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Daily Current Affairs For UPSC IAS | 19 January 2025


DAILY Current Affairs Analysis For UPSC Pre And Mains Examination

Daily Archive

PPI धारकों को UPI लेनदेन की सुविधा – UPSC PRELIMS POINTER 2025

चर्चा में क्यों

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में अपने नियमों में संशोधन किया है, जिससे पूर्ण केवाईसी प्रीपेड भुगतान इंस्ट्रूमेंट (PPI) ( prepaid payment instrument ) धारकों को थर्ड पार्टी UPI ऐप के माध्यम से एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) लेनदेन करने की अनुमति दी गई है। इससे पहले, केवल बैंक-निर्मित UPI ऐप्स के माध्यम से ही UPI लेनदेन की अनुमति थी, लेकिन अब PPI धारकों को भी इसे उपयोग करने का अधिकार मिलेगा। इस निर्णय के बाद, PPI कंपनियां और ग्राहक डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में और भी अधिक सुविधा और लचीलापन प्राप्त करेंगे।


मुख्य बिंदु (Key Points):

  1. पूर्ण केवाईसी PPI क्या है?:
    • PPI (Prepaid Payment Instruments) ऐसे डिजिटल भुगतान उपकरण होते हैं जो उपयोगकर्ताओं को पैसे लोड करने और विभिन्न लेनदेन करने की अनुमति देते हैं।
    • पूर्ण केवाईसी (Know Your Customer) का मतलब है कि उपयोगकर्ता ने अपनी पहचान सत्यापित करवाई है, जिससे अधिक सुरक्षा और भरोसेमंद लेनदेन सुनिश्चित होता है।
    • PPI उदाहरण: डिजिटल वॉलेट्स (जैसे Paytm, PhonePe), प्रीपेड गिफ्ट कार्ड्स, और अन्य भुगतान ऐप्स।
  2. UPI (Unified Payments Interface) का महत्व:
    • UPI एक रियल-टाइम डिजिटल पेमेंट सिस्टम है, जिसे भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा विकसित किया गया है।
    • UPI का मुख्य उद्देश्य भारत में डिजिटल लेन-देन को सरल, तेज, और सुरक्षित बनाना है।
    • UPI के जरिए उपयोगकर्ता अपने बैंक खातों से सीधे पैसे भेज सकते हैं और प्राप्त कर सकते हैं, साथ ही अन्य डिजिटल भुगतान सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं।
  3. RBI का नया आदेश:
    • RBI ने अपने आदेश में पूर्ण केवाईसी PPI धारकों को थर्ड पार्टी UPI ऐप्स के माध्यम से UPI लेनदेन करने की अनुमति दी है।
    • इसका मतलब है कि अब PPI धारक जैसे Paytm, PhonePe, Google Pay आदि पर अपने PPI खातों को लिंक करके UPI लेनदेन कर सकते हैं, जबकि पहले यह केवल बैंक-आधारित ऐप्स (जैसे BHIM UPI) तक सीमित था।
    • इससे PPI कंपनियों को ग्राहकों को और अधिक भुगतान विकल्प और सेवाएँ प्रदान करने की अनुमति मिलेगी।
  4. PPI और UPI के संयोजन के फायदे:
    • इंटरऑपरेबिलिटी: अब PPI और UPI के बीच इंटरऑपरेबिलिटी (सहयोगात्मकता) बढ़ेगी, जिससे ग्राहक और व्यापारियों को अधिक लचीलापन मिलेगा।
    • डिजिटल भुगतान का विस्तार: यह कदम डिजिटल भुगतान को और अधिक बढ़ावा देने का प्रयास है, जिससे अधिक लोग UPI का उपयोग करने के लिए प्रेरित होंगे।
    • ग्राहक अनुभव में सुधार: PPI धारकों के लिए अब लेन-देन की प्रक्रिया और अधिक सरल और सुविधाजनक हो जाएगी। वे अपने वॉलेट बैलेंस का उपयोग सीधे UPI लेन-देन के लिए कर सकेंगे।
    • दूरी खत्म होगी: बैंक और PPI के बीच की दूरी खत्म होगी, और ग्राहकों को एक ही ऐप से सारे डिजिटल भुगतान करने की सुविधा मिलेगी।
  5. सुरक्षा और अनुपालन:
    • केवाईसी और सुरक्षा: यह निर्णय केवल पूर्ण केवाईसी PPI धारकों के लिए है, जिसका मतलब है कि केवल सत्यापित और सुरक्षित खातों को UPI लेनदेन करने की अनुमति मिलेगी। इससे धोखाधड़ी और धोखाधड़ी के जोखिम कम होंगे।
    • अनुपालन: PPI कंपनियों को इस निर्णय के तहत RBI के सभी निर्देशों का पालन करना होगा, जो उनके ग्राहकों के डेटा सुरक्षा और गोपनीयता की रक्षा करता है।
  6. आर्थिक और डिजिटल भुगतान क्षेत्र पर प्रभाव:
    • डिजिटल भुगतान में वृद्धि: इस फैसले से भारत में डिजिटल भुगतान की गति को तेज करने की उम्मीद है, खासकर उन उपयोगकर्ताओं के लिए जो PPI सेवाओं का उपयोग करते हैं।
    • नए व्यापार अवसर: PPI कंपनियों को नए व्यापार अवसर मिलेंगे क्योंकि वे UPI भुगतान का लाभ उठा सकेंगे और अधिक सेवाएँ प्रदान कर सकेंगे।
    • व्यापारियों के लिए फायदेमंद: व्यापारियों को भी नए ग्राहकों तक पहुंच प्राप्त होगी, क्योंकि UPI के माध्यम से भुगतान करने के तरीके अधिक लोकप्रिय होंगे।
  7. प्रभाव:
    • उपभोक्ताओं पर प्रभाव: उपभोक्ताओं के लिए यह निर्णय सकारात्मक है, क्योंकि अब उन्हें अधिक विकल्प मिलेंगे, जिससे वे अपने भुगतान अधिक सहजता से कर सकेंगे। PPI वॉलेट से सीधे UPI भुगतान करने का विकल्प मिलने से डिजिटल भुगतान और अधिक सुलभ हो जाएगा।
    • PPI कंपनियों का विकास: PPI कंपनियों के लिए यह एक बड़ा अवसर है क्योंकि वे UPI भुगतान को एकीकृत करके अपनी सेवाओं का विस्तार कर सकेंगी।

निष्कर्ष:

RBI द्वारा PPI धारकों को UPI लेन-देन की अनुमति देने का निर्णय भारत में डिजिटल भुगतान क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। इससे न केवल उपभोक्ताओं के लिए डिजिटल भुगतान के विकल्प बढ़ेंगे, बल्कि यह वित्तीय समावेशन, सुरक्षा और व्यापारियों के लिए नए अवसर भी उत्पन्न करेगा। यह कदम भारतीय भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक संवेदनशील और लचीलापन प्रदान करेगा, जो UPI को और अधिक लोकप्रिय बनाएगा।


UPSC Prelims के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. RBI और भुगतान प्रणाली:
    • RBI का कार्यभार भारत में वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और विकास सुनिश्चित करना है। यह निर्णय RBI के वित्तीय समावेशन और डिजिटल भुगतान नीति के अनुरूप है।
    • UPSC में रिजर्व बैंक और भुगतान प्रणाली के संबंध में प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
  2. डिजिटल भुगतान और वित्तीय समावेशन:
    • डिजिटल भुगतान और वित्तीय समावेशन पर UPSC में प्रश्न हो सकते हैं, और यह निर्णय इस दिशा में एक कदम है।
    • UPI को लेकर UPSC में डिजिटल भुगतान प्रणाली और NPCI (National Payments Corporation of India) के बारे में प्रश्न हो सकते हैं।
  3. रिजर्व बैंक की नीतियाँ:
    • RBI की नीतिगत घोषणाएँ, जैसे PPI के लिए UPI लेन-देन की अनुमति, भारतीय आर्थिक नीति में एक महत्वपूर्ण पहल है और UPSC में इसका विश्लेषण किया जा सकता है।

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कोकबोरोक भाषा और त्रिपुरा विधानसभा में विरोध प्रदर्शन – UPSC Prelims Pointer 2025

त्रिपुरा विधानसभा में विरोध प्रदर्शन: त्विप्रा छात्र संघ (TSF) और कोकबोरोक भाषा की रोमन लिपि की मांग

चर्चा में क्यों

हाल ही में त्रिपुरा विधानसभा के प्रवेश द्वार पर त्विप्रा छात्र संघ (TSF) के सदस्यों ने एक विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने कोकबोरोक भाषा को पाठ्यपुस्तकों और सरकारी कार्यों में रोमन लिपि के साथ शामिल करने की मांग की। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान छात्रों को हिरासत में लिया गया। कोकबोरोक, एक चीनी-तिब्बती भाषा है, जिसे त्रिपुरा में एक प्रमुख आदिवासी भाषा के रूप में बोला जाता है।


मुख्य बिंदु (Keypoints):

  1. कोकबोरोक भाषा और इसकी महत्ता:
    • कोकबोरोक त्रिपुरा में ट्राइबल समुदायों द्वारा बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है।
    • यह भाषा चीनी-तिब्बती भाषा परिवार से संबंधित है और त्रिपुरा के विभिन्न आदिवासी समूहों के बीच संचार का मुख्य साधन है।
    • कोकबोरोक को सरकारी कार्यों में जगह देने का प्रस्ताव त्रिपुरा के आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान और भाषा के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
  2. त्विप्रा छात्र संघ (TSF):
    • TSF त्रिपुरा के आदिवासी छात्रों का एक प्रमुख संगठन है, जो अपने अधिकारों की रक्षा के लिए समय-समय पर सक्रिय रहता है।
    • TSF का यह विरोध त्रिपुरा में आदिवासी समुदायों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक बड़ी पहल है।
    • संगठन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी छात्रों के लिए बेहतर शिक्षा, संस्कृति और अधिकारों की लड़ाई लड़ना है।
  3. राज्य सरकार की प्रतिक्रिया:
    • त्रिपुरा सरकार ने इस मुद्दे पर अभी तक आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन राजनीतिक नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों ने स्थिति को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की बात की है।
    • कई राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर पक्ष और विपक्षी दोनों ही दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं।
  4. संविधानिक और कानूनी दृष्टिकोण:
    • भारतीय संविधान में आदिवासी भाषाओं को संरक्षण देने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत आदिवासी समुदायों की भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण के लिए राज्य और केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया है।
    • इस मामले में आदिवासी भाषा अधिकार और सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण करने की दिशा में सुधार की आवश्यकता हो सकती है।
  5. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर भाषा की स्थिति:
    • त्रिपुरा में बांगला को आधिकारिक भाषा के रूप में माना गया है, लेकिन आदिवासी समुदायों के लिए कोकबोरोक भाषा का महत्व बढ़ता जा रहा है।
    • इसके अलावा, रोमन लिपि का प्रयोग डिजिटल और वैश्विक स्तर पर संवाद को सुविधाजनक बना सकता है, विशेषकर सोशल मीडिया और तकनीकी क्षेत्र में।

कोकबोरोक भाषा

1. व्युत्पत्ति और भाषाई परिवार:

  • कोकबोरोक एक चीनी-तिब्बती भाषा परिवार की सदस्य है, जो मुख्य रूप से त्रिपुरा राज्य के आदिवासी समुदायों द्वारा बोली जाती है।
  • यह भाषा त्रिपुरा के विभिन्न आदिवासी समूहों, विशेष रूप से बृजमुखी, त्रिपुरी, रियांग, और अन्य आदिवासी जनजातियों के बीच प्रमुख रूप से बोली जाती है।
  • कोकबोरोक की उत्पत्ति का संबंध तिब्बती-बर्मी भाषाओं से माना जाता है, जिनका प्रयोग पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न हिस्सों में होता है।

2. समुदाय:

  • कोकबोरोक मुख्य रूप से त्रिपुरा राज्य में बोली जाती है, जहाँ के आदिवासी समुदायों में यह भाषा सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
  • त्रिपुरा के ट्राइबल समुदायों जैसे त्रिपुरी, रियांग, और बृजमुखी इसे अपने दैनिक जीवन और पारंपरिक गतिविधियों में उपयोग करते हैं।
  • कोकबोरोक को सरकारी भाषा के रूप में भी मान्यता प्राप्त है, और यह भाषा संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है, लेकिन इसे महत्वपूर्ण आदिवासी भाषा के रूप में पहचान मिली है।

3. लिपि और लेखन:

  • कोकबोरोक को बांगला लिपि में लिखा जाता है, जो त्रिपुरा में पारंपरिक रूप से प्रयुक्त है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से कोकबोरोक के लिए रोमन लिपि का उपयोग बढ़ रहा है, खासकर डिजिटल मीडिया और शिक्षा के क्षेत्र में।
  • कोकबोरोक के लिए रोमन लिपि का समर्थन बढ़ाने की मांग इस समय राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का हिस्सा है।
  • बांगला लिपि में कोकबोरोक लिखने की पारंपरिक प्रक्रिया में, उच्चारण और ध्वनियों के अंतर को ध्यान में रखते हुए बांगला लिपि को अनुकूलित किया जाता है।

4. इतिहास:

  • कोकबोरोक का इतिहास प्राचीन और समृद्ध है, और यह क्षेत्रीय आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
  • इस भाषा का विकास मुख्य रूप से त्रिपुरा और उसके आस-पास के क्षेत्रों में हुआ। पहले यह केवल मौखिक रूप से बोली जाती थी, लेकिन बाद में इसके लेखन की प्रक्रिया भी विकसित हुई।
  • 19वीं और 20वीं सदी में, जब ब्रिटिश राज था, तब त्रिपुरा में प्रशासनिक कार्यों और शिक्षा के लिए बांगला भाषा का प्रयोग बढ़ने लगा, जिससे कोकबोरोक की महत्वता कम हो गई।
  • 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में, कोकबोरोक भाषा के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के लिए कई प्रयास किए गए हैं, जिसमें बालकों के लिए कोकबोरोक पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन, और बांगला लिपि के साथ इसके लिखने की प्रक्रिया को संस्थागत रूप देना शामिल है।

5. कोकबोरोक का साहित्य और सांस्कृतिक योगदान:

  • कोकबोरोक का साहित्य और लोककला संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसमें कविता, गीत, और कहानी प्रमुख हैं, जो आदिवासी समुदायों की परंपराओं और जीवन शैली को दर्शाते हैं।
  • लोक संगीत और नृत्य जैसे कोकबोरोक गीत और आदिवासी नृत्य भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बने हुए हैं। यह संगीत और नृत्य कोकबोरोक भाषा के साथ गाए जाते हैं, जिससे संस्कृति और भाषा का गहरा संबंध है।
  • कोकबोरोक में धार्मिक और सांस्कृतिक कथाएँ प्रमुख होती हैं, जो स्थानीय समाज और जीवन की घटनाओं को दर्शाती हैं।

6. भविष्य और संवर्धन:

  • कोकबोरोक की भाषाई स्थिति की बात करें तो, इसे राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता मिलने की दिशा में कुछ कदम उठाए गए हैं, जैसे कि इसे शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकारने का प्रस्ताव और रोमन लिपि को शामिल करने की मांग।
  • त्रिपुरा सरकार और अन्य संगठन कोकबोरोक को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रयासरत हैं।
  • प्रौद्योगिकी और डिजिटल दुनिया में कोकबोरोक के प्रचार-प्रसार के लिए कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों और ऐप्स का निर्माण हो रहा है, ताकि इसे युवा पीढ़ी में बढ़ावा दिया जा सके।

7. कोकबोरोक और राजनीति:

  • कोकबोरोक भाषा के संदर्भ में राजनीतिक सक्रियता बढ़ी है। त्विप्रा छात्र संघ (TSF) और अन्य संगठनों द्वारा इसकी राजनीतिक मान्यता और संविधानिक संरक्षण की मांग की जाती रही है।
  • कुछ नेताओं और राजनीतिक दलों ने इसे राज्य भाषा बनाने की मांग की है, जबकि कुछ ने इसे रोमन लिपि में मान्यता देने की भी बात की है।

निष्कर्ष:

कोकबोरोक एक महत्वपूर्ण आदिवासी भाषा है, जो त्रिपुरा राज्य के आदिवासी समुदायों के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसे लिपि और लेखन के संदर्भ में भी सुधार और संवर्धन की आवश्यकता है, ताकि यह आधुनिक युग के साथ प्रासंगिक बनी रहे। इसकी संविधानिक और सरकारी मान्यता और रोमन लिपि के साथ इसका प्रचार इसके अस्तित्व और विकास को सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।


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ब्लड मनी ( Blood money and plea bargaining )

चर्चा में क्यों

यमन में एक भारतीय नर्स को उसके व्यापारिक साझेदार की कथित हत्या के आरोप में मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, उसे बरी करने के लिए शरिया कानून के तहत ब्लड मनी (दीया) का इस्तेमाल किया गया। यह घटना धार्मिक और कानूनी विवाद का कारण बनी और इसके निहितार्थों पर बहस फिर से शुरू हो गई है।


मुख्य बिंदु (Key Points):

  1. ब्लड मनी (दीया) का मतलब और शरिया कानून:
    • ब्लड मनी (दीया): शरिया कानून के तहत दी जाने वाली वह धनराशि है जो हत्यारे द्वारा पीड़ित परिवार को दी जाती है, जिससे पीड़ित परिवार के सदस्य दोषी को माफ कर देते हैं। यह एक प्रकार का मुआवजा होता है, जिसका उद्देश्य हत्या के मामले को समाप्त करना और परिवारों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।
    • शरिया कानून: इस्लामिक कानून का एक प्रमुख हिस्सा है जो इस्लामी धर्म, व्यवहार और न्याय व्यवस्था को नियंत्रित करता है। इसमें कई अपराधों के लिए कठोर सजा के प्रावधान होते हैं, जैसे हत्या और चोरी के मामलों में मृत्युदंड, जबकि कुछ मामलों में दीया या मुआवजा देने का प्रावधान होता है।
  2. भारतीय नर्स का मामला:
    • यमन में भारतीय नर्स को व्यापारिक साझेदार की हत्या के आरोप में मृत्युदंड की सजा दी गई। हालांकि, बाद में ब्लड मनी (दीया) के माध्यम से उसे बरी करने का प्रस्ताव दिया गया।
    • ब्लड मनी के अंतर्गत पीड़ित परिवार से समझौता हुआ, और परिवार ने मुआवजा स्वीकार कर लिया, जिससे नर्स को बरी करने की प्रक्रिया शुरू हुई।
  3. निहितार्थों पर बहस:
    • सजा और न्याय की प्रक्रिया: यह मामला सजा और न्याय के संदर्भ में गंभीर सवाल खड़ा करता है। यदि ब्लड मनी द्वारा अपराधी को माफ किया जा सकता है, तो क्या यह न्यायपूर्ण है? क्या यह कानूनों और मानवीय अधिकारों के खिलाफ नहीं है?
    • मानवाधिकार और न्याय: कुछ आलोचकों का कहना है कि यह मानवाधिकार के दृष्टिकोण से अनुचित है, क्योंकि अपराधी को दीया के माध्यम से दोषमुक्त किया गया है, जो अन्यथा मृत्युदंड के योग्य था।
    • धार्मिक न्याय के विपरीत: अन्य लोग यह मानते हैं कि शरिया कानून के तहत दी जाने वाली दीया एक न्यायिक प्रक्रिया है, जो न्यायालयों के सामने पेश किया गया विकल्प हो सकता है।
  4. भारत और यमन के रिश्ते:
    • इस घटना ने भारत-यमन संबंधों में भी कुछ जटिलताएँ उत्पन्न की हैं। यमन में भारतीय प्रवासियों की बड़ी संख्या है, और ऐसे मामलों में भारत का रुख भी महत्वपूर्ण होता है।
    • भारत सरकार ने इस मामले को लेकर यमन सरकार के साथ संवाद स्थापित किया, ताकि भारतीय नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और न्याय की प्रक्रिया में पारदर्शिता हो।
  5. सजा और मुआवजा (दीया) की प्रक्रिया का वैश्विक दृष्टिकोण:
    • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने मृत्युदंड की सजा को अमानवीय और असंवेदनशील करार दिया है, और इसके खिलाफ कई देशों ने मृत्युदंड को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाए हैं।
    • कुछ देशों में मुआवजा (दीया) के प्रावधानों को सजा में ढील देने के रूप में माना जाता है, जबकि अन्य देशों में यह प्रथा पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है।
  6. न्यायपालिका और न्याय के सिद्धांत:
    • न्याय और दोषमुक्ति का सिद्धांत, जहां तक कानूनी व्यवस्था का सवाल है, कभी-कभी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के साथ तालमेल बिठाता है।
    • दीया के जरिए मुआवजा देने की प्रक्रिया न्याय का एक हिस्सा हो सकती है, लेकिन सजा की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करती है। क्या पीड़ित परिवार का चुनाव न्यायपूर्ण तरीके से होता है? क्या न्याय का सामना सभी अपराधियों के लिए समान रूप से होता है?


ब्लड मनी (दीया) एक प्राचीन परंपरा है, जो शरिया कानून के तहत अपराध के मामलों में प्रायश्चित और मुआवजे के रूप में लागू होती है। इसमें अपराधी को माफ करने के लिए पीड़ित परिवार या व्यक्ति से मुआवजा (धनराशि) लिया जाता है। यह विशेष रूप से हत्या के मामलों में लागू होता है, जहां हत्या के बदले मृतक के परिवार को निर्धारित राशि (दीया) दी जाती है।

भारत में ब्लड मनी (दीया) की स्थिति और इसका कानूनी पहलू कुछ जटिल है क्योंकि भारत का कानूनी ढांचा संविधान, भारत दंड संहिता (IPC) के मिश्रण पर आधारित है। भारत में ब्लड मनी की अवधारणा को शरिया कानून से जोड़ा जाता है, जो मुस्लिम समुदाय में प्रचलित है, लेकिन भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता की भावना के तहत यह लागू नहीं है।


भारत में ब्लड मनी का कानूनी और धार्मिक दृष्टिकोण:

  1. शरिया कानून के तहत दीया (ब्लड मनी):
    • शरिया कानून के अनुसार, दीया का उद्देश्य एक अपराधी को पीड़ित के परिवार से माफ करवाना है। हत्या के मामलों में इसे एक वैकल्पिक सजा के रूप में स्वीकार किया जाता है, जिससे पीड़ित परिवार आरोपी को मुआवजा देने के बदले माफ कर देता है।
    • भारतीय मुस्लिम समुदाय में यह कानूनी अधिकार के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होता है।
  2. भारतीय दंड संहिता (IPC) और मृत्युदंड**:
    • भारत में मृत्युदंड और अन्य गंभीर अपराधों के लिए सजा का निर्धारण भारतीय दंड संहिता (IPC) और संविधान के तहत किया जाता है।
    • शरिया कानून द्वारा दी जाने वाली ब्लड मनी भारतीय न्याय व्यवस्था के हिस्से के रूप में स्वीकार नहीं की जाती। यदि एक व्यक्ति को हत्या का दोषी ठहराया जाता है, तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा मिल सकती है, और यह मुआवजा या दीया के आधार पर बदलने की प्रक्रिया नहीं होती।
  3. समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code):
    • भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता और बहस पर लगातार चर्चा होती रही है, जिसका उद्देश्य धार्मिक कानूनों के अलावा सभी नागरिकों के लिए समान कानूनी अधिकार सुनिश्चित करना है।
    • यदि UCC लागू होता है, तो यह शरिया के तहत दी जाने वाली ब्लड मनी को भारत के कानूनी ढांचे में पूरी तरह से समाहित कर सकता है।
    • UCC के लिए कई सालों से आवाजें उठाई जा रही हैं, जो धार्मिक कानूनों के बजाय सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून के तहत न्याय सुनिश्चित करने के पक्ष में हैं।
  4. मुआवजा के रूप में दीया की कानूनी स्थिति:
    • भारत में किसी हत्या के मामले में पीड़ित परिवार को दीया (ब्लड मनी) देने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। यह धार्मिक परंपरा के तहत ही लागू होता है और इसे समझौते के रूप में देखा जाता है।
    • यदि मुआवजा देने के बाद पीड़ित परिवार दोषी को माफ करता है, तो यह एक व्यक्तिगत समझौता है, न कि भारतीय कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा।
  5. समझौता और कानूनी प्रभाव:
    • दीया का भुगतान पीड़ित परिवार द्वारा स्वीकार किया जाता है, तो उसे माफी का एक संकेत माना जाता है। हालांकि, भारतीय कानून के अनुसार, यह किसी अपराधी के लिए सजा को कम करने का तरीका नहीं हो सकता है।
    • दंड प्रक्रिया में यदि मुआवजा का लेन-देन होता है, तो यह केवल एक निजी मामला हो सकता है और भारतीय न्याय प्रणाली को इससे कोई कानूनी बदलाव नहीं होगा।

निष्कर्ष:

भारत में ब्लड मनी (दीया) को शरिया कानून के तहत एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथा के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन भारतीय दंड संहिता और संविधान के तहत इसका कानूनी आधार नहीं है। इस पर समान नागरिक संहिता और कानूनी सुधार के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए चर्चा की जा सकती है। हालांकि, यह एक संवेदनशील विषय है और इसके व्यापक निहितार्थों पर विचार करना जरूरी है।


UPSC Prelims के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. शरिया कानून और भारतीय संविधान:
    • भारत में धार्मिक कानून और सांस्कृतिक संदर्भ के तहत न्याय के बारे में UPSC में सवाल पूछे जा सकते हैं, खासकर तब जब धार्मिक न्याय और राज्य के कानून के बीच संतुलन बनाने की बात आती है।
    • शरिया कानून और संविधान के तहत समान अधिकार को लेकर संविधान और न्यायिक प्रक्रिया पर प्रश्न UPSC में हो सकते हैं।
  2. मृत्युदंड और मानवाधिकार:
    • मृत्युदंड के संदर्भ में मानवाधिकार की बहस UPSC में महत्वपूर्ण हो सकती है। क्या यह मानवाधिकार के खिलाफ है? और क्या यह न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को दर्शाता है?
  3. भारत का विदेश नीति:
    • भारत-यमन संबंध और प्रवासी भारतीयों के अधिकार के संदर्भ में, इस प्रकार के मामलों पर भारत की विदेश नीति और कूटनीतिक पहल का विश्लेषण UPSC परीक्षा में हो सकता है।
    • भारत और मध्य पूर्व के देशों के बीच संबंधों और प्रवासी भारतीयों के मामलों में कूटनीतिक हस्तक्षेप पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

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Possibilities for children in the year 2025 : UNICEF REPORT On Children Crisis 2025

Why is it in discussion?

The United Nations Children’s Fund (UNICEF) has released its latest report, “Prospects for Children in 2025: Building Resilient Systems for Children’s Future.” This report highlights the increasing impact of global crises on children and outlines the necessary measures to secure their well-being and future.


Key Highlights of the Report:

Impact of Global Crises:

  • Crises such as climate change, economic instability, pandemics, and wars are severely affecting children’s lives and development.
  • More than 1.3 billion children are struggling with poverty, hunger, lack of healthcare, and education.

Education and Health:

  • Disruption in Education: More than 40% of children’s education has been unstable since the COVID-19 pandemic.
  • Malnutrition Issue: 45 million children worldwide suffer from malnutrition.

Effects of the Climate Crisis:

  • Nearly 1 billion children live in areas experiencing severe climate-related crises.
  • Shortages of water and rising temperatures are adversely impacting children’s health and safety.

Need for Resilient Systems:

  • Emphasis on strengthening healthcare, education, and social security systems.
  • The need for global cooperation to ensure the rights of all children are protected.

Proposed Solutions:

Investment and Reforms:

  • Increase resources to improve children’s education, health, and nutrition.

Climate Adaptation Strategies:

  • Develop specific plans to protect children from climate crises.

Global Cooperation:

  • UNICEF has called on all nations to prioritize children’s futures and take collective action to safeguard them from crises.

Key Challenges Facing Children in Contemporary India:

While several efforts are being made to ensure a prosperous and secure future for children in India, numerous challenges still hinder their development and welfare. These include:

1. Inequality in Education:

  • Lack of Early Education: Many children, particularly in rural and underdeveloped areas, do not have access to quality early education due to insufficient schools, poor infrastructure, and a shortage of teachers.
  • Educational Disparity: Unequal distribution of education among children, especially for girls, tribal communities, and other disadvantaged groups.
  • Barriers to Online Education: Post-COVID-19, the expansion of online education has faced challenges like lack of internet access and digital devices.

2. Malnutrition:

  • India has a high rate of child malnutrition. Every year, millions of children face health issues due to malnutrition, which hampers their physical and mental growth.
  • Nearly 45 million children in India are affected by malnutrition, which impedes their physical development.

3. Child Labor:

  • Child labor remains a serious issue in India, with millions of children forced to work in households, farms, factories, and streets, depriving them of education and impacting their physical and mental health.

4. Child Marriage:

  • Child marriage is a persistent problem, especially in rural and tribal areas, leading to physical, mental, and emotional harm to children.

5. Lack of Healthcare Services:

  • Insufficient healthcare facilities, particularly in rural areas, result in inadequate care for children.
  • Issues such as lack of vaccination, sanitation, and health education pose significant challenges.

6. Social Inequality and Discrimination:

  • Discrimination based on caste, religion, gender, and economic status negatively impacts children’s holistic development.

7. Climate Change and Environmental Crisis:

  • Climate-induced disasters such as floods, droughts, and cyclones are creating significant risks for children.

8. Mental Health:

  • There is a growing number of cases of mental health issues among children, such as depression, anxiety, and stress.

9. Safety and Violence:

  • Children face physical, mental, and sexual violence, which affects their mental state and development.

10. Road Accidents and Physical Safety:

  • Road accidents involving children are common in India, highlighting the need for better enforcement of traffic rules.

Major Child Welfare Schemes in India:

India has implemented several government programs to ensure the overall well-being of children. Some of the major schemes include:

  1. National Child Health Program (RCH): Focuses on improving children’s health, vaccination, and nutrition.
  2. Beti Bachao, Beti Padhao Yojana: Promotes gender equality and the education and safety of girls.
  3. Mid-Day Meal Scheme: Provides nutritious meals to school children to improve their physical and mental development.
  4. Poshan Abhiyaan: Addresses malnutrition among children, women, and adolescents.
  5. National Commission for Protection of Child Rights (NCPCR): Ensures the protection of children’s rights.

The Way Forward:

To achieve the holistic development and welfare of children, effective implementation and improvement of policies are essential. Key recommendations include:

  • Providing quality education and bridging the digital divide.
  • Implementing strong measures to eliminate child labor and child marriage.
  • Strengthening healthcare infrastructure and focusing on mental health.
  • Addressing climate challenges to ensure a safe and sustainable environment for children.

About UNICEF:

  • Established on December 11, 1946, UNICEF works to improve the lives of children affected by crises such as poverty, malnutrition, and war.
  • It operates in over 190 countries and regions and collaborates with governments, NGOs, and other international organizations to ensure children’s rights and welfare.
  • Its slogan, “For Every Child,” reflects its mission to ensure equal opportunities and rights for all children.

Key Facts About UNICEF (United Nations Children’s Fund)

Establishment and History:

  • UNICEF was established on December 11, 1946, to provide aid and welfare to children affected by war.
  • Initially known as the United Nations International Children’s Emergency Fund, it was later renamed simply as UNICEF.
  • Its headquarters is located in New York, USA.

Objectives:

  • UNICEF’s primary aim is to help children worldwide, particularly those affected by war, malnutrition, poverty, and other crises.
  • It works to protect children’s rights and improve their health, education, nutrition, safety, and overall well-being.

Functions and Activities:

  1. Health and Nutrition:
    • Providing essential healthcare services, vaccinations, and addressing malnutrition problems.
  2. Education:
    • Promoting the right to education by establishing schools and focusing on quality education, with special attention to girls’ education.
  3. Child Rights:
    • Protecting children’s rights and preventing them from physical, mental, and sexual abuse.
  4. Emergency Assistance:
    • Offering immediate support to children affected by natural disasters, wars, and other emergencies.

Global Impact:

  • UNICEF operates in over 190 countries and territories.
  • It is part of the United Nations system and works to implement the United Nations Convention on the Rights of the Child (CRC) to safeguard children’s rights globally.

Key Programs and Campaigns:

  • Initiatives like “Child Friendly Cities Initiative”, “Schools for Africa”, and “End Violence Against Children” aim to improve children’s lives.
  • UNICEF focuses on programs in health, education, safety, and well-being to uplift children’s living standards.

Financial Sources:

  • UNICEF is funded through government donations, private contributions, and international organizations.
  • Its annual budget exceeds $1.2 billion, most of which is spent on children’s welfare in developing countries.

UNICEF and COVID-19:

  • During the COVID-19 pandemic, UNICEF took significant steps to support children in education, health, and nutrition.
  • It conducted vaccination campaigns, addressed children’s mental health, and promoted online education initiatives.

UNICEF’s Key Programs:

  1. Health Services:
    • Initiatives like polio eradication, nutritional supplements, and malnutrition treatment.
  2. Education:
    • Building schools and infrastructure to ensure access to education for all children.
  3. Emergency Assistance:
    • Providing immediate aid during wars, earthquakes, floods, and other natural disasters.

Global Partnerships:

  • UNICEF collaborates with governments, NGOs, the private sector, and other international organizations.
  • It also works closely with other UN bodies like the World Health Organization (WHO) and the United Nations High Commissioner for Refugees (UNHCR).

UNICEF’s Key Slogan:

  • UNICEF’s slogan is “For Every Child”, symbolizing its mission to ensure equal opportunities and rights for every child worldwide.


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