बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश: धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर और ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण
पृष्ठभूमि
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वे लाउडस्पीकर, सार्वजनिक संबोधन प्रणाली (Public Address System) या अन्य ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों के डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावी तंत्र विकसित करें। यह निर्देश सभी धार्मिक स्थलों और संस्थानों पर समान रूप से लागू होगा, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।
यह याचिका धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर और एम्प्लीफायरों के अवैध उपयोग, अनुमेय डेसिबल सीमा से अधिक ध्वनि उत्पन्न करने और प्रतिबंधित समय सीमा के उल्लंघन के खिलाफ कार्रवाई में असफलता को लेकर दाखिल की गई थी।
मुख्य बिंदु
- धर्म और ध्वनि का संबंध:
- हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का आवश्यक हिस्सा नहीं है।
- किसी भी धर्म को मानने और उसकी प्रैक्टिस करने के अधिकार को संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है, लेकिन यह अधिकार अनुच्छेद 25 के तहत “सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता” के अधीन है।
- ध्वनि प्रदूषण और प्रभाव:
- ध्वनि प्रदूषण केवल शारीरिक स्वास्थ्य (सुनने की क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य) पर ही नहीं, बल्कि मानसिक शांति और सामाजिक जीवन पर भी बुरा प्रभाव डालता है।
- हाई कोर्ट ने बताया कि ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 (Noise Pollution (Regulation and Control) Rules, 2000) के तहत डेसिबल स्तर और समय सीमा को नियंत्रित किया गया है।
- महाराष्ट्र सरकार के लिए निर्देश:
- सभी जिलों में ध्वनि प्रदूषण की निगरानी के लिए एक प्रभावी प्रणाली लागू की जाए।
- धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और प्रशासन को जिम्मेदारी दी जाए।
- अनुमति प्राप्त संस्थानों और व्यक्तियों को ही ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों का सीमित उपयोग करने की अनुमति हो।
- समाज पर प्रभाव:
- कोर्ट ने जोर दिया कि “ध्वनि के बिना धर्म का पालन” करने की भावना को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- सभी धर्मों के बीच समानता और सौहार्द बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि कोई भी धर्म अपनी प्रैक्टिस के लिए दूसरों को असुविधा न पहुंचाए।
संबंधित कानून और नियम
- ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000:
- दिन और रात के समय के लिए अनुमेय डेसिबल स्तर तय किए गए हैं।
- रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग प्रतिबंधित है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860:
- धारा 268 (सार्वजनिक उपद्रव) और धारा 290 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
चुनौतियाँ और समाधान
- चुनौतियाँ:
- धार्मिक स्थलों पर कानून का पालन सुनिश्चित करना।
- जनता में जागरूकता की कमी।
- पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता।
- समाधान:
- धार्मिक स्थलों पर तकनीकी समाधान जैसे ध्वनि सीमित करने वाले उपकरण।
- आम जनता को जागरूक करना कि ध्वनि प्रदूषण का धार्मिकता से कोई संबंध नहीं है।
- सख्त कानून लागू करने और उल्लंघन पर कड़ी सजा।
निष्कर्ष
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास भी है। धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का मतलब यह नहीं कि दूसरों के अधिकारों का हनन किया जाए। ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए सख्त निगरानी और जनता की भागीदारी आवश्यक है।
यह फैसला सामाजिक शांति और सामंजस्य बनाए रखने के लिए एक मिसाल पेश करता है, जो भविष्य में ध्वनि प्रदूषण से संबंधित मुद्दों के समाधान में मार्गदर्शक साबित हो सकता है।
Leave a Reply