चर्चा में क्यों?
• वैज्ञानिकों ने इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) विकसित किया है, जो स्टेम कोशिकाओं से शुक्राणु (Sperm) और अंडाणु (Eggs) बनाने की एक नवीनतम जैव-प्रौद्योगिकी प्रक्रिया है।
• यह तकनीक इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) की तुलना में अधिक कुशल और नवाचारपूर्ण मानी जा रही है।
• यह भविष्य में बांझपन (Infertility) के इलाज, प्रजनन उपचार, और जेनेटिक बीमारियों से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) क्या है?
✔ इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) एक प्रयोगशाला-आधारित तकनीक है, जिसमें प्लुरीपोटेंट स्टेम कोशिकाओं (Pluripotent Stem Cells – PSCs) से शुक्राणु और अंडाणु विकसित किए जाते हैं।
✔ इसे प्राकृतिक प्रजनन प्रणाली के बाहर, कृत्रिम रूप से एक नियंत्रित वातावरण में किया जाता है।
✔ इस तकनीक में स्टेम सेल को गैमेट (Gametes – यानि शुक्राणु और अंडाणु) में परिवर्तित किया जाता है, जिससे बिना पारंपरिक मैथुन प्रक्रिया के भ्रूण (Embryo) तैयार करना संभव होता है।
IVG की प्रक्रिया कैसे काम करती है?
- स्टेम कोशिकाओं का निष्कर्षण – मानव या किसी अन्य जीव के शरीर से प्लुरीपोटेंट स्टेम कोशिकाएँ (PSCs) प्राप्त की जाती हैं।
- इन कोशिकाओं को प्रयोगशाला में विकसित करना – इन्हें विशेष रासायनिक और जैविक संकेतों के माध्यम से शुक्राणु या अंडाणु में बदला जाता है।
- गैमेट उत्पादन – तैयार किए गए शुक्राणु और अंडाणु का उपयोग कर प्रयोगशाला में निषेचन (Fertilization) किया जाता है।
- भ्रूण का विकास और प्रत्यारोपण – तैयार भ्रूण को इच्छित माता-पिता के गर्भाशय (Uterus) में प्रत्यारोपित किया जाता है।
IVG के संभावित लाभ
✔ बांझपन (Infertility) का समाधान – जोड़ों में यदि किसी भी कारण से प्राकृतिक रूप से शुक्राणु या अंडाणु नहीं बन रहे हैं, तो IVG तकनीक से संतान प्राप्ति संभव होगी।
✔ उम्रदराज़ माता-पिता के लिए सहायक – जो महिलाएँ अधिक उम्र में संतान चाहती हैं, उनके लिए यह तकनीक उपयोगी हो सकती है।
✔ समलैंगिक (LGBTQ+) दंपतियों के लिए विकल्प – यह तकनीक समलैंगिक जोड़ों को भी जैविक संतान (Biological Child) प्राप्त करने में सहायता कर सकती है।
✔ गुणसूत्रीय (Genetic) बीमारियों से बचाव – IVG के माध्यम से भ्रूण में अनुवांशिक विकारों की जांच (Genetic Screening) कर उन्हें दूर किया जा सकता है।
✔ अनुसंधान और क्लोनिंग में उपयोग – यह तकनीक चिकित्सा अनुसंधान, स्टेम सेल उपचार और अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplantation) में भी मदद कर सकती है।
IVG से जुड़ी चिंताएँ और चुनौतियाँ
⚠ नैतिक और सामाजिक चिंताएँ – IVG से “Designer Babies” (आदेशानुसार संतान) और जेनेटिक हेरफेर (Genetic Manipulation) के खतरे बढ़ सकते हैं।
⚠ कृत्रिम मानव उत्पादन का डर – क्या यह तकनीक प्राकृतिक प्रजनन को अप्रासंगिक बना सकती है?
⚠ वैधानिक और कानूनी बाधाएँ – कई देशों में स्टेम सेल अनुसंधान और मानव भ्रूण में जेनेटिक संशोधन पर कड़े नियम हैं।
⚠ दीर्घकालिक प्रभावों की जानकारी नहीं – अभी यह स्पष्ट नहीं है कि IVG से जन्मे बच्चों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव क्या होंगे?
IVG और IVF में अंतर
| विशेषता | इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) | इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) |
|---|---|---|
| गैमेट उत्पादन | स्टेम सेल से प्रयोगशाला में शुक्राणु/अंडाणु बनाए जाते हैं। | प्राकृतिक रूप से उत्पादित शुक्राणु और अंडाणु का उपयोग किया जाता है। |
| बांझपन का समाधान | उन लोगों के लिए भी उपयोगी जिनमें शुक्राणु/अंडाणु नहीं बनते। | केवल उन्हीं लोगों के लिए जिनके शरीर में शुक्राणु/अंडाणु बनते हैं। |
| तकनीकी जटिलता | जटिल और अभी अनुसंधान चरण में है। | पहले से विकसित और सफल तकनीक। |
| लागत और उपलब्धता | वर्तमान में महंगी और सीमित अनुसंधान स्तर पर। | IVF अधिक उपलब्ध और अपेक्षाकृत सस्ती है। |
भारत में प्रासंगिकता और भविष्य
✔ भारत में बढ़ती बांझपन दर – आधुनिक जीवनशैली और प्रदूषण के कारण बांझपन की समस्या बढ़ रही है, IVG इस समस्या का समाधान कर सकता है।
✔ बायोटेक्नोलॉजी अनुसंधान में प्रगति – भारत बायोटेक्नोलॉजी में अग्रणी है और इस क्षेत्र में निवेश से वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
✔ कानूनी ढांचा तैयार करने की आवश्यकता – भारत में IVG को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है, सरकार को नैतिकता और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नीति बनानी होगी।
निष्कर्ष
• इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) एक क्रांतिकारी जैव-प्रौद्योगिकी है, जो बांझपन के उपचार, समलैंगिक जोड़ों के लिए संतान प्राप्ति और अनुवांशिक बीमारियों से बचाव में मदद कर सकती है।
• हालाँकि, इसके नैतिक, कानूनी और वैज्ञानिक पहलुओं पर गहन शोध और विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
• यदि उचित नीति और नैतिक मानकों के साथ लागू किया जाए, तो IVG भविष्य में प्रजनन और चिकित्सा विज्ञान में एक ऐतिहासिक परिवर्तन ला सकता है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 3 (विज्ञान और प्रौद्योगिकी)
• जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) में नवीनतम प्रगति।
• स्टेम सेल अनुसंधान और चिकित्सा क्षेत्र में इसका उपयोग।
• इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन के बीच अंतर।
• भारत में बायोटेक्नोलॉजी अनुसंधान और नीति।
GS Paper 4 (नैतिकता और कानून)
• कृत्रिम प्रजनन तकनीकों से जुड़ी नैतिक चिंताएँ।
• IVG का सामाजिक और कानूनी प्रभाव।
• चिकित्सा अनुसंधान और मानवाधिकार।


Leave a Reply