DAILY CURRENT AFFAIRS IN HINDI FOR UPSC IAS – Prelims And Mains Examination 2025 | 27 JANUARY 2025 – UPSC PRELIMS POINTER Fact Based Current Affairs
DAILY Current Affairs Analysis For UPSC Pre And Mains Examination
Daily Archiveखुला बाज़ार बिक्री योजना (घरेलू) नीति ( Open Market Sale Scheme (Domestic) Policy )
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री ने खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने और इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से 2024-25 के लिए खुला बाजार बिक्री योजना (घरेलू) नीति में संशोधन की घोषणा की है।
खुला बाजार बिक्री योजना (Open Market Sale Scheme – OMSS)
OMSS का उद्देश्य सरकार के स्टॉक में रखे अनाज (जैसे गेहूं और चावल) को खुले बाजार में उपलब्ध कराना है। यह योजना खाद्य पदार्थों की कीमतों को नियंत्रित करने, मांग-आपूर्ति का संतुलन बनाए रखने और संकट के समय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करती है।
नीति में संशोधन के प्रमुख बिंदु
- इथेनॉल उत्पादन के लिए अनाज की बिक्री:
- सरकार अब OMSS के तहत अनाज (मुख्यतः चावल) की आपूर्ति इथेनॉल उत्पादन के लिए करेगी।
- यह कदम भारत की राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति को बढ़ावा देने और पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण (Ethanol Blending) को बढ़ाने के लिए उठाया गया है।
- खाद्य सुरक्षा का ध्यान:
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए खाद्यान्न की आपूर्ति प्राथमिकता बनी रहेगी।
- खुले बाजार में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त स्टॉक जारी करेगी।
- कीमत नियंत्रण:
- गेहूं और चावल की कीमतों में अस्थिरता को रोकने के लिए सरकार समय-समय पर अनाज की बिक्री की निगरानी करेगी।
इसका महत्व
- खाद्य सुरक्षा:
- सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि गरीब और वंचित वर्गों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज की उपलब्धता में कोई कमी न हो।
- इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा:
- भारत इथेनॉल सम्मिश्रण के लक्ष्य को तेजी से प्राप्त करना चाहता है।
- इथेनॉल उत्पादन में वृद्धि से कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम होगी और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आएगी।
- कीमत स्थिरता:
- खुले बाजार में अनाज की उपलब्धता बढ़ने से खाद्य महंगाई पर नियंत्रण रहेगा।
- किसानों को लाभ:
- इथेनॉल उत्पादन के लिए अनाज की बढ़ती मांग किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करेगी।
चुनौतियां
- खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव:
- अगर इथेनॉल उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर अनाज का उपयोग होता है, तो इससे खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव:
- इथेनॉल उत्पादन के लिए अधिक फसल उत्पादन से पानी और भूमि उपयोग पर अतिरिक्त दबाव बढ़ सकता है।
- महंगाई का खतरा:
- खुले बाजार में अनाज की कीमतों में वृद्धि की संभावना बनी रहेगी, खासकर गरीब वर्ग के लिए।
निष्कर्ष
खुला बाजार बिक्री योजना (घरेलू) नीति में संशोधन, खाद्य सुरक्षा और इथेनॉल उत्पादन के बीच संतुलन बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। हालांकि, यह आवश्यक है कि सरकार अनाज की उपलब्धता और मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करे ताकि इस नीति का सकारात्मक प्रभाव समाज के हर वर्ग तक पहुंचे।
भारतीय खाद्य निगम (FCI)
भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India – FCI) भारत सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के तहत एक प्रमुख संगठन है, जिसकी स्थापना 14 जनवरी 1965 को हुई थी। इसका मुख्यालय पहले चेन्नई में था, जिसे बाद में नई दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया।
स्थापना का उद्देश्य
भारतीय खाद्य निगम की स्थापना भारतीय खाद्य नीति के तहत निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की गई थी:
- खाद्यान्न की खरीद: किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर अनाज की खरीद सुनिश्चित करना।
- भंडारण और वितरण: खाद्यान्न को सुरक्षित तरीके से संग्रहीत करना और इसे पूरे देश में वितरित करना।
- कीमत स्थिरता: खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता बनाए रखना।
- खाद्य सुरक्षा: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से गरीब और वंचित वर्गों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना।
प्रमुख कार्य
- खरीद (Procurement):
- FCI मुख्य रूप से गेहूं और चावल जैसे प्रमुख अनाज की खरीद करता है।
- यह खरीदारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के आधार पर किसानों से की जाती है।
- भंडारण (Storage):
- FCI खाद्यान्न को सुरक्षित रखने के लिए गोदामों और साइलोज का प्रबंधन करता है।
- यह भंडारण Central Warehousing Corporation (CWC) और State Warehousing Corporations (SWC) के सहयोग से किया जाता है।
- वितरण (Distribution):
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के तहत खाद्यान्न का वितरण किया जाता है।
- आयात और निर्यात (Import and Export):
- खाद्यान्न के आयात और निर्यात में सरकार की नीतियों के तहत FCI की अहम भूमिका होती है।
- कीमत नियंत्रण (Price Control):
- खुले बाजार में खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर बनाए रखने के लिए अनाज की बिक्री।
एफसीआई की संरचना
- मुख्यालय: नई दिल्ली
- पाँच क्षेत्रीय कार्यालय:
- उत्तर क्षेत्र (North Zone)
- दक्षिण क्षेत्र (South Zone)
- पूर्व क्षेत्र (East Zone)
- पश्चिम क्षेत्र (West Zone)
- उत्तर-पूर्व क्षेत्र (North-East Zone)
- राज्य और जिला कार्यालय: प्रत्येक राज्य में कार्यालय, जो स्थानीय स्तर पर काम करते हैं।
चुनौतियाँ
- भंडारण की समस्या:
- अनाज को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त और आधुनिक गोदामों की कमी।
- कई स्थानों पर खाद्यान्न खराब हो जाता है।
- परिवहन का खर्च:
- खाद्यान्न के परिवहन में उच्च लागत, विशेष रूप से दुर्गम क्षेत्रों में।
- लागत और सब्सिडी का बढ़ता बोझ:
- सरकार द्वारा सब्सिडी प्रदान करने के कारण वित्तीय दबाव।
- अनाज की बर्बादी:
- खराब प्रबंधन और गोदामों की कमी के कारण अनाज बर्बाद हो जाता है।
- भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी:
- खाद्यान्न की खरीद, भंडारण और वितरण में पारदर्शिता की कमी।
हाल के सुधार और प्रयास
- गोदामों का डिजिटलीकरण:
- भंडारण प्रक्रिया को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए गोदामों का डिजिटलीकरण।
- साइलो सिस्टम का विस्तार:
- अनाज के दीर्घकालिक भंडारण के लिए आधुनिक साइलो का निर्माण।
- ई-नीलामी (E-Auction):
- खुले बाजार में खाद्यान्न की बिक्री के लिए ई-नीलामी प्रक्रिया शुरू की गई है।
- वन नेशन, वन राशन कार्ड:
- पूरे देश में खाद्यान्न वितरण को सुगम बनाने के लिए इस योजना को लागू किया गया।
निष्कर्ष
भारतीय खाद्य निगम देश में खाद्य सुरक्षा और कृषि समर्थन का प्रमुख स्तंभ है। हालांकि, इसे अपने कामकाज में और सुधार करने की आवश्यकता है ताकि खाद्यान्न के प्रबंधन में कुशलता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। FCI का सुदृढ़ और प्रभावी कार्यान्वयन देश के गरीब और जरूरतमंद लोगों तक भोजन पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
याला ग्लेशियर ( YALA GLACIER ) – UPSC Prelims Pointer 2025
याला ग्लेशियर: जलवायु परिवर्तन का एक गंभीर संकेत
प्रसंग:
नेपाल के हिमालय क्षेत्र में स्थित याला ग्लेशियर के 2040 के दशक तक पूरी तरह गायब हो जाने की आशंका है। हाल के अध्ययनों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के कारण यह ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहा है, जो एक गंभीर वैश्विक समस्या का प्रतीक है।
पृष्ठभूमि
- भौगोलिक महत्व:
- याला ग्लेशियर नेपाल के लangtang क्षेत्र में लगभग 5,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
- यह ग्लेशियर हिमालय के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
- वैज्ञानिक अवलोकन:
- पिछले कुछ दशकों में इस ग्लेशियर का आकार और आयतन काफी घट गया है।
- पिघलते ग्लेशियर वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि में योगदान कर रहे हैं।
पिघलने के मुख्य कारण
- वैश्विक तापवृद्धि (Global Warming):
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन ने वैश्विक तापमान को बढ़ा दिया है, जिसका हिमालयी ग्लेशियरों पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
- हिमालयी क्षेत्र में तापमान वृद्धि की दर वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी है।
- काला कार्बन जमाव (Black Carbon Deposition):
- जीवाश्म ईंधन और बायोमास जलाने से उत्पन्न कालिख ग्लेशियरों पर जम जाती है, जिससे उनकी परावर्तकता (Albedo) कम हो जाती है और पिघलने की दर बढ़ जाती है।
- मौसम के बदलते पैटर्न:
- कम बर्फबारी और अनियमित मानसून ने ग्लेशियर के प्राकृतिक संतुलन को बाधित कर दिया है।
याला ग्लेशियर के समाप्त होने के परिणाम
- जल संकट:
- यह ग्लेशियर उन नदियों को जल प्रदान करता है जो नेपाल, भारत और बांग्लादेश में लाखों लोगों की जीवनरेखा हैं।
- इसके गायब होने से कृषि, पीने के पानी और जलविद्युत उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- जैव विविधता पर प्रभाव:
- ठंडे वातावरण के लिए अनुकूलित विशिष्ट वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के आवास समाप्त हो जाएंगे।
- आपदाओं का बढ़ता खतरा:
- ग्लेशियर के तेजी से पिघलने से ग्लेशियर झील विस्फोट बाढ़ (Glacial Lake Outburst Floods – GLOFs) का खतरा बढ़ेगा, जो आसपास के समुदायों के लिए खतरनाक हो सकता है।
- सांस्कृतिक और पर्यटन हानि:
- याला ग्लेशियर स्थानीय समुदायों के लिए सांस्कृतिक महत्व रखता है और पर्वतारोहियों तथा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इसके खत्म होने से पर्यटन आधारित आजीविका प्रभावित होगी।
समस्या के समाधान के प्रयास
- शोध और निगरानी:
- वैज्ञानिक उपग्रह इमेजरी और भूमि आधारित अध्ययन के माध्यम से ग्लेशियर की स्थिति की निगरानी कर रहे हैं।
- वैश्विक जलवायु कार्रवाई:
- पेरिस समझौते जैसे फ्रेमवर्क के तहत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना आवश्यक है।
- क्षेत्रीय पहल:
- हिमालयी देशों द्वारा साझा जल संसाधनों के प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए संयुक्त प्रयास।
- स्थानीय समुदायों को संसाधनों के सतत उपयोग और आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूक करना।
निष्कर्ष
याला ग्लेशियर का 2040 के दशक तक गायब होना जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का संकेत है। इसका नुकसान न केवल स्थानीय समुदायों, बल्कि वैश्विक पारिस्थितिक तंत्र के लिए भी विनाशकारी होगा। इस संकट को कम करने के लिए तत्काल और सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं, ताकि हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों को बचाया जा सके और जीवन के लिए आवश्यक संसाधनों की स्थिरता सुनिश्चित हो।
उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीश ( AD HOC JUDGES IN HIGH COURTS )
भारतीय सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश: लंबित आपराधिक मामलों के समाधान के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अस्थायी नियुक्ति
पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आपराधिक मामलों के बढ़ते बोझ का निपटारा करने के लिए हाई कोर्ट में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अस्थायी (ad hoc) नियुक्ति का सुझाव दिया। यह कदम भारतीय न्यायिक व्यवस्था में लंबित मामलों के दबाव को कम करने और न्याय तक शीघ्र पहुंच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया है।
2021 में सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 224A के तहत अब तक केवल तीन बार अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है, जिसे एक “निष्क्रिय प्रावधान” (dormant provision) कहा गया।
मुख्य बिंदु
- अनुच्छेद 224A का प्रावधान:
- संविधान का अनुच्छेद 224A उच्च न्यायालयों को सक्षम बनाता है कि वे सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उनकी सहमति से अस्थायी रूप से न्यायिक कार्यों के लिए नियुक्त कर सकते हैं।
- यह नियुक्ति तभी की जा सकती है जब हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश यह महसूस करे कि न्यायालय में लंबित मामलों के बोझ के कारण न्यायिक प्रक्रिया बाधित हो रही है।
- समस्या का दायरा:
- भारतीय न्यायालयों में लाखों आपराधिक मामले लंबित हैं।
- न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या और वास्तविक संख्या में बड़ा अंतर है।
- समय पर न्याय प्रदान न होने से न्यायालयों की विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशें:
- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को अस्थायी आधार पर नियुक्त किया जाए ताकि वे विशेष मामलों, विशेषकर आपराधिक मामलों, को प्राथमिकता के आधार पर निपटा सकें।
- लंबित मामलों की समीक्षा के लिए विशेष बेंच का गठन।
- सभी हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के खाली पदों को शीघ्रता से भरने की प्रक्रिया।
- फायदे:
- लंबित मामलों में कमी और न्यायिक प्रक्रिया में तेजी।
- वरिष्ठ और अनुभवी न्यायाधीशों की विशेषज्ञता का लाभ।
- न्यायपालिका पर जनता का विश्वास बहाल रखना।
- चुनौतियां:
- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की सहमति प्राप्त करना।
- न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तालमेल।
- हाई कोर्ट में उपलब्ध संसाधनों और कार्यक्षमता की कमी।
भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों की स्थिति
- राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार, उच्च न्यायालयों में लाखों मामले लंबित हैं।
- आपराधिक मामलों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है, जिससे न केवल पीड़ित बल्कि आरोपी पक्ष भी प्रभावित हो रहा है।
संवैधानिक और कानूनी महत्व
- न्याय का अधिकार: न्याय का शीघ्र वितरण अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।
- प्रस्तावित कदमों की आवश्यकता: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायिक प्रणाली को सुचारु बनाने और संविधान में दिए गए नागरिक अधिकारों को प्रभावी बनाने के लिए एक सार्थक पहल हो सकती है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह सुझाव भारतीय न्यायिक प्रणाली के सुधार की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। हालांकि, इसे लागू करने में कई व्यावहारिक चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि लंबित मामलों का निपटारा शीघ्रता से हो और न्यायपालिका पर बढ़ते बोझ को कम किया जा सके।
यह पहल न्याय तक पहुंच के अधिकार को सशक्त बनाएगी और संविधान के अनुच्छेद 224A के प्रभावी कार्यान्वयन में एक नई दिशा प्रदान करेगी।
आवश्यक धार्मिक आचरण सिद्धांत ( ESSENTIAL RELIGIOUS PRACTICES DOCTRINE ) – UPSC Prelims Pointer 2025
बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश: धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर और ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण
पृष्ठभूमि
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वे लाउडस्पीकर, सार्वजनिक संबोधन प्रणाली (Public Address System) या अन्य ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों के डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावी तंत्र विकसित करें। यह निर्देश सभी धार्मिक स्थलों और संस्थानों पर समान रूप से लागू होगा, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।
यह याचिका धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर और एम्प्लीफायरों के अवैध उपयोग, अनुमेय डेसिबल सीमा से अधिक ध्वनि उत्पन्न करने और प्रतिबंधित समय सीमा के उल्लंघन के खिलाफ कार्रवाई में असफलता को लेकर दाखिल की गई थी।
मुख्य बिंदु
- धर्म और ध्वनि का संबंध:
- हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का आवश्यक हिस्सा नहीं है।
- किसी भी धर्म को मानने और उसकी प्रैक्टिस करने के अधिकार को संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है, लेकिन यह अधिकार अनुच्छेद 25 के तहत “सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता” के अधीन है।
- ध्वनि प्रदूषण और प्रभाव:
- ध्वनि प्रदूषण केवल शारीरिक स्वास्थ्य (सुनने की क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य) पर ही नहीं, बल्कि मानसिक शांति और सामाजिक जीवन पर भी बुरा प्रभाव डालता है।
- हाई कोर्ट ने बताया कि ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 (Noise Pollution (Regulation and Control) Rules, 2000) के तहत डेसिबल स्तर और समय सीमा को नियंत्रित किया गया है।
- महाराष्ट्र सरकार के लिए निर्देश:
- सभी जिलों में ध्वनि प्रदूषण की निगरानी के लिए एक प्रभावी प्रणाली लागू की जाए।
- धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और प्रशासन को जिम्मेदारी दी जाए।
- अनुमति प्राप्त संस्थानों और व्यक्तियों को ही ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों का सीमित उपयोग करने की अनुमति हो।
- समाज पर प्रभाव:
- कोर्ट ने जोर दिया कि “ध्वनि के बिना धर्म का पालन” करने की भावना को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- सभी धर्मों के बीच समानता और सौहार्द बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि कोई भी धर्म अपनी प्रैक्टिस के लिए दूसरों को असुविधा न पहुंचाए।
संबंधित कानून और नियम
- ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000:
- दिन और रात के समय के लिए अनुमेय डेसिबल स्तर तय किए गए हैं।
- रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग प्रतिबंधित है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860:
- धारा 268 (सार्वजनिक उपद्रव) और धारा 290 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
चुनौतियाँ और समाधान
- चुनौतियाँ:
- धार्मिक स्थलों पर कानून का पालन सुनिश्चित करना।
- जनता में जागरूकता की कमी।
- पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता।
- समाधान:
- धार्मिक स्थलों पर तकनीकी समाधान जैसे ध्वनि सीमित करने वाले उपकरण।
- आम जनता को जागरूक करना कि ध्वनि प्रदूषण का धार्मिकता से कोई संबंध नहीं है।
- सख्त कानून लागू करने और उल्लंघन पर कड़ी सजा।
निष्कर्ष
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास भी है। धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का मतलब यह नहीं कि दूसरों के अधिकारों का हनन किया जाए। ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए सख्त निगरानी और जनता की भागीदारी आवश्यक है।
यह फैसला सामाजिक शांति और सामंजस्य बनाए रखने के लिए एक मिसाल पेश करता है, जो भविष्य में ध्वनि प्रदूषण से संबंधित मुद्दों के समाधान में मार्गदर्शक साबित हो सकता है।
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