चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वृद्धजनों के लिए एक समर्पित मंत्रालय की स्थापना की मांग करने वाली रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि देश में वृद्धजनों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है और उनके कल्याण के लिए समर्पित मंत्रालय की आवश्यकता है। हालांकि, न्यायालय ने यह कहा कि इस विषय पर निर्णय लेना विधायिका का कार्यक्षेत्र है और उसने याचिका खारिज कर दी।
वृद्धजन: परिभाषा और स्थिति
- परिभाषा: आमतौर पर, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को वृद्धजन माना जाता है।
- भारत में वृद्धजनों की स्थिति:
- 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में वृद्धजनों की संख्या लगभग 10.38 करोड़ थी।
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट (2021) के अनुसार, 2050 तक यह संख्या 20% से अधिक होने की संभावना है।
- स्वास्थ्य, आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक समर्थन वृद्धजनों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
रिट याचिका: परिचय और प्रासंगिकता
रिट याचिका (Writ Petition):
- संविधान के अनुच्छेद 32 (सुप्रीम कोर्ट के लिए) और अनुच्छेद 226 (हाई कोर्ट के लिए) के तहत मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए रिट याचिका दायर की जा सकती है।
- प्रमुख प्रकार: हबेअस कॉर्पस, मैंडमस, प्रोहिबिशन, सर्टियोरारी, और क्वो वारंटो।
याचिका में मुख्य मांगें:
- वृद्धजनों के लिए समर्पित मंत्रालय:
- वृद्धजनों की समस्याओं को हल करने के लिए एक अलग मंत्रालय की स्थापना।
- कल्याणकारी योजनाओं की निगरानी:
- मौजूदा योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने और नई योजनाएँ बनाने के लिए समर्पित प्राधिकरण।
सुप्रीम कोर्ट का उत्तर:
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- प्रशासनिक ढांचे में परिवर्तन का निर्णय संसद या कार्यपालिका का काम है।

भारत में वृद्धजनों की स्थिति:
भारत में वृद्धजनों (60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों) की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह बदलाव देश की जनसांख्यिकीय संरचना, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, और पारिवारिक संरचना में हो रहे बदलावों का परिणाम है। वृद्धजनों की बढ़ती आबादी सामाजिक, आर्थिक, और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को जन्म दे रही है।
प्रमुख आंकड़े और तथ्य
- जनसंख्या:
- 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या 10.38 करोड़ थी।
- NSO की रिपोर्ट (2021): यह संख्या 2050 तक कुल जनसंख्या का 20% होने की संभावना है।
- जीवन प्रत्याशा:
- स्वतंत्रता के बाद, जीवन प्रत्याशा 37 वर्ष थी, जो अब बढ़कर लगभग 70 वर्ष हो गई है।
- लैंगिक अनुपात:
- वृद्ध महिलाओं की संख्या वृद्ध पुरुषों की तुलना में अधिक है, लेकिन वे अधिकतर आर्थिक और सामाजिक रूप से अधिक कमजोर हैं।
वृद्धजनों की समस्याएँ
1. आर्थिक समस्याएँ:
- आय का अभाव:
- 70% से अधिक वृद्धजन असंगठित क्षेत्र में काम करते थे, जहाँ पेंशन या सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।
- निर्भरता:
- अधिकतर वृद्धजन अपने बच्चों या परिवार पर आर्थिक रूप से निर्भर होते हैं।
- पेंशन की समस्या:
- सीमित पेंशन योजनाएँ और कम कवरेज।
2. स्वास्थ्य समस्याएँ:
- बुजुर्ग स्वास्थ्य देखभाल की कमी:
- भारत में वृद्धजनों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ अपर्याप्त हैं।
- गैर-संचारी रोग जैसे मधुमेह, हृदय रोग, और कैंसर आम हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य:
- अकेलापन, डिप्रेशन और डिमेंशिया जैसी मानसिक समस्याएँ।
- दीर्घकालिक देखभाल:
- दीर्घकालिक देखभाल सुविधाओं और नर्सिंग होम की कमी।
3. सामाजिक समस्याएँ:
- अकेलापन और उपेक्षा:
- पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन।
- शहरीकरण के कारण बच्चे वृद्धजनों से दूर रहने लगे हैं।
- बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशीलता:
- बुजुर्गों को समाज में आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमतर माना जाता है।
- दुर्व्यवहार:
- 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, 40% वृद्धजन घरेलू दुर्व्यवहार का सामना करते हैं।
4. कानूनी और सामाजिक सुरक्षा का अभाव:
- वृद्धजनों के अधिकारों और सुरक्षा के लिए कानूनी और संस्थागत ढाँचे का अभाव।
भारत में वृद्धजनों के लिए मौजूदा कानून और योजनाएँ
1. कानूनी प्रावधान:
- अनुवृत्ति और कल्याण अधिनियम, 2007 (MWPSC):
- बच्चों और रिश्तेदारों को माता-पिता और वृद्धजनों की देखभाल के लिए कानूनी बाध्यता।
- माता-पिता को भरण-पोषण के लिए ट्रिब्यूनल में आवेदन करने का अधिकार।
- भारतीय दंड संहिता (IPC):
- धारा 125 के तहत, माता-पिता अपने बच्चों से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।
2. योजनाएँ:
- राष्ट्रीय वृद्धजन स्वास्थ्य कार्यक्रम (NPHCE):
- वृद्धजनों के लिए किफायती स्वास्थ्य सेवाएँ।
- अटल पेंशन योजना (APY):
- वृद्धावस्था में आर्थिक सुरक्षा।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना:
- गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के वृद्धजनों को पेंशन प्रदान करना।
- वृद्धजन हेल्पलाइन (14567):
- वृद्धजनों को समर्थन और सहायता।
वृद्धजनों के लिए मंत्रालय की आवश्यकता का विश्लेषण
तर्क में समर्थन:
- विशेष ध्यान:
- वृद्धजनों की समस्याएँ (स्वास्थ्य, आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक अलगाव) विशिष्ट हैं और एक समर्पित मंत्रालय इन्हें बेहतर तरीके से संभाल सकता है।
- कार्यक्रमों का समन्वय:
- वृद्धजनों के लिए कई योजनाएँ मौजूद हैं, लेकिन उनकी निगरानी और प्रभावी कार्यान्वयन में कमी है।
- भविष्य की तैयारी:
- भारत में वृद्धजनों की बढ़ती संख्या को देखते हुए दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता है।
तर्क में विरोध:
- प्रभावी उपयोग की आवश्यकता:
- मौजूदा योजनाओं और संस्थानों के बेहतर कार्यान्वयन से वृद्धजनों की समस्याएँ हल की जा सकती हैं।
- संसाधनों की सीमितता:
- नया मंत्रालय स्थापित करने से प्रशासनिक लागत बढ़ सकती है।
- संवैधानिक सीमाएँ:
- सरकार के प्रशासनिक ढाँचे में परिवर्तन का निर्णय कार्यपालिका और विधायिका का क्षेत्र है।
समाधान और सुझाव
- मौजूदा ढाँचे को सुदृढ़ करना:
- मौजूदा योजनाओं और कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना।
- राज्य और जिला स्तर पर वृद्धजन सहायता केंद्रों की स्थापना।
- समर्पित प्राधिकरण:
- वृद्धजनों के कल्याण के लिए एक केंद्रीय एजेंसी का गठन जो मौजूदा योजनाओं का समन्वय और निगरानी करे।
- आर्थिक सुरक्षा:
- वृद्धजनों के लिए सामाजिक सुरक्षा जाल का विस्तार।
- पेंशन योजनाओं में सुधार और उनकी पहुंच बढ़ाना।
- सामाजिक समावेशन:
- परिवार और समुदाय स्तर पर वृद्धजनों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना।
- वृद्धजनों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
- शोध और डाटा संग्रहण:
- वृद्धजनों से संबंधित डेटा का संग्रहण और विश्लेषण।
- भविष्य की नीतियों के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण।
निष्कर्ष:
भारत में वृद्धजनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और उनके कल्याण के लिए सुदृढ़ योजनाओं और नीतियों की आवश्यकता है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने समर्पित मंत्रालय की मांग को खारिज कर दिया है, लेकिन यह विषय सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना हुआ है। वृद्धजनों के अधिकारों और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए सरकार, समाज और समुदाय को मिलकर कार्य करना होगा।
Leave a Reply