संदर्भ:
विदेश मंत्रालय (MEA) ने बांगलादेश उच्चायोग के मिशन प्रमुख को तलब कर यह संदेश दिया कि भारत-बांगलादेश सीमा पर बाड़बंदी का कार्य “सभी प्रोटोकॉल और समझौतों के अनुरूप” किया जा रहा है।
पृष्ठभूमि:
यह बातचीत उस समय हुई जब बांगलादेश के विदेश सचिव ने ढाका में भारतीय उच्चायुक्त से सीमा सुरक्षा बल (BSF) द्वारा सीमा पर किए जा रहे निर्माण कार्यों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की थी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- भारत और बांगलादेश के बीच सीमा का इतिहास ब्रिटिश शासन से जुड़ा हुआ है।
- 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के समय बांगलादेश (तत्कालीन पूर्व पाकिस्तान) का भारत से अलग होना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मोड़ था।
- इस विभाजन के दौरान, रैडक्लिफ रेखा के आधार पर सीमा निर्धारित की गई, जो आज भारत और बांगलादेश के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में स्थापित है।
- यह सीमा विभिन्न भूगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों को पार करती है, जिससे दोनों देशों के बीच सीमा सुरक्षा और प्रबंधन को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
मुख्य बिंदु
- भारत-बांगलादेश सीमा की कुल लंबाई लगभग 4,096.7 किमी है, जो भारत के अन्य किसी भी पड़ोसी देश के साथ सबसे लंबी सीमा है।
- सीमा साझा करने वाले राज्य: पश्चिम बंगाल (2,216.7 किमी), असम (263 किमी), मेघालय (443 किमी), त्रिपुरा (856 किमी), मिजोरम (318 किमी)
भूगोल:
- यह सीमा घनी आबादी वाले क्षेत्रों, नदियों, पहाड़ियों और मैदानी इलाकों से होकर गुजरती है।
- भारत और बांगलादेश के बीच बड़ी नदियाँ, जैसे गंगा और ब्रह्मपुत्र, सीमा के पार बहती हैं, जो सीमा प्रबंधन को और जटिल बनाती हैं।
वर्तमान समस्या
- बॉर्डर गार्ड बांगलादेश (BGB) ने पश्चिम बंगाल के मालदा और कूच बिहार जिलों में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बाड़बंदी के निर्माण कार्य को रोकने की कोशिश की।
- 1975 के संयुक्त भारत-बांगलादेश सीमा प्राधिकरण दिशानिर्देशों के अनुसार, शून्य रेखा या अंतरराष्ट्रीय सीमा से 150 गज की दूरी पर कोई भी रक्षा संरचना नहीं बनाई जा सकती है। भारत इसे रक्षा संरचना नहीं मानता, जबकि बांगलादेश और पाकिस्तान इसे एक रक्षा संरचना मानते हैं।
- बांगलादेश की एकल पंक्ति बाड़बंदी (SRF) पर आपत्तियाँ दो प्रमुख कारणों से हैं: पहला, 1975 के समझौते के तहत 150 गज के भीतर बाड़बंदी पर प्रतिबंध; और दूसरा, बाड़बंदी के कारण सीमा के पास रहने वाले लोगों को होने वाली असुविधाएं।
कुछ अन्य पहलू
भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसका असर दोनों देशों के संबंधों पर पड़ता है। इस विवाद का समाधान और इसके ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं को समझना यूपीएससी जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित बिंदुओं में भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है:
1. इतिहास और पृष्ठभूमि:
- 1947 विभाजन: भारत और बांग्लादेश (तब पाकिस्तान का हिस्सा) के बीच सीमा विवाद की शुरुआत 1947 में हुई, जब भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन हुआ और पाकिस्तान के रूप में एक नया देश अस्तित्व में आया। पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से के बीच विशाल भू-भाग था, जिसे बाद में बांग्लादेश के रूप में पहचान मिली। यह भूमि बांग्लादेश के निर्माण के समय एक बंटवारे का कारण बनी।
- 1971 का युद्ध: बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान (1971 में) भारत ने बांग्लादेश के समर्थन में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़ा, जिसके बाद बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ। हालांकि, इस समय भी सीमा विवाद और क्षेत्रों को लेकर अनसुलझे मुद्दे थे, जैसे नदी और बाड़ की समस्याएँ।
2. सीमा विवाद और बाड़ (Fencing) मुद्दा:
- सीमा पर बाड़ का निर्माण: भारत ने अपनी सुरक्षा को लेकर बांग्लादेश के साथ अपनी सीमा पर बाड़ लगाने का निर्णय लिया। यह कदम सीमा पर घुसपैठ को रोकने और तस्करी की घटनाओं को कम करने के लिए लिया गया था। बांग्लादेश ने इस पर विरोध जताया, यह आरोप लगाते हुए कि इससे सीमा पर तनाव बढ़ेगा और द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन होगा।
- भारत का दृष्टिकोण: भारत ने इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में जरूरी बताया। भारत का कहना है कि सीमा पर बाड़ लगाने से आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी में कमी आएगी। सीमा क्षेत्र में असामाजिक तत्वों और अवैध प्रवासियों पर भी लगाम लगेगी।
- बांग्लादेश का विरोध: बांग्लादेश का कहना है कि इस बाड़ का निर्माण द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन है। बांग्लादेश ने भारतीय उच्चायुक्त को तलब कर इस मामले पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि इससे दोनों देशों के रिश्तों में और सीमा पर तनाव बढ़ सकता है।
3. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव:
- सीमा पर रहने वाले लोग: भारत और बांग्लादेश की सीमा पर कई ग्रामीण आबादी रहती है, जिन्हें इस बाड़ के निर्माण से समस्याओं का सामना करना पड़ा। बाड़ के कारण इन क्षेत्रों में आवागमन में बाधाएँ आईं, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित हुई।
- समाज और संस्कृति: दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध काफी गहरे हैं, और सीमा विवाद के कारण यह संबंध प्रभावित हो रहे हैं। विशेषकर व्यापार, यात्रा और परिवारों के बीच संपर्क में कठिनाई आ रही है।
4. राजनीतिक पहलू और द्विपक्षीय वार्ता:
- वार्ता की आवश्यकता: सीमा विवाद के समाधान के लिए दोनों देशों के बीच संवाद और वार्ता की आवश्यकता है। 2025 में उच्चस्तरीय वार्ता की योजना है, जिसमें इस सीमा विवाद, बाड़ के निर्माण, और सीमा पार अपराधों को लेकर गंभीर चर्चा की जाएगी।
- भारत और बांग्लादेश के रिश्ते: हालांकि सीमा विवाद के बावजूद, दोनों देशों के बीच आर्थिक और राजनीतिक सहयोग जारी है। बांग्लादेश भारत का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, और दोनों देशों ने विभिन्न मामलों में सहयोग किया है। लेकिन इस विवाद ने दोनों देशों के रिश्तों को तनावपूर्ण बना दिया है।
5. संभावित समाधान और उपाय:
- साझा समाधान की ओर: दोनों देशों को एक साझा समाधान पर पहुँचने के लिए सहयोग और समझौते की आवश्यकता है। यह महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों के बीच विश्वास का निर्माण हो और एक शांतिपूर्ण समाधान निकाला जाए, ताकि सीमा पर शांति बनी रहे और व्यापारिक रिश्ते मजबूत हों।
- प्रौद्योगिकी और बाड़ की प्रभावशीलता: भारत को सीमा पर सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए नई प्रौद्योगिकी और कस्टम नियमों का पालन करने की आवश्यकता हो सकती है। इसके अलावा, इस बाड़ के प्रभाव को हल करने के लिए दोनों देशों को कूटनीतिक उपायों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
6. भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद के महत्व:
- आंतरिक सुरक्षा: भारत के लिए यह विवाद आंतरिक सुरक्षा से संबंधित है, खासकर अवैध घुसपैठ और तस्करी की समस्या के समाधान के लिए। बांग्लादेश के लिए यह विवाद अपनी सांप्रदायिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर संवेदनशील है।
- UPSC के लिए तैयारी: इस विषय को लेकर UPSC के सामान्य अध्ययन और अंतरराष्ट्रीय संबंध के विषय में प्रश्न आ सकते हैं। उम्मीदवारों को यह समझना चाहिए कि यह विवाद केवल एक सीमाविवाद नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों की आंतरिक सुरक्षा, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं से जुड़ा हुआ है।
निष्कर्ष:
भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद एक जटिल और संवेदनशील मामला है, जिसे कूटनीतिक, सुरक्षा और मानवाधिकार के दृष्टिकोण से हल किया जाना चाहिए। यह विवाद न केवल सीमा पर तनाव पैदा करता है, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक रिश्तों को भी प्रभावित करता है। इस विवाद का समाधान दोनों देशों के दीर्घकालिक सहयोग और समझदारी पर निर्भर करेगा।
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