वैश्विक जल संकट और जलवायु परिवर्तन:
पृष्ठभूमि:
वर्तमान में, हर साल लगभग 458 अरब घन मीटर (bcm) पानी की कमी दर्ज की जाती है। हाल ही में Nature Communications में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यह संकट भविष्य में और भी गहरा सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि से जल की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन और अधिक बढ़ेगा।
मुख्य बिंदु
जल असंतुलन (Water Gaps) का अर्थ
- जल असंतुलन वह अंतर है जो नवीकरणीय जल उपलब्धता और जल खपत के बीच होता है, जबकि जल निकायों में पर्याप्त प्रवाह बनाए रखना आवश्यक होता है।
- शोधकर्ताओं ने जलवायु मॉडल के डेटा का उपयोग करके वर्तमान, 1.5°C और 3°C तापमान वृद्धि पर जल असंतुलन का आकलन किया।
जल असंतुलन के बढ़ते खतरे
- वर्तमान में जल असंतुलन झेल रहे क्षेत्र 1.5°C तापमान वृद्धि पर और अधिक गंभीर स्थिति का सामना करेंगे, और 3°C पर हालात और भी खराब हो जाएंगे।
- यह प्रभाव विशेष रूप से पूर्वी अमेरिका, चिली, भूमध्यसागरीय क्षेत्र, दक्षिण एवं पूर्वी भारत, और नॉर्थ चाइना प्लेन में स्पष्ट रूप से देखा जाएगा।
- कुछ क्षेत्र जो अब तक ज्यादा प्रभावित नहीं थे, जैसे इटली, मेडागास्कर, अमेरिका के पूर्वी तट (नॉर्थ कैरोलाइना और वर्जीनिया) और ग्रेट लेक्स क्षेत्र (विस्कॉन्सिन, मिनेसोटा, इलिनोइस), वहां भी हालात बिगड़ने की आशंका है।
- सऊदी अरब में 1.5°C पर जल संकट कम होने की संभावना है, लेकिन 3°C तापमान वृद्धि पर जल असंतुलन काफी बढ़ सकता है।
भारत में सबसे बड़ा जल असंतुलन
- भारत, अमेरिका, पाकिस्तान, ईरान और चीन में वर्तमान जलवायु में सबसे अधिक जल असंतुलन देखा जाता है।
- भारत में तापमान वृद्धि के सभी परिदृश्यों में सबसे अधिक जल असंतुलन बढ़ने का अनुमान है।
- 1.5°C गर्म जलवायु में भारत को अतिरिक्त 11.1 किमी³ प्रति वर्ष जल असंतुलन का सामना करना पड़ेगा।
गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन पर संकट
- वर्तमान जलवायु में, गंगा-ब्रह्मपुत्र, साबरमती, टिगरिस-यूफ्रेट्स, सिंधु (Indus) और नील (Nile) नदी घाटियों में सबसे अधिक जल असंतुलन देखा जाता है।
- 1.5°C तापमान वृद्धि पर, गंगा-ब्रह्मपुत्र, गोदावरी और मिसिसिपी-मिसौरी नदी घाटियों में जल असंतुलन तेजी से बढ़ेगा, जबकि साबरमती, कोलंबिया और उत्तर-पश्चिमी अमेरिका तथा नील घाटी में यह घट सकता है।
- 3°C तापमान वृद्धि पर, गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी में जल असंतुलन में सबसे अधिक वृद्धि होगी, इसके बाद सिंधु, मिसिसिपी-मिसौरी, चीन के तटीय क्षेत्र, गोदावरी और टिगरिस-यूफ्रेट्स नदी घाटियों में स्थिति और गंभीर हो जाएगी।
मुख्य निष्कर्ष और अनुमान
🌡 तापमान वृद्धि के साथ जल संकट की गंभीरता
🔹 1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग:
👉 पानी की कमी 6% तक बढ़ने की संभावना है।
👉 जल संसाधनों का असमान वितरण और अधिक तीव्र हो सकता है।
🔹 3 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग:
👉 पानी की कमी 15% तक बढ़ने का अनुमान है।
👉 यह स्थिति कृषि, पेयजल आपूर्ति और औद्योगिक उपयोग को प्रभावित करेगी।
💧 जल संकट के प्रमुख कारण
✔ बढ़ती जनसंख्या और जल की अधिक खपत
✔ भूजल भंडार का अत्यधिक दोहन
✔ जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा चक्र में परिवर्तन
✔ ग्लेशियरों का पिघलना, जिससे नदी जल प्रवाह में कमी
प्रभावित क्षेत्र और संभावित खतरे
🏜 सूखा प्रभावित क्षेत्र:
📌 दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश): गंगा और सिंधु नदी प्रणालियों पर प्रभाव
📌 अफ्रीका: सहारा और उप-सहारा क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता घटेगी
📌 मध्य पूर्व: पहले से ही जल संकट झेल रहे देशों में समस्या और बढ़ेगी
🌊 बढ़ते समुद्र स्तर का प्रभाव:
📌 तटीय क्षेत्रों में लवणीय जल का प्रवेश बढ़ेगा, जिससे पीने योग्य पानी की कमी होगी।
📌 नदियों और झीलों का जल स्तर गिर सकता है।
🌾 कृषि और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव:
📌 फसल उत्पादन पर संकट, जिससे खाद्य संकट उत्पन्न हो सकता है।
📌 सिंचाई जल की कमी से ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होंगी।
समाधान और संभावित उपाय
✅ जल संरक्षण और प्रबंधन:
✔ वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना
✔ भूजल पुनर्भरण तकनीकों का उपयोग
✔ जल उपयोग की दक्षता बढ़ाना (ड्रिप सिंचाई, स्मार्ट वाटर मैनेजमेंट)
✅ जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास:
✔ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी
✔ सतत कृषि तकनीकों का विकास
✔ वनों की कटाई रोकना और वृक्षारोपण बढ़ाना
✅ नीतिगत सुधार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
✔ सरकारों द्वारा जल सुरक्षा कानूनों को सख्ती से लागू करना
✔ सीमापार जल समझौतों को मजबूत करना
✔ जल संकट से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर वित्तीय और तकनीकी सहायता बढ़ाना
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन के कारण जल संकट आने वाले दशकों में और गंभीर रूप ले सकता है। यदि तात्कालिक और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट कृषि, उद्योग और मानव जीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित कर सकता है। जल संरक्षण, स्मार्ट जल प्रबंधन, और सतत विकास नीतियाँ अपनाकर ही इस चुनौती से निपटा जा सकता है।


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