ओंगोल नस्ल की गाय (Ongole Cattle): गिरती संख्या और वैश्विक पहचान
समाचार में क्यों?
• ओंगोल गाय की जनसंख्या भारत में घट रही है, जबकि ब्राज़ील जैसे देशों में इसकी संख्या और प्रतिष्ठा लगातार बढ़ रही है।
• यह चिंता का विषय है क्योंकि ओंगोल नस्ल भारतीय पशुपालन विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ओंगोल नस्ल की गाय: एक परिचय
• ओंगोल गाय (Ongole Cattle) भारत की एक देशी गाय की नस्ल है, जिसका मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में पालन किया जाता है।
• इसे इसकी शक्ति, सहनशक्ति और उच्च दूध उत्पादन क्षमता के लिए जाना जाता है।
• इस नस्ल का विशेष रूप से बैलों के रूप में कृषि कार्य और पशुपालन में उपयोग किया जाता है।
ओंगोल गाय की विशेषताएँ
• मजबूत शरीर – इस नस्ल की गायें और बैल बेहद शक्तिशाली और मेहनती होते हैं।
• ऊष्मा सहनशीलता – यह नस्ल गर्म और आर्द्र जलवायु में जीवित रहने में सक्षम है।
• बीमारियों से सुरक्षा – इनमें कई सामान्य पशु रोगों के प्रति प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता होती है।
• दूध उत्पादन – यह नस्ल औसतन 1,500 से 2,500 लीटर तक दूध देती है, जो भारतीय परिस्थितियों में अच्छा माना जाता है।
• कृषि उपयोग – ओंगोल बैल कृषि और गाड़ियों को खींचने के लिए आदर्श माने जाते हैं।
ब्राजील में ओंगोल गाय की बढ़ती लोकप्रियता
• ब्राजील ने 19वीं और 20वीं शताब्दी में भारत से ओंगोल नस्ल की गायों का आयात किया और वहां इनका पालन अत्यधिक वैज्ञानिक तरीके से किया गया।
• ब्रीडिंग तकनीकों और अनुकूलन से ब्राजील में यह नस्ल अधिक उन्नत हो गई।
• ब्राजील में यह नस्ल “Nellore” नाम से प्रसिद्ध है और वहाँ के मांस उद्योग के लिए बेहद महत्वपूर्ण बन चुकी है।
• ब्राजील ओंगोल नस्ल के उन्नत जेनेटिक्स के साथ व्यापार भी कर रहा है, जिससे उनकी पशुधन अर्थव्यवस्था को बड़ा लाभ हुआ है।
भारत में ओंगोल गाय की घटती संख्या के कारण
• क्रॉस ब्रीडिंग का प्रभाव – भारतीय किसानों ने अधिक दूध देने वाली विदेशी गायों (जैसे होल्सटीन फ्रिज़ियन और जर्सी) के साथ क्रॉस ब्रीडिंग शुरू कर दी।
• व्यावसायीकरण की कमी – भारत में ओंगोल नस्ल के संवर्धन और अनुसंधान पर उतना ध्यान नहीं दिया गया।
• शहरीकरण और चरागाहों की कमी – पशुपालकों के लिए चराई की भूमि और संसाधनों की उपलब्धता कम हो रही है।
• बाजार की कम माँग – आधुनिक डेयरी उद्योग अधिक दूध देने वाली विदेशी नस्लों को प्राथमिकता देता है।
• सरकारी संरक्षण की कमी – देशी नस्लों के संरक्षण के लिए पर्याप्त योजनाएँ नहीं चलाई गईं।
ओंगोल गाय के संरक्षण और संवर्धन के लिए आवश्यक कदम
• स्वदेशी नस्लों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएँ लागू की जाएं।
• क्रॉस ब्रीडिंग पर नियंत्रण रखते हुए नस्ल की शुद्धता बनाए रखी जाए।
• ओंगोल गायों के संरक्षण और पालन के लिए विशेष प्रजनन केंद्र (Breeding Centers) स्थापित किए जाएं।
• देशी गायों के उत्पादों (जैसे A2 दूध) को बाज़ार में बेहतर मूल्य और पहचान मिले।
• किसानों को स्वदेशी नस्लों के लाभ और संरक्षण के तरीकों पर जागरूक किया जाए।
निष्कर्ष:
ओंगोल गाय न केवल भारत की पशुपालन परंपरा का हिस्सा है, बल्कि कृषि, दूध उत्पादन और आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
हालांकि ब्राजील जैसे देशों में यह नस्ल फल-फूल रही है, भारत में इसके संरक्षण की तत्काल आवश्यकता है।
अगर सरकार और किसान मिलकर इसे बचाने के प्रयास करें, तो यह नस्ल फिर से अपनी पहचान बना सकती है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 3:
• कृषि और पशुपालन।
• जैव विविधता और पर्यावरणीय संरक्षण।
• भारतीय अर्थव्यवस्था और ग्रामीण विकास।
GS Paper 2:
• सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ।
• अंतरराष्ट्रीय व्यापार और कृषि नीति।
• पशुपालन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे।
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