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भारत का परमाणु दायित्व कानून संशोधन : India’s Nuclear Liability Law Amendments

India’s Nuclear Liability Law Amendments

India’s Nuclear Liability Law Amendments: A Step Towards Global Partnerships

भारत का परमाणु दायित्व कानून – ताज़ा खबर

केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि वह अपने नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damages Act) और परमाणु ऊर्जा अधिनियम (Atomic Energy Act) में संशोधन करेगी।

परिचय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका और फ्रांस यात्रा (10-13 फरवरी 2025) से पहले, भारतीय सरकार ने अपने नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम (CLNDA) और परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन करने की योजना घोषित की है।

इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी और फ्रांसीसी परमाणु ऊर्जा कंपनियों की चिंताओं को दूर करना है, जिनकी भारत में परियोजनाएँ दायित्व से संबंधित मुद्दों के कारण रुकी हुई हैं।

यह घोषणा सरकार की 2015 की नीति में महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है, जब उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि “अधिनियम या नियमों में संशोधन का कोई प्रस्ताव नहीं है।” अब, ये संशोधन निम्नलिखित प्रमुख परमाणु परियोजनाओं को लागू करने में मदद कर सकते हैं:

  • इलेक्ट्रिसिटी डी फ्रांस (EDF) – महाराष्ट्र (जैतापुर) में छह EPR1650 रिएक्टरों के निर्माण के लिए एमओयू
  • वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक कंपनी – आंध्र प्रदेश (कोव्वाडा) में छह AP1000 रिएक्टरों के निर्माण के लिए एमओयू

इसके अतिरिक्त, भारत अब “स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR)” तकनीक को अपनाने की योजना बना रहा है, जो विकसित देशों में लोकप्रिय हो रही है।


भारत द्वारा परमाणु दायित्व कानून में संशोधन के कारण

1. विदेशी कंपनियों की चिंताओं का समाधान

पश्चिमी परमाणु ऊर्जा कंपनियाँ CLNDA, 2010 की सख्त दायित्व शर्तों के कारण भारत में निवेश करने से हिचक रही थीं। इस अधिनियम में परमाणु दुर्घटनाओं के लिए आपूर्तिकर्ताओं (suppliers) को ज़िम्मेदार ठहराया गया था।

इसके विपरीत, अंतरराष्ट्रीय परमाणु क्षति के लिए पूरक मुआवजा सम्मेलन (Convention for Supplementary Compensation – CSC) में मुख्य रूप से संचालक (operators) को जिम्मेदार माना जाता है।

2012 में, जब यह कानून लागू किया गया था, तब संसद में गहन बहस हुई थी। उस समय एनडीए (वर्तमान सत्ताधारी दल) ने आपूर्तिकर्ताओं की ज़िम्मेदारी तय करने पर ज़ोर दिया था, क्योंकि भोपाल गैस त्रासदी (1984) और फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना (2011) जैसी घटनाओं के कारण दायित्व को कड़ा बनाया गया था।

हालांकि, इस सख्त कानून के कारण अमेरिकी और फ्रांसीसी कंपनियाँ भारत में निवेश करने से बचती रहीं, क्योंकि उन्हें यह आर्थिक रूप से जोखिम भरा लग रहा था।


2. भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ाना

वर्तमान में, भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता 6,780 मेगावाट है, जिसमें 22 रिएक्टर कार्यरत हैं।
अभी तक, रूस की रोसाटॉम (Rosatom) ही भारत में एकमात्र विदेशी परमाणु ऊर्जा कंपनी है।

2025 के केंद्रीय बजट में सरकार ने परमाणु ऊर्जा विकास के लिए ₹20,000 करोड़ का आवंटन किया है।
भारत का लक्ष्य 2047 तक 100 गीगावाट (GW) परमाणु ऊर्जा उत्पादन हासिल करना है।

इसके अलावा, स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) तकनीक को बढ़ावा देने की योजना है, जिसमें 2033 तक पांच यूनिट शुरू करने की योजना है।


3. अमेरिका और फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना

भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौता (2008) का उद्देश्य परमाणु ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा देना था, लेकिन दायित्व कानून की बाधाओं के कारण अब तक यह प्रभावी नहीं हो पाया।

इसी तरह, फ्रांस की EDF को भी जैतापुर परियोजना में वर्षों की देरी का सामना करना पड़ा है।

प्रधानमंत्री मोदी की वॉशिंगटन और पेरिस यात्रा के दौरान, भारत परमाणु ऊर्जा निवेश में आ रही रुकावटों को दूर करने और नए समझौतों को अंतिम रूप देने की कोशिश करेगा।

CLNDA में संशोधन की चुनौतियाँ

1. घरेलू राजनीतिक विरोध

  • मूल 2010 CLNDA अधिनियम को व्यापक सार्वजनिक और संसदीय बहस के बाद पारित किया गया था, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया था कि विदेशी कंपनियों को परमाणु दुर्घटनाओं के लिए दायित्व से छूट नहीं मिलेगी।
  • यदि प्रस्तावित संशोधन आपूर्तिकर्ताओं की ज़िम्मेदारी को कम करते हैं, तो विपक्षी दल और नागरिक संगठनों से कड़ा विरोध झेलना पड़ सकता है।

2. कानूनी और नियामक अनिश्चितता

  • विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि CLNDA को वैश्विक परमाणु दायित्व मानकों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए, लेकिन संशोधन कैसे लागू किए जाएंगे, इस पर स्पष्टता की कमी है।
  • विदेश मंत्रालय (MEA) ने अब तक प्रस्तावित बदलावों का विवरण साझा करने से इनकार कर दिया है, जिससे अनिश्चितता बनी हुई है।

3. निवेशकों का विश्वास और बीमा संबंधी मुद्दे

  • भारत ने 2019 में ₹1,500 करोड़ का बीमा कोष बनाया था ताकि परमाणु क्षति के मामलों को कवर किया जा सके, लेकिन यह बड़े विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में विफल रहा।
  • संशोधनों में यह सुनिश्चित करना होगा कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ और भारतीय संचालक दोनों कानूनी सुरक्षा और मुआवजा ढांचे में विश्वास करें।

संभावित वैश्विक और आर्थिक प्रभाव

1. रुकी हुई परमाणु परियोजनाओं को गति देना

  • यदि CLNDA में संशोधन किया जाता है, तो वेस्टिंगहाउस के AP1000 रिएक्टर (आंध्र प्रदेश) और EDF की जैतापुर परियोजना जैसी परियोजनाओं को हरी झंडी मिल सकती है।
  • इससे भारत की स्वच्छ ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

2. वैश्विक परमाणु ऊर्जा में भारत की भूमिका को मजबूत करना

  • भारत का SMR (स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर) विकास कार्यक्रम वैश्विक रुझानों के अनुरूप है, जहाँ कई देश लागत-कुशल और मॉड्यूलर परमाणु तकनीकों में निवेश कर रहे हैं।
  • अमेरिका और फ्रांस के साथ परमाणु सहयोग से भारत को लाभ होगा:
    • तकनीकी विशेषज्ञता में वृद्धि
    • ऊर्जा स्रोतों में विविधता
    • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी

3. भारत में अमेरिकी और फ्रांसीसी रणनीतिक रुचि

  • अमेरिका अपनी व्यापार और रणनीतिक नीति के तहत परमाणु प्रौद्योगिकी सहित ऊर्जा निर्यात बढ़ाना चाहता है।
  • फ्रांस, जो परमाणु ऊर्जा में अग्रणी है, भारत को अपनी उन्नत रिएक्टर तकनीक के लिए एक प्रमुख बाजार मानता है।
  • इसलिए, दोनों देश भारत के साथ परमाणु दायित्व से जुड़े मुद्दों को हल करने और आर्थिक व कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के इच्छुक हैं।

निष्कर्ष

भारत के परमाणु दायित्व कानून में प्रस्तावित संशोधन एक महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन को दर्शाते हैं, जो विदेशी निवेश को आकर्षित करने और रुकी हुई परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं को गति देने की दिशा में उठाया गया कदम है।

हालाँकि, इस निर्णय से भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय विस्तार हो सकता है, लेकिन सरकार को अंतरराष्ट्रीय दायित्वों और घरेलू राजनीतिक विरोध के बीच संतुलन बनाना होगा।

जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका और फ्रांस की यात्रा पर जाएंगे, दुनिया की नज़र इस बात पर होगी कि क्या ये संशोधन 15 साल से चले आ रहे गतिरोध को समाप्त कर सकते हैं और भारत को वैश्विक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी बना सकते हैं।


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