन्होंने कहा कि भावनात्मक रूप से संचालित नीतियाँ और विमर्श सुशासन के लिए खतरा बन सकते हैं।
जनप्रियतावाद (Populism) क्या है?
• जनप्रियतावाद (Populism) एक राजनीतिक दृष्टिकोण है, जिसमें नेता आम जनता की भावनाओं और इच्छाओं को प्राथमिकता देते हैं, भले ही इससे संस्थागत मूल्यों, कानूनों और दीर्घकालिक नीतियों पर असर पड़े।
• यह अक्सर संवेदनशील मुद्दों, भावनात्मक नारों और तत्काल राहत की रणनीतियों पर आधारित होता है।
• जनप्रियतावादी नेता आमतौर पर जनता को “हम बनाम वे” के आधार पर विभाजित करते हैं, जहाँ वे खुद को जनता का रक्षक और अभिजात्य वर्ग (Elite) का विरोधी बताते हैं।
जनप्रियतावाद और सुशासन के बीच अंतर
आधार | जनप्रियतावाद (Populism) | सुशासन (Good Governance) |
---|---|---|
नीति निर्माण | अल्पकालिक, भावनात्मक निर्णय | दीर्घकालिक, सुविचारित नीति |
सार्वजनिक भागीदारी | भीड़ के प्रभाव में निर्णय | लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से निर्णय |
न्यायपालिका और संस्थाएँ | संस्थानों की अनदेखी, त्वरित समाधान | संस्थाओं का सम्मान, संवैधानिक प्रक्रिया |
आर्थिक प्रभाव | मुफ्त सुविधाएँ, राजकोषीय बोझ | आर्थिक स्थिरता, टिकाऊ विकास |
राजनीतिक रणनीति | विभाजनकारी नीतियाँ, जनभावना को भड़काना | समावेशी विकास, समाज की समृद्धि |
जनप्रियतावाद के खतरे
• संस्थानों और कानूनों की अनदेखी: त्वरित लोकप्रियता के लिए सरकारें न्यायपालिका, मीडिया और स्वतंत्र संस्थाओं की स्वायत्तता को कमजोर कर सकती हैं।
• अल्पकालिक लाभ, दीर्घकालिक हानि: मुफ्त योजनाएँ और भावनात्मक निर्णय अल्पकालिक लाभ देते हैं, लेकिन दीर्घकालिक आर्थिक संकट उत्पन्न कर सकते हैं।
• ध्रुवीकरण (Polarization): जनप्रिय नेता समाज को विभाजित करने वाली नीतियों और नारों का सहारा लेते हैं।
• लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास: भावनात्मक रूप से संचालित शासन जनमत संग्रह (Referendum) और भीड़तंत्र (Mobocracy) की ओर ले जा सकता है।
सुशासन (Good Governance) के तत्व
• जवाबदेही (Accountability): सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।
• पारदर्शिता (Transparency): नीतियों और निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ स्पष्ट होनी चाहिए।
• कानून का शासन (Rule of Law): सभी नागरिकों के लिए समान न्याय प्रणाली होनी चाहिए।
• न्यायसंगत विकास (Inclusive Growth): सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना।
• भागीदारी (Participation): जनता की राय और सहमति से नीतियों का निर्माण।
निष्कर्ष:
लोकतंत्र और सुशासन को संविधान, संस्थानों और दीर्घकालिक नीतियों पर आधारित होना चाहिए, न कि केवल अल्पकालिक भावनात्मक मुद्दों पर।
जनप्रियतावाद भले ही तत्काल लोकप्रियता दिलाए, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता और विकास के लिए सुशासन ही आवश्यक है।
इसलिए, नीतियों को जनभावनाओं और तर्कसंगत शासन के बीच संतुलन बनाकर बनाया जाना चाहिए।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 2:
• शासन और सुशासन (Governance and Good Governance)।
• लोक प्रशासन और लोकतांत्रिक संस्थाएँ।
• जनप्रियतावाद और उसकी राजनीति पर प्रभाव।
GS Paper 4 (नैतिकता):
• नीति निर्माण और नैतिक दुविधाएँ।
• जवाबदेही और पारदर्शिता।
• लोक प्रशासन में नैतिकता और मूल्यों की भूमिका।
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