सुर्खियों में क्यों
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने “तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल और अन्य, 2025″ मामले में स्नातकोत्तर (PG) मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिवास-आधारित आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया है। यह निर्णय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्ववर्ती फैसले के खिलाफ दायर अपील के संदर्भ में आया है, जिसमें पहले ही ऐसे आरक्षणों को समाप्त कर दिया गया था।
मुख्य बिंदु:
- अधिवास कोटा: यह एक आरक्षण प्रणाली है जिसके तहत राज्य अपने PG मेडिकल सीटों का एक हिस्सा उन उम्मीदवारों के लिए आरक्षित करते हैं जो उसी राज्य के निवासी हैं। केंद्र सरकार कुल सीटों के 50% के लिए काउंसलिंग आयोजित करती है, जबकि शेष 50% सीटों का आवंटन राज्य काउंसलिंग निकायों द्वारा किया जाता है, जिसमें राज्य अपने निवासियों के लिए कोटा निर्धारित करते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- समानता का उल्लंघन: न्यायालय ने माना कि PG मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिवास-आधारित आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। भारतीय नागरिकों को देश में कहीं भी निवास करने और कार्य करने का अधिकार है, और राज्य के निवास के आधार पर प्रवेश को प्रतिबंधित करना व्यावसायिक गतिशीलता में बाधा उत्पन्न करता है।
- योग्यता-आधारित प्रवेश: न्यायालय ने निर्देश दिया कि PG मेडिकल प्रवेश पूरी तरह से योग्यता पर आधारित होना चाहिए, जिसका निर्धारण राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) के माध्यम से किया जाए। संस्थान-आधारित आरक्षण के अलावा, राज्य कोटे की सीटों के लिए भी योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।
- पूर्व के प्रवेशों पर प्रभाव नहीं: इस निर्णय का प्रभाव पहले से अधिवास-आधारित आरक्षण के तहत दिए गए प्रवेशों पर नहीं पड़ेगा।
- अधिवास बनाम निवास: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि “अधिवास” का तात्पर्य किसी व्यक्ति के विधिक गृह से है, न कि निवास स्थान से। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 के अनुसार, भारत में एकल अधिवास की अवधारणा है, और राज्य-विशिष्ट अधिवास की अवधारणा विधिक रूप से मान्य नहीं है।
- पूर्ववर्ती निर्णय: न्यायालय ने 1984 के डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ मामले का उल्लेख किया, जिसमें MBBS पाठ्यक्रमों में निवास-आधारित आरक्षण की अनुमति दी गई थी। हालांकि, यह तर्क PG मेडिकल पाठ्यक्रमों पर लागू नहीं होता, जहां ऐसे आरक्षण को असंवैधानिक माना गया है।
शिक्षा में अधिवास-आधारित आरक्षण के गुण और दोष:
गुण:
- स्थानीय अवसर: यह स्थानीय छात्रों को शैक्षणिक संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और अवसर प्रदान करता है, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में।
- आर्थिक सशक्तीकरण: स्थानीय समुदायों को उच्च शिक्षा की बेहतर पहुंच प्रदान करके उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करता है।
- स्थानीय विकास को बढ़ावा: शिक्षित कार्यबल के निर्माण में योगदान देता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।
दोष:
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त देश में कहीं भी स्वतंत्र रूप से आवागमन और शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
- राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव: अधिवास-आधारित कोटा राष्ट्र को विभाजित कर सकता है और एकीकृत शैक्षिक और व्यावसायिक परिवेश के निर्माण में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- आर्थिक अकुशलता: शीर्ष प्रतिभाओं तक पहुंच सीमित होने से नवाचार में बाधा उत्पन्न होती है और निवेश प्रभावित होता है, जो निजी क्षेत्र के लिए हानिकारक हो सकता है।
- मूल कारणों का समाधान नहीं: अपर्याप्त शिक्षा बुनियादी ढांचा, परीक्षाओं के लिए अपर्याप्त मार्गदर्शन, और शैक्षणिक पाठ्यक्रम एवं उद्योग कौशल आवश्यकताओं के बीच बेमेल जैसे मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।
आगे की राह:
- योग्यता-आधारित प्रवेश: विशेष रूप से स्नातकोत्तर स्तर पर, निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय पृष्ठभूमि के बजाय कौशल और योग्यता को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
- शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार: स्थानीय छात्रों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, शिक्षक प्रशिक्षण, और कौशल विकास में निवेश की आवश्यकता है।
- सहायता प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण: गरीबी और प्रवासन के निवारण के लिए पहलों सहित सामाजिक सहायता को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित किया जाना चाहिए, ताकि सुभेद्य समूहों की उच्च शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक पहुंच सुनिश्चित हो सके।
Leave a Reply