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प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति राहत कोष (PM CARES Fund) – Current Event | UPSC

संदर्भ:

प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति राहत कोष (PM CARES Fund) में योगदान वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान घटकर ₹912 करोड़ हो गया, जो मार्च 2020 में COVID-19 महामारी के बाद बनाए गए सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट के गठन के बाद सबसे कम है।

पृष्ठभूमि:

PM CARES Fund वेबसाइट पर उपलब्ध ऑडिटेड विवरणों के अध्ययन से पता चलता है कि स्वैच्छिक योगदान 2020-21 में ₹7,184 करोड़ के उच्चतम स्तर पर था। इसके बाद 2021-22 में ₹1,938 करोड़ तक गिर गया और 2022-23 में कोविड संकट के 2021 के बाद कम होने के कारण इसमें और कमी आई।

मुख्य बिंदु:

  1. PM CARES Fund का गठन:
    • 28 मार्च 2020 को सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में पंजीकरण अधिनियम, 1908 के कानूनी ढांचे के तहत स्थापित किया गया।
    • इसका उद्देश्य आपातकालीन स्थितियों, जैसे स्वास्थ्य संकट, प्राकृतिक आपदाओं और अन्य संकट स्थितियों में राहत प्रदान करना है।
  2. ट्रस्टी:
    • प्रधानमंत्री कोष के अध्यक्ष हैं।
    • पदेन ट्रस्टी (Ex-officio Trustees): रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री।
    • ट्रस्टी बोर्ड का अध्यक्ष (प्रधानमंत्री) तीन ट्रस्टियों को नामांकित करने का अधिकार रखता है, जो अनुसंधान, स्वास्थ्य, विज्ञान, सामाजिक कार्य, कानून, लोक प्रशासन और परोपकार के क्षेत्र में प्रख्यात व्यक्ति हों।
    • नामांकित ट्रस्टी प्रो बोनो (नि:स्वार्थ) आधार पर कार्य करेंगे।
  3. स्वैच्छिक योगदान:
    • यह कोष व्यक्तियों, संगठनों और विदेशी दाताओं से स्वैच्छिक योगदान स्वीकार करता है और इसे किसी प्रकार का बजटीय समर्थन नहीं मिलता।
    • PM CARES Fund में दान आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80G के तहत 100% छूट के लिए पात्र हैं।
    • ये दान कंपनियों अधिनियम, 2013 के तहत कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) व्यय के रूप में भी गिने जाते हैं।
  4. विदेशी योगदान:
    • यह कोष विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत छूट प्राप्त है, जिससे यह विदेशी व्यक्तियों और संगठनों से दान स्वीकार कर सकता है।
  5. प्रशासनिक लागत:
    • कोई प्रशासनिक व्यय नहीं काटा जाता है; पूरा योगदान राहत कार्यों में उपयोग किया जाता है।
  6. गैर-सरकारी स्थिति:
    • यह कोष सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत “सार्वजनिक प्राधिकरण” नहीं माना जाता, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही पर बहस छिड़ी है।

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