त्रिपुरा विधानसभा में विरोध प्रदर्शन: त्विप्रा छात्र संघ (TSF) और कोकबोरोक भाषा की रोमन लिपि की मांग
चर्चा में क्यों
हाल ही में त्रिपुरा विधानसभा के प्रवेश द्वार पर त्विप्रा छात्र संघ (TSF) के सदस्यों ने एक विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने कोकबोरोक भाषा को पाठ्यपुस्तकों और सरकारी कार्यों में रोमन लिपि के साथ शामिल करने की मांग की। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान छात्रों को हिरासत में लिया गया। कोकबोरोक, एक चीनी-तिब्बती भाषा है, जिसे त्रिपुरा में एक प्रमुख आदिवासी भाषा के रूप में बोला जाता है।
मुख्य बिंदु (Keypoints):
- कोकबोरोक भाषा और इसकी महत्ता:
- कोकबोरोक त्रिपुरा में ट्राइबल समुदायों द्वारा बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है।
- यह भाषा चीनी-तिब्बती भाषा परिवार से संबंधित है और त्रिपुरा के विभिन्न आदिवासी समूहों के बीच संचार का मुख्य साधन है।
- कोकबोरोक को सरकारी कार्यों में जगह देने का प्रस्ताव त्रिपुरा के आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान और भाषा के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
- त्विप्रा छात्र संघ (TSF):
- TSF त्रिपुरा के आदिवासी छात्रों का एक प्रमुख संगठन है, जो अपने अधिकारों की रक्षा के लिए समय-समय पर सक्रिय रहता है।
- TSF का यह विरोध त्रिपुरा में आदिवासी समुदायों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक बड़ी पहल है।
- संगठन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी छात्रों के लिए बेहतर शिक्षा, संस्कृति और अधिकारों की लड़ाई लड़ना है।
- राज्य सरकार की प्रतिक्रिया:
- त्रिपुरा सरकार ने इस मुद्दे पर अभी तक आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन राजनीतिक नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों ने स्थिति को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की बात की है।
- कई राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर पक्ष और विपक्षी दोनों ही दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं।
- संविधानिक और कानूनी दृष्टिकोण:
- भारतीय संविधान में आदिवासी भाषाओं को संरक्षण देने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत आदिवासी समुदायों की भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण के लिए राज्य और केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया है।
- इस मामले में आदिवासी भाषा अधिकार और सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण करने की दिशा में सुधार की आवश्यकता हो सकती है।
- राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर भाषा की स्थिति:
- त्रिपुरा में बांगला को आधिकारिक भाषा के रूप में माना गया है, लेकिन आदिवासी समुदायों के लिए कोकबोरोक भाषा का महत्व बढ़ता जा रहा है।
- इसके अलावा, रोमन लिपि का प्रयोग डिजिटल और वैश्विक स्तर पर संवाद को सुविधाजनक बना सकता है, विशेषकर सोशल मीडिया और तकनीकी क्षेत्र में।
कोकबोरोक भाषा
1. व्युत्पत्ति और भाषाई परिवार:
- कोकबोरोक एक चीनी-तिब्बती भाषा परिवार की सदस्य है, जो मुख्य रूप से त्रिपुरा राज्य के आदिवासी समुदायों द्वारा बोली जाती है।
- यह भाषा त्रिपुरा के विभिन्न आदिवासी समूहों, विशेष रूप से बृजमुखी, त्रिपुरी, रियांग, और अन्य आदिवासी जनजातियों के बीच प्रमुख रूप से बोली जाती है।
- कोकबोरोक की उत्पत्ति का संबंध तिब्बती-बर्मी भाषाओं से माना जाता है, जिनका प्रयोग पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न हिस्सों में होता है।
2. समुदाय:
- कोकबोरोक मुख्य रूप से त्रिपुरा राज्य में बोली जाती है, जहाँ के आदिवासी समुदायों में यह भाषा सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
- त्रिपुरा के ट्राइबल समुदायों जैसे त्रिपुरी, रियांग, और बृजमुखी इसे अपने दैनिक जीवन और पारंपरिक गतिविधियों में उपयोग करते हैं।
- कोकबोरोक को सरकारी भाषा के रूप में भी मान्यता प्राप्त है, और यह भाषा संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है, लेकिन इसे महत्वपूर्ण आदिवासी भाषा के रूप में पहचान मिली है।
3. लिपि और लेखन:
- कोकबोरोक को बांगला लिपि में लिखा जाता है, जो त्रिपुरा में पारंपरिक रूप से प्रयुक्त है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से कोकबोरोक के लिए रोमन लिपि का उपयोग बढ़ रहा है, खासकर डिजिटल मीडिया और शिक्षा के क्षेत्र में।
- कोकबोरोक के लिए रोमन लिपि का समर्थन बढ़ाने की मांग इस समय राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का हिस्सा है।
- बांगला लिपि में कोकबोरोक लिखने की पारंपरिक प्रक्रिया में, उच्चारण और ध्वनियों के अंतर को ध्यान में रखते हुए बांगला लिपि को अनुकूलित किया जाता है।
4. इतिहास:
- कोकबोरोक का इतिहास प्राचीन और समृद्ध है, और यह क्षेत्रीय आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
- इस भाषा का विकास मुख्य रूप से त्रिपुरा और उसके आस-पास के क्षेत्रों में हुआ। पहले यह केवल मौखिक रूप से बोली जाती थी, लेकिन बाद में इसके लेखन की प्रक्रिया भी विकसित हुई।
- 19वीं और 20वीं सदी में, जब ब्रिटिश राज था, तब त्रिपुरा में प्रशासनिक कार्यों और शिक्षा के लिए बांगला भाषा का प्रयोग बढ़ने लगा, जिससे कोकबोरोक की महत्वता कम हो गई।
- 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में, कोकबोरोक भाषा के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के लिए कई प्रयास किए गए हैं, जिसमें बालकों के लिए कोकबोरोक पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन, और बांगला लिपि के साथ इसके लिखने की प्रक्रिया को संस्थागत रूप देना शामिल है।
5. कोकबोरोक का साहित्य और सांस्कृतिक योगदान:
- कोकबोरोक का साहित्य और लोककला संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसमें कविता, गीत, और कहानी प्रमुख हैं, जो आदिवासी समुदायों की परंपराओं और जीवन शैली को दर्शाते हैं।
- लोक संगीत और नृत्य जैसे कोकबोरोक गीत और आदिवासी नृत्य भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बने हुए हैं। यह संगीत और नृत्य कोकबोरोक भाषा के साथ गाए जाते हैं, जिससे संस्कृति और भाषा का गहरा संबंध है।
- कोकबोरोक में धार्मिक और सांस्कृतिक कथाएँ प्रमुख होती हैं, जो स्थानीय समाज और जीवन की घटनाओं को दर्शाती हैं।
6. भविष्य और संवर्धन:
- कोकबोरोक की भाषाई स्थिति की बात करें तो, इसे राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता मिलने की दिशा में कुछ कदम उठाए गए हैं, जैसे कि इसे शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकारने का प्रस्ताव और रोमन लिपि को शामिल करने की मांग।
- त्रिपुरा सरकार और अन्य संगठन कोकबोरोक को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रयासरत हैं।
- प्रौद्योगिकी और डिजिटल दुनिया में कोकबोरोक के प्रचार-प्रसार के लिए कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों और ऐप्स का निर्माण हो रहा है, ताकि इसे युवा पीढ़ी में बढ़ावा दिया जा सके।
7. कोकबोरोक और राजनीति:
- कोकबोरोक भाषा के संदर्भ में राजनीतिक सक्रियता बढ़ी है। त्विप्रा छात्र संघ (TSF) और अन्य संगठनों द्वारा इसकी राजनीतिक मान्यता और संविधानिक संरक्षण की मांग की जाती रही है।
- कुछ नेताओं और राजनीतिक दलों ने इसे राज्य भाषा बनाने की मांग की है, जबकि कुछ ने इसे रोमन लिपि में मान्यता देने की भी बात की है।
निष्कर्ष:
कोकबोरोक एक महत्वपूर्ण आदिवासी भाषा है, जो त्रिपुरा राज्य के आदिवासी समुदायों के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसे लिपि और लेखन के संदर्भ में भी सुधार और संवर्धन की आवश्यकता है, ताकि यह आधुनिक युग के साथ प्रासंगिक बनी रहे। इसकी संविधानिक और सरकारी मान्यता और रोमन लिपि के साथ इसका प्रचार इसके अस्तित्व और विकास को सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।
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