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महाकुंभ मेला 2025 का शुभारंभ 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होगा और यह 26 फरवरी 2025 को संपन्न होगा।
पृष्ठभूमि:
महाकुंभ मेला हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है और इसे भक्तों के लिए पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त करने का एक सुनहरा अवसर माना जाता है।
2017 में, कुंभ मेले को यूनेस्को द्वारा भारत की ‘अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के रूप में मान्यता दी गई।
प्रमुख बिंदु:
- कुंभ मेला का आयोजन
कुंभ मेला हर 12 साल में चार बार मनाया जाता है – प्रत्येक तीन साल के अंतराल पर। इसका आयोजन चार स्थानों पर चक्रानुसार होता है: प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। - कुंभ मेला की उत्पत्ति
कुंभ मेला की शुरुआत प्राचीन हिंदू महाकाव्यों और साहित्य, जैसे महाभारत और पुराणों से हुई मानी जाती है।
अमृत मंथन परंपरा के अनुसार, अमृत (अमृत का रस) की चार बूंदें पृथ्वी पर गिरी थीं, और ये चार स्थान क्रमशः प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं।
महाकुंभ और कुंभ के बीच अंतर:
- महाकुंभ मेला
- महाकुंभ मेला हर 12 वर्षों में एक बार होता है और इसे सभी कुंभ मेलों में सबसे पवित्र माना जाता है।
- यह मुख्य रूप से प्रयागराज में आयोजित होता है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है।
- इसमें भाग लेना आत्मा की शुद्धि, पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
- कुंभ मेला
- कुंभ मेला हर 3 साल में चार स्थानों (हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज) पर बारी-बारी से आयोजित होता है।
- यह आत्मिक विकास और शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे महाकुंभ के मुकाबले कम प्रभावशाली माना जाता है।
- आयोजन का पैमाना
- महाकुंभ मेला में लगभग 40 करोड़ भक्त शामिल होते हैं, जिससे यह विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक बन जाता है।
- जबकि कुंभ मेला तुलनात्मक रूप से छोटे पैमाने पर आयोजित होता है और इसमें कम संख्या में भक्त शामिल होते हैं।
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