तमिलनाडु के समुद्र तटों पर मृत ऑलिव रिडले कछुए: कारण और विश्लेषण
प्रसंग:
पिछले दो सप्ताह में तमिलनाडु, विशेषकर चेन्नई के समुद्र तटों पर बड़ी संख्या में मृत ऑलिव रिडले कछुए (Olive Ridley Turtles) पाए गए हैं। यह घटना न केवल पर्यावरणीय संकट को उजागर करती है, बल्कि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है।
ऑलिव रिडले कछुए के बारे में मुख्य तथ्य:
- वैज्ञानिक नाम: Lepidochelys olivacea
- स्थिति:
- IUCN (International Union for Conservation of Nature): असुरक्षित (Vulnerable)
- भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित।
- प्राकृतिक निवास: उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय समुद्र।
- प्रजनन:
- “अरिबाडा” प्रक्रिया: जब हजारों कछुए एक साथ अंडे देने के लिए समुद्र तटों पर आते हैं।
- भारत में ओडिशा का गहिरमाथा समुद्र तट उनका प्रमुख प्रजनन स्थल है।
मृत कछुओं की घटनाओं के प्रमुख कारण:
1. मछली पकड़ने की गतिविधियाँ:
- गैर-पारंपरिक मछली पकड़ने के जाल:
- कछुए अक्सर ट्रॉलर और मछली पकड़ने के जाल में फंस जाते हैं।
- सांस लेने में असमर्थता के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
- TEDs (Turtle Excluder Devices):
- ट्रॉलर में इन उपकरणों का उपयोग पर्याप्त नहीं है।
- इसका अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया जा रहा।
2. प्रदूषण:
- समुद्री प्लास्टिक कचरा:
- प्लास्टिक कचरे को खाने से कछुओं का पाचन तंत्र अवरुद्ध हो जाता है।
- रासायनिक प्रदूषण:
- औद्योगिक अपशिष्ट और तेल रिसाव के कारण समुद्री जल की गुणवत्ता खराब होती है।
3. जलवायु परिवर्तन:
- समुद्र का तापमान:
- समुद्र के बढ़ते तापमान से प्रजनन स्थान प्रभावित होते हैं।
- समुद्र स्तर में वृद्धि:
- उनके प्राकृतिक घोंसले समुद्र में डूबने का खतरा बढ़ गया है।
4. प्रकाश प्रदूषण:
- समुद्र तटों पर बढ़ते शहरीकरण और प्रकाश के कारण कछुए दिशाभ्रम का शिकार हो जाते हैं।
5. प्राकृतिक शिकारी:
- समुद्र तट पर अंडे और छोटे कछुए प्राकृतिक शिकारियों का शिकार हो जाते हैं।
इस घटना का पर्यावरणीय प्रभाव:
- पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
- कछुए समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- मृत कछुओं की संख्या में वृद्धि से समुद्र तटीय पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो सकता है।
- जैव विविधता का नुकसान:
- कछुए की मृत्यु समुद्र की जैव विविधता को प्रभावित करती है।
- पर्यावरणीय चेतावनी:
- यह घटना समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रति गंभीर चेतावनी है।
सरकार और संगठन की भूमिका:
1. वर्तमान कानून और उपाय:
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972:
ऑलिव रिडले कछुओं को शेड्यूल I के तहत संरक्षित किया गया है। - सीआरजेड (CRZ) विनियम:
- तटीय क्षेत्र प्रबंधन के लिए नियम बनाए गए हैं।
- तटीय क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है।
- TEDs का उपयोग अनिवार्य:
- ट्रॉलरों में कछुए बचाने के उपकरण (TEDs) लगाना अनिवार्य है।
2. संरक्षण कार्यक्रम:
- ओडिशा का कछुआ संरक्षण:
- गहिरमाथा समुद्र तट पर सक्रिय संरक्षण प्रयास।
- NGOs और स्थानीय संगठनों की भूमिका:
- तमिलनाडु और अन्य राज्यों में जागरूकता अभियान चलाना।
समाधान और सुधार के उपाय:
1. मछली पकड़ने की प्रथाओं में सुधार:
- TEDs के उपयोग को सख्ती से लागू करें।
- अनधिकृत मछली पकड़ने की गतिविधियों पर रोक लगाएं।
2. प्रदूषण नियंत्रण:
- समुद्र में प्लास्टिक और औद्योगिक कचरे के प्रवाह को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं।
- प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर भारी जुर्माना लगाएं।
3. संरक्षण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- जीपीएस ट्रैकिंग:
- कछुओं की आवाजाही और प्रजनन स्थलों की निगरानी।
- जैव विविधता डेटा संग्रहण:
- समुद्री जीवन पर प्रभाव का अध्ययन।
4. सामुदायिक जागरूकता:
- स्थानीय मछुआरों और निवासियों को कछुओं के महत्व और संरक्षण के तरीकों के बारे में शिक्षित करें।
- समुद्र तट की सफाई के लिए नियमित अभियान।
5. अनुसंधान और विकास:
- कछुओं के प्रजनन और उनके प्रवास पर शोध।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए रणनीतियाँ।
निष्कर्ष:
ऑलिव रिडले कछुए पर्यावरण और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। तमिलनाडु के समुद्र तटों पर बड़ी संख्या में कछुओं की मौत पर्यावरणीय असंतुलन और मानवीय गतिविधियों का नतीजा है।
सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों को मिलकर संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करना चाहिए। कछुओं की रक्षा न केवल एक प्रजाति को बचाने का प्रयास है, बल्कि यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने की जिम्मेदारी भी है।
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