समाचार में क्यों?
• हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवाल उठाया कि औपनिवेशिक काल का एक कानून, नाटकीय प्रदर्शन अधिनियम, 1876, आज भी लागू क्यों है, जबकि भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं।
• यह बयान पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त करने के सरकार के प्रयासों के संदर्भ में दिया गया।
नाटकीय प्रदर्शन अधिनियम, 1876: क्या है यह कानून?
• यह कानून ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय रंगमंच और नाटकों पर नियंत्रण के लिए लाया गया था।
• इसका उद्देश्य ब्रिटिश विरोधी (Anti-British) और राष्ट्रवादी विचारों को दबाना था।
• ब्रिटिश सरकार को अधिकार मिला कि वह किसी भी नाटक, नाट्य मंडली या प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा सकती है, यदि वह सरकार के लिए “अप्रिय” हो।
प्रमुख प्रावधान
• “राज्य की सुरक्षा” के नाम पर प्रदर्शन प्रतिबंधित किए जा सकते हैं।
• सरकार को किसी भी नाटकीय प्रदर्शन को रोकने का अधिकार है यदि वह सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़काने वाला लगे।
• पुलिस को प्रदर्शनों को रोकने और दोषियों को दंडित करने का अधिकार दिया गया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
• यह कानून स्वदेशी आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश विरोधी विचारों के प्रसार को रोकने के लिए लाया गया था।
• विशेष रूप से बंगाल और महाराष्ट्र में ब्रिटिश सरकार की आलोचना करने वाले नाटकों को दबाने के लिए इस कानून का इस्तेमाल हुआ।
• रवींद्रनाथ टैगोर और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने इस कानून की निंदा की थी।
आधुनिक भारत में इस कानून की प्रासंगिकता
• आज़ाद भारत में यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ माना जाता है।
• 75 वर्षों बाद भी यह औपनिवेशिक कानून कई राज्यों में मौजूद है।
• सरकार ऐसे अप्रचलित कानूनों को खत्म करने के लिए प्रयासरत है।
सरकार द्वारा अप्रचलित कानूनों को हटाने का प्रयास
• 2014 से अब तक 2,000 से अधिक पुराने और अप्रासंगिक कानून निरस्त किए जा चुके हैं।
• सरकार का उद्देश्य लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता को मजबूत करना है।
मुख्य निष्कर्ष
नाटकीय प्रदर्शन अधिनियम (Dramatic Performances Act)
- इस अधिनियम के तहत, “कोई भी नाटक, पैंटोमाइम या अन्य नाट्य रूप, जो सार्वजनिक स्थान पर प्रदर्शित किया गया या किया जाने वाला था,” सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया जा सकता था यदि उसे लगता कि:
- यह अपमानजनक या मानहानिकारक था।
- यह कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष की भावना भड़का सकता था।
- यह उपस्थित लोगों को भ्रष्ट और पतित कर सकता था।
- यह कानून ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रवादी भावना को दबाने के लिए लागू किया गया था, खासकर 1875-76 में वेल्स के राजकुमार अल्बर्ट एडवर्ड की भारत यात्रा के बाद।
- इसी अवधि में अन्य कठोर कानून लागू किए गए थे, जैसे वर्नाक्युलर प्रेस अधिनियम, 1878 और देशद्रोह कानून, 1870।
- 2018 में मोदी सरकार ने इसे औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया, लेकिन यह कानून 1956 के बाद से ही प्रभावी रूप से अमान्य था।
- 1956 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे भारत के संविधान के विपरीत माना था।
भारत में अभी भी औपनिवेशिक कानून क्यों लागू हैं?
- संविधान का अनुच्छेद 372 यह निर्धारित करता है कि स्वतंत्रता के समय प्रभावी कानून जारी रहेंगे, जब तक कि उन्हें बदला या निरस्त नहीं किया जाता।
- हालांकि, औपनिवेशिक कानूनों को संवैधानिकता की पूर्वधारणा प्राप्त नहीं होती, यानी यदि कोई औपनिवेशिक कानून चुनौती दी जाती है, तो सरकार को इसकी वैधता साबित करनी पड़ती है।
- इसके विपरीत, स्वतंत्र भारत की संसद द्वारा पारित कानूनों को तब तक संवैधानिक माना जाता है जब तक कि उन्हें असंवैधानिक घोषित न कर दिया जाए।
- इसका मतलब यह है कि जब कोई नया कानून अदालत में चुनौती दी जाती है, तो याचिकाकर्ता को यह साबित करना पड़ता है कि कानून संविधान का उल्लंघन करता है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 2:
• संविधान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
• विधायी सुधार और कानूनी पुनरावलोकन।
• भारत में औपनिवेशिक कानूनों का प्रभाव।
GS Paper 1:
• भारत का आधुनिक इतिहास – औपनिवेशिक कानून और उनके प्रभाव।
निष्कर्ष:
नाटकीय प्रदर्शन अधिनियम, 1876 जैसे कानून ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के प्रतीक हैं। भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करने के लिए ऐसे कानूनों को निरस्त करना आवश्यक है।
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