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Paris Agreement – Prelims Pointer 2025

Paris Agreement

पेरिस समझौता:

पेरिस समझौता 2015 में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता है। यह समझौता ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने और हरित ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक स्तर पर देशों को जोड़ता है।


पेरिस समझौते के उद्देश्य

  1. ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करना:
    • औसत वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2°C से कम तक सीमित करना।
    • 1.5°C तक तापमान वृद्धि को सीमित करने का प्रयास करना, जो अधिक संवेदनशील देशों के लिए जरूरी है।
  2. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी:
    • देशों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्ष्य (NDCs – Nationally Determined Contributions) निर्धारित करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि वैश्विक उत्सर्जन 2050 तक नेट-जीरो (Net Zero) हो।
  3. वित्तीय सहायता:
    • विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
    • हर साल $100 बिलियन का फंड जुटाने का लक्ष्य।
  4. जलवायु अनुकूलन:
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित करना।
    • विकासशील और कमजोर देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।

भारत की भूमिका

  1. उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य:
    • 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करना।
    • 50% ऊर्जा उत्पादन को नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य।
  2. हरित ऊर्जा का विस्तार:
    • भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक देश बन गया है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की स्थापना भारत द्वारा की गई।
  3. कार्बन सिंक:
    • 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन CO2 के बराबर कार्बन सिंक बनाने का लक्ष्य।
    • वृक्षारोपण और वन संरक्षण को बढ़ावा देना।

हालिया घटनाक्रम

  1. जलवायु आपातकाल:
    • 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष घोषित किया गया।
    • समुद्र के स्तर में वृद्धि और ग्लेशियर पिघलने से अधिक खतरे सामने आए हैं।
  2. नेट जीरो की ओर प्रयास:
    • कई देशों ने 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है।
    • भारत ने 2070 तक नेट-जीरो का वादा किया है।
  3. विकसित और विकासशील देशों के बीच विवाद:
    • विकसित देशों से वादा किया गया वित्तीय सहयोग अभी तक पूरी तरह से नहीं मिला।
    • जलवायु न्याय (Climate Justice) की मांग जोर पकड़ रही है।
  4. कार्बन क्रेडिट और व्यापार:
    • कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कार्बन क्रेडिट का व्यापार बढ़ रहा है।

पेरिस समझौते के महत्व

  1. जलवायु परिवर्तन से लड़ाई का आधार:
    • यह पहली बार है जब लगभग सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने के लिए एकजुटता दिखाई है।
  2. स्थिरता और हरित विकास:
    • नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
  3. भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रयास:
    • ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को कम करके पृथ्वी को एक सुरक्षित जगह बनाने का प्रयास।

निष्कर्ष

पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक मील का पत्थर है। हालाँकि, इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी देशों को अपनी प्रतिबद्धताओं पर तेजी से काम करना होगा। विकसित देशों को वित्तीय सहायता और तकनीकी समर्थन में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना होगा। यह समझौता न केवल पर्यावरण के संरक्षण का मुद्दा है, बल्कि यह एक स्थायी और समावेशी विकास का मार्ग भी प्रदान करता है।


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