ऑफशोर माइनिंग और केरल में विरोध
समाचार में क्यों?
• केरल के तटीय समुदायों में केंद्र सरकार की ऑफशोर माइनिंग (समुद्री खनन) योजनाओं के खिलाफ विरोध बढ़ रहा है।
• स्थानीय लोगों का मानना है कि यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (Marine Ecosystem) को नष्ट कर देगा और उनकी पारंपरिक आजीविका को समाप्त कर देगा।
ऑफशोर माइनिंग क्या है?
• समुद्र की गहराइयों से खनिजों और संसाधनों का दोहन।
• मुख्यतः रेयर अर्थ एलिमेंट्स (Rare Earth Elements), तेल, प्राकृतिक गैस, भारी खनिज (Heavy Minerals) और बहुमूल्य धातुओं का खनन।
• इसे ड्रेजिंग (Dredging), अंडरवाटर ड्रिलिंग और गहरे समुद्र में उत्खनन द्वारा किया जाता है।
केरल में ऑफशोर माइनिंग का मुद्दा
• केरल के तट मोनेज़ाइट (Monazite), इल्मेनाइट (Ilmenite) और गार्नेट (Garnet) जैसे भारी खनिजों से समृद्ध हैं।
• सरकार की योजना समुद्री क्षेत्र में इन खनिजों के खनन की है।
• स्थानीय मछुआरे और तटीय समुदाय इस योजना के विरोध में हैं क्योंकि –
• समुद्री जैव विविधता को नुकसान होगा।
• मत्स्य संसाधनों पर असर पड़ेगा, जिससे उनकी आजीविका खत्म हो सकती है।
• तटीय क्षरण (Coastal Erosion) बढ़ सकता है।
पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताएँ
• समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो सकता है।
• कोरल रीफ्स और समुद्री जीवों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
• मछली पकड़ने के क्षेत्र घट सकते हैं, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होगी।
• तटीय कटाव (Coastal Erosion) बढ़ेगा, जिससे बाढ़ और भूमि क्षरण के खतरे बढ़ेंगे।
भारत में ऑफशोर माइनिंग का कानूनी ढांचा
• दीप महासागर मिशन (Deep Ocean Mission) – समुद्री संसाधनों के अध्ययन और खनन की योजना।
• भारतीय खनिज विकास नीति (National Mineral Policy, 2019) – सतत खनन को बढ़ावा देने का प्रयास।
• पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 – समुद्री पारिस्थितिकी की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण।
मुख्य निष्कर्ष
2023 का संशोधन और निजी क्षेत्र की भागीदारी
- ऑफशोर एरिया मिनरल (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) बिल, 2023 में संशोधन के तहत निजी क्षेत्र को ऑफशोर माइनिंग में भागीदारी की अनुमति दी गई।
- उत्पादन पट्टे और संयुक्त लाइसेंस अब प्रतिस्पर्धी नीलामी के माध्यम से दिए जाएंगे।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के सर्वेक्षण निष्कर्ष
- गुजरात और महाराष्ट्र के तट – एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) में चूना मिट्टी (lime mud) पाई गई।
- केरल का तट – निर्माण कार्य में उपयोगी रेत के भंडार मिले।
- ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र – भारी खनिज (heavy mineral placers) पाए गए।
- अंडमान और लक्षद्वीप समुद्र – पॉलीमेटैलिक फेरोमैंगनीज (Fe-Mn) नोड्यूल्स और क्रस्ट का पता चला।
पहले चरण (Tranche 1) में 13 ऑफशोर क्षेत्रों की नीलामी
- गुजरात तट पर – तीन चूना मिट्टी ब्लॉक।
- केरल तट पर – तीन निर्माण रेत ब्लॉक।
- ग्रेट निकोबार द्वीप के पास – सात पॉलीमेटैलिक नोड्यूल और क्रस्ट ब्लॉक।
केरल में खनन का प्रभाव
- केरल के तीन खनन ब्लॉक ‘कोल्लम परप्पु’ (Quilon Bank) में स्थित हैं, जो दक्षिण-पश्चिमी तट का सबसे समृद्ध मछली पकड़ने का क्षेत्र है।
- यह क्षेत्र यांत्रिक नौकाओं, जाल वाली नौकाओं, और हुक व लाइन मछुआरों द्वारा बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
- केरल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, खनन गतिविधियाँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होगी।
- अध्ययन में कोल्लम क्षेत्र में एकल और कोमल प्रवाल (solitary & soft corals) की विविधता के लिए खतरा बताया गया है, क्योंकि:
- खनन से तलछट के गुबार (sediment plumes) बनेंगे, जिससे पानी की गंदलापन (turbidity) बढ़ेगी।
- इससे पानी की गुणवत्ता घटेगी, खाद्य श्रृंखलाएँ बाधित होंगी, और प्रजनन क्षेत्र (spawning grounds) प्रभावित होंगे।
- इसके अलावा, खनन से निकली रेत को धोने के लिए मीठे पानी के उपयोग की आर्थिक लागत का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 3:
• प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और सतत विकास।
• समुद्री जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव।
• पर्यावरणीय कानून और संरक्षण नीतियाँ।
GS Paper 2:
• नीति निर्माण और तटीय समुदायों के अधिकार।
• सरकार और समाज के बीच संतुलन।
निष्कर्ष:
ऑफशोर माइनिंग से आर्थिक विकास और खनिज संसाधनों की उपलब्धता बढ़ सकती है, लेकिन यह पर्यावरणीय क्षति और सामाजिक संघर्ष को जन्म दे सकता है। सरकार को स्थानीय समुदायों को विश्वास में लेकर पर्यावरणीय प्रभावों का संतुलित मूल्यांकन करना चाहिए।
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