Table Of Contents
- आर्थिक समीक्षा 2024-25:
- 1. भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति:
- 2. क्षेत्रवार प्रदर्शन:
- 3. मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि:
- 4. मौद्रिक और वित्तीय क्षेत्र:
- 5. बाह्य क्षेत्र:
- 6. मध्यम अवधि का परिदृश्य:
- 7. निवेश और बुनियादी ढाँचा:
- 8. प्रमुख घटनाक्रम और सुधार:
- भारत की प्रमुख आर्थिक चुनौतियाँ (आर्थिक समीक्षा 2024-25):
- आगे की राह:
आर्थिक समीक्षा 2024-25:
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में आर्थिक समीक्षा 2024-25 प्रस्तुत की। इसमें सुधारों एवं विकास के लिये रोडमैप निर्धारित किया गया, जो केंद्रीय बजट 2025 का आधार है
1. भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति:
आर्थिक समीक्षा 2024-25 में भारत की अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर गहन विश्लेषण किया गया है। यह समीक्षा मौद्रिक और वित्तीय नीतियों, आंतरिक और बाहरी आर्थिक गतिविधियों, और विकास की दिशा को उजागर करती है।
- वृद्धि दर:
- भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.4% रहने का अनुमान है, जो पिछले वर्षों के औसत स्तर के करीब है।
- वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह दर 6.3% से 6.8% के बीच रहने का अनुमान है।
- आर्थिक गति की स्थिरता को देखते हुए, भारत की वृद्धि दर में वैश्विक मांग में सुधार और घरेलू सुधारों से मदद मिलेगी।
- वैश्विक व्यापार और निर्यात में वृद्धि भारत के विकास को प्रोत्साहित करेगी।
- मुद्रास्फीति:
- 2024-25 में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाया गया है। विशेष रूप से खाद्य और तेल की कीमतों में स्थिरता आई है, जिससे उपभोक्ता खर्च पर दबाव कम हुआ है।
- मुद्रास्फीति 4.5%-5% के बीच रहने की संभावना है, जो सरकार की मौद्रिक नीति के प्रभाव को दर्शाता है।
- मांग-आपूर्ति में संतुलन और कृषि क्षेत्र की वृद्धि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो रही है।
2. क्षेत्रवार प्रदर्शन:
- कृषि:
- कृषि क्षेत्र में इस वर्ष 5.7% की वृद्धि का अनुमान है, जो खाद्यान्न उत्पादन में सुधार को दर्शाता है।
- खरीफ उत्पादन के मजबूत परिणाम और फसल विविधीकरण योजनाओं से कृषि क्षेत्र को स्थिरता मिल रही है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए भारत सरकार ने प्रौद्योगिकी और स्मार्ट कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया है।
- उद्योग और विनिर्माण:
- विनिर्माण क्षेत्र में 6% की वृद्धि का अनुमान है। हालांकि, महंगे कच्चे माल और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला संकट के कारण कुछ क्षेत्रों में समस्या बनी हुई है।
- खुदरा व्यापार और ऑटोमोबाइल उद्योग ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि निर्माण उद्योग में कुछ समस्याएँ आई हैं।
- स्वचालित निर्माण, नवीन तकनीकी विकास, और स्मार्ट फैक्ट्री मॉडल से उत्पादन क्षमता में सुधार हो रहा है।
- सेवाएँ:
- सेवा क्षेत्र में 7.2% की वृद्धि देखी गई है, खासकर सूचना प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाएँ, हेल्थकेयर, और आतिथ्य उद्योगों में।
- डिजिटल सेवाएँ, ऑनलाइन शिक्षा, और सामाजिक मीडिया के क्षेत्र में मूल्यवर्धन हुआ है।
- स्मार्ट सिटी और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं ने सेवा क्षेत्र को बड़ा बढ़ावा दिया है।
3. मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि:
- मुद्रास्फीति में स्थिरता आ रही है, खासकर खाद्य और ऊर्जा कीमतों में सुधार के बाद।
- भारत सरकार ने कड़ी मौद्रिक नीति अपनाई है, जिससे मुद्रास्फीति को 4.5% के आस-पास बनाए रखने में सफलता मिली है।
- हालांकि, विदेशी आपूर्ति संकट और निर्यात दर में उतार-चढ़ाव मुद्रास्फीति पर दबाव डाल सकते हैं।
- आपूर्ति श्रृंखला में सुधार और आंतरिक उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाए जा रहे हैं।
4. मौद्रिक और वित्तीय क्षेत्र:
- मौद्रिक नीति में सुधार और बैंकिंग क्षेत्र में स्थिरता आ रही है।
- विदेशी मुद्रा भंडार 640.3 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है, जो भारत के आर्थिक आत्मनिर्भरता को सुदृढ़ करता है।
- वित्तीय प्रणाली में सुधार, जैसे कि ब्याज दरों में कमी और वित्तीय संस्थाओं का पुनर्निर्माण, ने निवेश और विकास को बढ़ावा दिया है।
- डिजिटल भुगतान और ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी के उपयोग से वित्तीय प्रणाली में संवेदनशीलता और पारदर्शिता आई है।
5. बाह्य क्षेत्र:
- विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है, और भारत के व्यापारिक साझेदार के साथ मजबूत संबंध विकसित हो रहे हैं।
- भारत के निर्यात में 8% तक वृद्धि का अनुमान है, खासकर सूचना प्रौद्योगिकी, खाद्य उत्पाद और औद्योगिक वस्तुओं में।
- वैश्विक व्यापार और संचार में भारत की स्थिति मजबूत हो रही है, और आगामी वर्ष में निर्यात में और वृद्धि हो सकती है।
6. मध्यम अवधि का परिदृश्य:
- भारत में संरचनात्मक सुधारों और नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं।
- शहरीकरण और कौशल विकास के लिए सरकार ने विशेष योजनाएँ बनाई हैं।
- स्मार्ट सिटी और विकसित ग्रामीण क्षेत्र के लिए नई नीतियाँ लागू की जा रही हैं।
7. निवेश और बुनियादी ढाँचा:
- पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के जरिए बुनियादी ढाँचे में निवेश को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- स्मार्ट सिटी परियोजनाओं, रेलवे नेटवर्क, सड़क निर्माण, और जलवायु परिवर्तन से संबंधित परियोजनाओं में भी निवेश बढ़ाया गया है।
- भारत सरकार ने सड़क परिवहन और रेलवे क्षेत्र में विशेष फोकस किया है, जिससे इन क्षेत्रों में विकास और बुनियादी ढाँचा मजबूत हो सके।
8. प्रमुख घटनाक्रम और सुधार:
- भारत सरकार ने कृत्रिम मेधा (AI), नवीकरणीय ऊर्जा, और हरित निर्माण जैसे क्षेत्रों में नए कदम उठाए हैं।
- स्वास्थ्य बीमा और शिक्षा क्षेत्र में सुधारों के कारण सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को मजबूती मिली है।
- भारत में महिलाओं के लिए विशेष रोजगार योजनाएँ लागू की गई हैं, जो रोजगार सृजन में मदद कर रही हैं।
भारत की प्रमुख आर्थिक चुनौतियाँ (आर्थिक समीक्षा 2024-25):
- वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएँ:
- वैश्विक मंदी और अन्य देशों में आर्थिक संकटों के कारण भारत को निर्यात में कमी का सामना करना पड़ सकता है। विशेष रूप से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान और मुद्रास्फीति की चुनौतियाँ भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल सकती हैं।
- भारत की व्यापार नीति और वैश्विक व्यापार भागीदारी को इन अनिश्चितताओं से बचने के लिए मजबूत किया जाना चाहिए।
- ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव:
- वैश्विक ऊर्जा बाजारों में अनिश्चितता, जैसे कच्चे तेल और गैस की कीमतों में उतार-चढ़ाव, भारत की ऊर्जा आपूर्ति और खर्च पर प्रभाव डाल सकता है। भारत एक ऊर्जा आयातक देश है, और ऊर्जा कीमतों में वृद्धि से देश की मुद्रास्फीति पर दबाव पड़ेगा, जो विकास में रुकावट डाल सकता है।
- कृषि क्षेत्र में समस्याएँ:
- जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादन में अनियमितता आ सकती है। अत्यधिक वर्षा या सूखा जैसे मौसम घटनाएँ खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकती हैं।
- कृषि में सुधारों और नवीनतम तकनीक की आवश्यकता है, ताकि उत्पादन की स्थिरता बनी रहे।
- रोजगार सृजन:
- नौकरी सृजन में कमी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है, विशेषकर युवा और शिक्षा प्राप्त वर्ग के लिए। बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के बीच रोजगार के अवसरों की कमी महसूस की जा रही है।
- कौशल विकास और स्वतंत्र उद्यमिता को बढ़ावा देना आवश्यक होगा।
- संरचनात्मक सुधारों की गति:
- भारत में संरचनात्मक सुधारों की प्रक्रिया में धीमी गति के कारण दीर्घकालिक आर्थिक विकास की संभावनाएँ प्रभावित हो सकती हैं। इसमें भ्रष्टाचार, कानूनी दिक्कतें और नौकरशाही जैसे मुद्दे भी आते हैं।
- इन सुधारों को तेजी से लागू करने के लिए प्रशासनिक तंत्र को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
- आधिकारिक वित्तीय स्थिरता:
- भारत की सरकारी ऋण में वृद्धि हो रही है, जिससे वित्तीय स्थिरता पर दबाव बन सकता है। राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक ऋण को नियंत्रित करने के लिए अधिक प्रभावी नीति उपायों की आवश्यकता है।
- सरकार को वित्तीय प्रबंधन में संतुलन बनाए रखते हुए विकास को बढ़ावा देना होगा।
- मुद्रास्फीति और जीवन यापन की लागत:
- मुद्रास्फीति और खाद्य कीमतों में वृद्धि, विशेष रूप से गरीब और मिडल क्लास परिवारों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। इसमें विशेष रूप से अनाज, दालें, और तेल जैसे आवश्यक उत्पाद शामिल हैं।
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के बढ़ने से परिवारों की खरीदारी की शक्ति कम हो सकती है।
- प्राकृतिक संसाधनों की कमी:
- जल संकट, प्राकृतिक संसाधनों की कमी और प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय मुद्दे भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और हरित विकास को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण होगा।
- सामाजिक असमानताएँ:
- आर्थिक असमानता में वृद्धि और सामाजिक भेदभाव जैसे मुद्दे भारत की दीर्घकालिक विकास दर पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और समान अवसरों के माध्यम से इन असमानताओं को दूर करना एक अहम कदम होगा।
- बाहरी कर्ज का दबाव:
- बाहरी ऋण में वृद्धि और विदेशी कर्जों का पुनर्भुगतान भारत की वित्तीय स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
- इससे भारत की मुद्रा नीति और ब्याज दर पर असर पड़ सकता है, जो निवेश और आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं।
आगे की राह:
भारत को संरचनात्मक सुधारों और नवीनता के जरिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी।
हरित ऊर्जा, कौशल विकास, और डिजिटल सेवाओं में निवेश से भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिलेगी।
नवीनतम प्रौद्योगिकियों का उपयोग और स्मार्ट शहरों के निर्माण से भारत की आर्थिक ताकत को और बढ़ावा मिलेगा।
स्रोत:
- PIB Press Releases
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