बैंक जमा बीमा कवर बढ़ाने पर सरकार का विचार: एक व्यापक विश्लेषण
परिचय:
सरकार वर्तमान में बैंक जमाओं (Bank Deposits) पर बीमा कवर की सीमा को ₹5 लाख से बढ़ाने पर विचार कर रही है। यह कदम जमाकर्ताओं को अधिक सुरक्षा प्रदान करने और बैंकिंग प्रणाली में विश्वास बढ़ाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। वर्तमान में, डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) द्वारा प्रति जमाकर्ता, प्रति बैंक ₹5 लाख तक की राशि बीमित की जाती है।
बीमा कवर बढ़ाने की आवश्यकता क्यों?
- बैंकिंग संकट के मामले:
- हाल के वर्षों में PMC बैंक, Yes Bank, और लक्ष्मी विलास बैंक जैसे बैंकों में वित्तीय संकट देखने को मिला, जिससे जमाकर्ताओं को अपने धन की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ी।
- ₹5 लाख की सीमा से अधिक जमा रखने वाले ग्राहकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- महंगाई और वित्तीय सुरक्षा:
- 2020 में ₹5 लाख की सीमा तय की गई थी, लेकिन महंगाई और आर्थिक विकास के कारण अब इसे और बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है।
- कई विकसित देशों में बीमा कवर GDP के अनुपात में अधिक होता है, जबकि भारत में यह सीमित है।
- बचत बढ़ाने और बैंकिंग में विश्वास मजबूत करने के लिए:
- बीमा कवर बढ़ाने से लोग बैंकों में अधिक पैसा जमा करने को प्रेरित होंगे।
- इससे जमाकर्ताओं का भरोसा बैंकिंग प्रणाली में बना रहेगा और संभावित बैंकिंग संकट से बचाव होगा।
मुख्य बिंदु
- डिपॉज़िट इंश्योरेंस कवर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की एक विशेष इकाई, डिपॉज़िट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) द्वारा प्रदान किया जाता है।
- DICGC का उद्देश्य “छोटे जमाकर्ताओं” को बैंक विफलता की स्थिति में अपनी बचत खोने के जोखिम से बचाना है।
- प्रत्येक जमाकर्ता को ₹5 लाख तक का बीमा कवर मिलता है, जो उसी बैंक की सभी शाखाओं में उसके सभी खातों पर लागू होता है।
- DICGC सभी व्यावसायिक बैंकों, भारत में संचालित विदेशी बैंक शाखाओं, स्थानीय क्षेत्रीय बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों का बीमा करता है। हालांकि, प्राथमिक सहकारी समितियाँ (Primary Co-operative Societies) DICGC द्वारा कवर नहीं की जाती हैं।
- बचत, फिक्स्ड, चालू और आवर्ती जमा खाते बीमित होते हैं। लेकिन विदेशी, केंद्रीय और राज्य सरकारों की जमा राशि और अंतर-बैंक जमाओं (inter-bank deposits) पर बीमा कवर लागू नहीं होता।
- बीमा प्रीमियम का भुगतान बीमित बैंक द्वारा किया जाता है। DICGC, सदस्य वित्तीय संस्थानों से उनकी जोखिम प्रोफ़ाइल के आधार पर एक समान या भिन्न प्रीमियम दर पर बीमा शुल्क वसूलता है।
DICGC बीमा कवरेज की सीमा कैसे काम करती है?
- 2021 में, DICGC अधिनियम, 1961 में धारा 18A जोड़ी गई, जिससे बैंक पर प्रतिबंध लगने की स्थिति में जमाकर्ताओं को उनकी जमा राशि का आंशिक भुगतान और समयबद्ध तरीके से बीमा कवर के तहत राशि प्राप्त करने की सुविधा मिली।
- वर्तमान में, DICGC बैंक जमाओं पर ₹5 लाख तक का बीमा कवर 90 दिनों के भीतर प्रदान करता है, यदि RBI द्वारा बैंक पर कोई प्रतिबंध लगाया गया हो।
- DICGC मूलधन और ब्याज दोनों को कवर करता है, लेकिन कुल बीमा सीमा ₹5 लाख तक ही होती है। उदाहरण के लिए:
- यदि किसी जमाकर्ता के खाते में कुल ₹4,99,800 हैं (जिसमें ₹4,90,000 मूलधन और ₹9,800 ब्याज शामिल है), तो DICGC पूरी राशि ₹4,99,800 का बीमा कवर प्रदान करेगा।
- यदि किसी जमाकर्ता के खाते में ₹5,00,000 (मूलधन) + ₹10,000 (ब्याज) जमा हैं, तो बीमा सीमा पूरी हो चुकी होगी, और ₹10,000 का ब्याज कवर नहीं किया जाएगा।
- यदि बैंक दिवालिया (liquidation) होता है, तो DICGC दिवालिया अधिकारी (liquidator) को प्रत्येक जमाकर्ता के लिए ₹5 लाख तक की राशि का भुगतान बैंक के दिवालिया होने की सूचना मिलने के दो महीने के भीतर करता है।
- दिवालिया अधिकारी को यह राशि सही जमाकर्ताओं तक वितरित करनी होती है।
संभावित लाभ:
✅ जमाकर्ताओं को अधिक सुरक्षा: बैंक विफलता की स्थिति में अधिक राशि सुरक्षित होगी।
✅ बैंकिंग प्रणाली में विश्वास बढ़ेगा: लोग बैंकों में ज्यादा पैसा जमा करने के लिए प्रेरित होंगे।
✅ छोटे और मध्यम बचतकर्ताओं को राहत: वे अपने जमा को लेकर अधिक आश्वस्त रहेंगे।
संभावित चुनौतियाँ:
❌ बैंकों पर वित्तीय दबाव: उच्च बीमा कवर से DICGC की देनदारियाँ बढ़ सकती हैं, जिससे बैंकों को अधिक प्रीमियम चुकाना पड़ सकता है।
❌ नैतिक जोखिम (Moral Hazard): उच्च बीमा कवर से कुछ बैंकों की वित्तीय अनुशासनहीनता बढ़ सकती है।
❌ सरकार पर संभावित वित्तीय बोझ: यदि बैंक विफलता के मामले बढ़े, तो सरकार को अधिक पूंजी झोंकनी पड़ सकती है।
अन्य देशों की तुलना:
भारत में यह सीमा अभी भी कई देशों की तुलना में कम है, जिससे इसे बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है।
सरकार का संभावित कदम और भविष्य की दिशा:
- सरकार विभिन्न हितधारकों (RBI, DICGC, बैंकिंग संस्थानों) से चर्चा कर रही है।
- ₹10 लाख तक की बीमा सीमा पर विचार किया जा सकता है।
- बैंकों से लिए जाने वाले प्रीमियम में बदलाव संभव है।
- डिजिटल बैंकिंग और नए वित्तीय नियमों को ध्यान में रखते हुए सुधार किए जा सकते हैं।
निष्कर्ष:
बैंक जमा बीमा कवर को बढ़ाना एक सकारात्मक कदम हो सकता है, जिससे जमाकर्ताओं को अधिक सुरक्षा मिलेगी और बैंकिंग प्रणाली में विश्वास बढ़ेगा। हालाँकि, सरकार को इसके दीर्घकालिक प्रभावों और वित्तीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित निर्णय लेना होगा। यदि यह सीमा बढ़ती है, तो यह भारत के बैंकिंग सेक्टर के लिए एक बड़ा सुधार साबित हो सकता है।
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