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Daily Current Affairs For UPSC IAS | 24 January 2025

DAILY CURRENT AFFAIRS IN HINDI FOR UPSC IAS – Prelims And Mains Examination 2025 | 24 JANUARY 2025 – UPSC PRELIMS POINTER Fact Based Current Affairs

DAILY Current Affairs Analysis For UPSC Pre And Mains Examination

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सुपरमैसिव ब्लैक होल LID-568 की खोज

सुपरमैसिव ब्लैक होल LID-568 की खोज: एक विश्लेषण

प्रसंग:
नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप और चंद्रा एक्स-रे वेधशाला के उपयोग से एक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक टीम ने बिग बैंग के 1.5 अरब वर्ष बाद के कम द्रव्यमान वाले सुपरमैसिव ब्लैक होल LID-568 की खोज की है। यह खोज सुपरमैसिव ब्लैक होल के निर्माण और उनके विकास के रहस्यों को समझने में मदद कर सकती है।


सुपरमैसिव ब्लैक होल: परिचय

  1. क्या हैं सुपरमैसिव ब्लैक होल?
    • यह ब्रह्मांड में पाए जाने वाले अत्यधिक विशाल ब्लैक होल हैं, जिनका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से लाखों से अरबों गुना अधिक हो सकता है।
    • ये आकाशगंगाओं के केंद्र में स्थित होते हैं और उनके गुरुत्वाकर्षण के कारण आकाशगंगा का निर्माण और स्थायित्व होता है।
  2. महत्व:
    • इनका अध्ययन ब्रह्मांड के प्रारंभिक विकास, आकाशगंगाओं के निर्माण, और तारकीय संरचनाओं की गतिशीलता को समझने में मदद करता है।

LID-568: प्रमुख विशेषताएँ

  1. बिग बैंग के करीब:
    • LID-568 की खोज बिग बैंग के केवल 1.5 अरब वर्ष बाद हुई।
    • यह ब्रह्मांड के प्रारंभिक काल में ब्लैक होल के निर्माण को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
  2. कम द्रव्यमान:
    • यह ब्लैक होल अपने समकक्षों की तुलना में कम द्रव्यमान वाला है।
    • इसका अध्ययन यह समझने में मदद करेगा कि कैसे छोटे ब्लैक होल विशाल सुपरमैसिव ब्लैक होल में विकसित होते हैं।
  3. पता लगाने के उपकरण:
    • जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST):
      • यह ब्रह्मांड के प्रारंभिक युग की अवरक्त (Infrared) किरणों का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • चंद्रा एक्स-रे वेधशाला:
      • यह एक्स-रे के माध्यम से ब्लैक होल से निकलने वाले उच्च-ऊर्जा उत्सर्जन को मापने में सक्षम है।

खोज का वैज्ञानिक महत्व

  1. ब्लैक होल निर्माण के मॉडल:
    • यह खोज ब्लैक होल के निर्माण के दो मुख्य सिद्धांतों पर रोशनी डाल सकती है:
      • स्टेलर कोलैप्स मॉडल: तारों के गिरने से बने ब्लैक होल समय के साथ बड़े बनते हैं।
      • प्रत्यक्ष गिरावट मॉडल: गैस और धूल सीधे ब्लैक होल में गिरकर बड़े ब्लैक होल बनाते हैं।
  2. आकाशगंगाओं के विकास का अध्ययन:
    • LID-568 के आसपास की आकाशगंगा संरचनाओं का अध्ययन यह समझने में मदद करेगा कि प्रारंभिक आकाशगंगाएँ ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण से कैसे प्रभावित होती हैं।
  3. ब्रह्मांडीय पुनःआयनीकरण (Cosmic Reionization):
    • बिग बैंग के बाद का यह युग, जब ब्रह्मांड के पहले तारे और आकाशगंगाएँ बनीं, ब्लैक होल के विकिरण के प्रभाव से प्रभावित हुआ।

LID-568 की खोज के उपकरण और तकनीकें

  1. जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST):
    • ब्रह्मांड की प्रारंभिक अवस्था की अवरक्त प्रकाश को मापने में सक्षम।
    • LID-568 के निर्माण और उसके आस-पास के पर्यावरण का अध्ययन करता है।
  2. चंद्रा एक्स-रे वेधशाला:
    • उच्च-ऊर्जा उत्सर्जन की पहचान कर ब्लैक होल के सक्रिय होने के संकेत प्रदान करता है।
    • यह ब्लैक होल के विकास की गति और उसके द्रव्यमान की गणना में मदद करता है।
  3. स्पेक्ट्रोस्कोपी और इमेजिंग:
    • स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग कर ब्लैक होल के द्रव्यमान, आयु और उसके चारों ओर के पदार्थ का विश्लेषण किया गया।

भविष्य की संभावनाएँ

  1. ब्लैक होल के विकास की विस्तृत समझ:
    • LID-568 जैसे ब्लैक होल यह जानने में मदद करेंगे कि कम द्रव्यमान वाले ब्लैक होल सुपरमैसिव ब्लैक होल में कैसे बदलते हैं।
  2. नई तकनीकों का विकास:
    • अधिक संवेदनशील और उन्नत उपकरणों का उपयोग कर ब्रह्मांड के और गहरे हिस्सों का अध्ययन किया जाएगा।
  3. बहु-तरंगदैर्ध्य अध्ययन:
    • अवरक्त, एक्स-रे और रेडियो तरंगों का संयोजन ब्लैक होल के पर्यावरण और उनके प्रभाव को गहराई से समझने में सहायक होगा।

निष्कर्ष

LID-568 की खोज न केवल प्रारंभिक ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करती है, बल्कि ब्लैक होल के निर्माण और उनके विकास की प्रक्रिया पर भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।
यह खोज जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप और चंद्रा एक्स-रे वेधशाला जैसे उन्नत उपकरणों की क्षमताओं का प्रमाण है और खगोल विज्ञान में नए अध्याय की शुरुआत को चिह्नित करती है।
ब्रह्मांड के प्रारंभिक काल को समझने के लिए ऐसे खोजें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NATIONAL HEALTH MISSION)

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): एक मूल्यांकन (2021-2024)

प्रसंग:
केंद्र सरकार ने कैबिनेट को प्रस्तुत अपनी मूल्यांकन रिपोर्ट (2021-24) में कहा है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) ने मातृ मृत्यु दर (MMR), तपेदिक (TB), सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारियों को कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसके साथ ही, स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिए बेहतर मानव संसाधन तैयार करने और एकीकृत प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित करने की दिशा में भी इसे प्रभावी पाया गया है।


राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): परिचय

  1. शुरुआत और उद्देश्य:
    • NHM की शुरुआत 2005 में हुई थी।
    • इसका उद्देश्य सभी को सस्ती, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है।
    • यह दो मुख्य घटकों में विभाजित है:
      • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM)
      • राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM)
  2. लक्ष्य:
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage) सुनिश्चित करना।
    • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार।
    • संक्रामक और गैर-संक्रामक बीमारियों को नियंत्रित करना।
    • स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार और सुधार।

NHM की प्रमुख उपलब्धियाँ (2021-24):

  1. मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio – MMR) में कमी:
    • NHM की योजनाओं जैसे जननी सुरक्षा योजना (JSY) और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) ने गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव की ओर प्रोत्साहित किया।
    • MMR को 113 प्रति लाख जीवित जन्म (2018-20) से और कम करने में योगदान दिया।
  2. तपेदिक (TB) उन्मूलन:
    • राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के तहत टीबी के मामलों की पहचान, उपचार और पुनर्वास में सुधार किया गया।
    • “टीबी मुक्त भारत अभियान” के लक्ष्य को 2025 तक प्राप्त करने की दिशा में प्रगति।
  3. सिकल सेल एनीमिया पर कार्य:
    • जनजातीय क्षेत्रों में इस बीमारी के लिए स्क्रीनिंग और उपचार सुविधाओं का विस्तार।
    • सरकार द्वारा सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन का शुभारंभ।
  4. कोविड-19 और अन्य स्वास्थ्य आपात स्थितियों में योगदान:
    • कोविड-19 महामारी के दौरान NHM ने स्वास्थ्य सेवाओं के एकीकृत प्रबंधन में मदद की।
    • मानव संसाधन का विस्तार करते हुए विशेष प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की तैनाती की।
  5. स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार:
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (HWCs) की स्थापना।
    • आयुष्मान भारत योजना के साथ समन्वय।

NHM के तहत प्रमुख योजनाएँ और पहल:

  1. जननी सुरक्षा योजना (JSY):
    • संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता।
  2. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK):
    • बच्चों की जन्मजात बीमारियों, कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और उपचार।
  3. मिशन इंद्रधनुष:
    • सार्वभौमिक टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक कार्यक्रम।
  4. कायाकल्प योजना:
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की स्वच्छता और गुणवत्ता सुधार।
  5. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम:
    • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और जागरूकता।
  6. राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM):
    • डिजिटलीकरण के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार।

NHM की चुनौतियाँ:

  1. वित्तीय और मानव संसाधन की कमी:
    • ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पर्याप्त वित्त पोषण और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी।
  2. स्वास्थ्य सुविधाओं का असमान वितरण:
    • जनजातीय और पिछड़े क्षेत्रों में आवश्यक सेवाओं की पहुँच अभी भी सीमित है।
  3. गैर-संक्रामक रोग (NCDs):
    • डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए अधिक प्रयास की आवश्यकता है।
  4. मॉनिटरिंग और डेटा प्रबंधन:
    • स्वास्थ्य सेवाओं की निगरानी और डेटा संग्रहण में सुधार की आवश्यकता है।

NHM के भविष्य के लिए सुझाव:

  1. आधारभूत संरचना का सुधार:
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का समान वितरण सुनिश्चित करना।
  2. मानव संसाधन का सुदृढ़ीकरण:
    • अधिक डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भर्ती और प्रशिक्षण।
  3. नवाचार और डिजिटलीकरण:
    • टेलीमेडिसिन और डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना।
  4. सिकल सेल और टीबी उन्मूलन:
    • इन बीमारियों के खिलाफ अभियान को तेज करना और समुदाय आधारित उपचार को बढ़ावा देना।
  5. स्वास्थ्य आपात स्थिति की तैयारी:
    • महामारी और अन्य आपात स्थितियों के लिए बेहतर प्रबंधन और पूर्व-योजना।

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) ने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। मातृ मृत्यु दर, तपेदिक और सिकल सेल एनीमिया जैसी चुनौतियों पर इसके प्रभावी प्रयास सराहनीय हैं। हालांकि, स्वास्थ्य सुविधाओं का समान वितरण और वित्तीय सुदृढ़ता जैसी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। NHM का भविष्य केवल बेहतर योजना और प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर है।
भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करने के लिए NHM को और मजबूत करना समय की आवश्यकता है।

सिंधु जल संधि (INDUS WATER TREATY)

सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty), 1960:

प्रसंग:
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) के तहत नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert) ने हाल ही में फैसला दिया कि वह सिंधु नदी प्रणाली पर भारत द्वारा निर्मित जलविद्युत परियोजनाओं के डिजाइन से जुड़े मतभेदों पर निर्णय लेने के लिए “सक्षम” है। यह फैसला भारत और पाकिस्तान के बीच जल विवादों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।


सिंधु जल संधि का परिचय

  1. संधि का उद्देश्य:
    • भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली के जल वितरण को व्यवस्थित करना।
    • यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में 19 सितंबर 1960 को हस्ताक्षरित हुई।
  2. संधि की शर्तें:
    • सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज) को दो हिस्सों में बांटा गया।
      • पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब): पाकिस्तान को पूर्ण उपयोग का अधिकार।
      • पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलज): भारत को पूर्ण उपयोग का अधिकार।
    • भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित उपयोग (जलविद्युत, कृषि, घरेलू उपयोग) की अनुमति है।
  3. विवाद समाधान प्रक्रिया:
    • किसी विवाद को सुलझाने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert) या पंचाट (Court of Arbitration) का प्रावधान है।

मुख्य बिंदु

  • सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक जल-बंटवारा समझौता है, जिसकी मध्यस्थता विश्व बैंक द्वारा की गई थी।
  • विश्व बैंक की मध्यस्थता से वार्ता 1950 के दशक में शुरू हुई और 19 सितम्बर 1960 को भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा कराची में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर के साथ इसकी परिणति हुई।
  • यह सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के उपयोग और वितरण को नियंत्रित करता है।
  • कवर की गई नदियाँ:
    • पश्चिमी नदियाँ (पाकिस्तान को आवंटित): सिंधु, झेलम, चिनाब।
    • पूर्वी नदियाँ (भारत को आवंटित): रावी, ब्यास, सतलुज।
  • जल आवंटन:
    • पूर्वी नदियों के जल पर भारत का विशेष अधिकार है
    • पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों के जल पर अधिकार है, लेकिन भारत को सीमित उपयोग की अनुमति है।
    • वास्तव में, इस संधि के तहत भारत को “सिंधु नदी प्रणाली” द्वारा बहाये जाने वाले पानी का लगभग 40% हिस्सा मिला, जबकि पाकिस्तान को 60% पानी मिला।
  • संस्थागत तंत्र:
    • संधि को लागू करने और प्रबंधित करने के लिए दोनों देशों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई।
    • विवादों को सुलझाने और आंकड़ों का आदान-प्रदान करने के लिए आयोग नियमित रूप से बैठकें करता है।
  • जम्मू और कश्मीर में भारत द्वारा दो जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण को लेकर विवाद है – एक बांदीपुरा जिले में झेलम की सहायक किशनगंगा पर, तथा दूसरी (रातले जलविद्युत परियोजना) किश्तवाड़ जिले में चिनाब पर है।
  • दोनों ही “रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजनाएं हैं, जिसका अर्थ है कि वे नदी के प्राकृतिक प्रवाह का उपयोग करके और उसके मार्ग को बाधित किए बिना बिजली (क्रमशः 330 मेगावाट और 850 मेगावाट) उत्पन्न करती हैं। हालाँकि, पाकिस्तान ने बार-बार आरोप लगाया है कि ये दोनों परियोजनाएँ IWT का उल्लंघन करती हैं।
  • भारत ने फैसला किया है कि सिंधु जल संधि पर फिर से बातचीत होने तक स्थायी सिंधु आयोग (PIC) की कोई और बैठक नहीं होगी। पिछली बैठक मई 2022 में दिल्ली में हुई थी।

तटस्थ विशेषज्ञ का हालिया फैसला

  1. प्रस्तावित विवाद:
    • पाकिस्तान ने भारत द्वारा पश्चिमी नदियों पर बनाए जा रहे किशनगंगा और राटले जलविद्युत परियोजनाओं के डिज़ाइन पर आपत्ति जताई।
    • पाकिस्तान का दावा था कि इन डिज़ाइनों से संधि के प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है।
  2. तटस्थ विशेषज्ञ का निर्णय:
    • तटस्थ विशेषज्ञ ने घोषणा की कि वह विवाद के तकनीकी और डिजाइन संबंधित पहलुओं पर निर्णय लेने के लिए सक्षम है।
    • इससे यह स्पष्ट हुआ कि संधि के तहत विवाद सुलझाने की प्रक्रिया का पालन किया जाएगा।

भारत और पाकिस्तान के दृष्टिकोण

  1. भारत का पक्ष:
    • भारत का दावा है कि वह सिंधु जल संधि की शर्तों के भीतर रहकर जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है।
    • भारत का यह भी मानना है कि पाकिस्तान बार-बार विवाद उठाकर विकास परियोजनाओं में बाधा डाल रहा है।
  2. पाकिस्तान का पक्ष:
    • पाकिस्तान का आरोप है कि भारत द्वारा निर्मित परियोजनाएं उसकी जल आपूर्ति को प्रभावित कर सकती हैं।
    • पाकिस्तान सिंधु जल संधि को अपनी जल सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानता है।

सिंधु जल संधि की प्रासंगिकता

  1. भारत-पाकिस्तान संबंध:
    • यह संधि दोनों देशों के बीच अब तक के सबसे सफल समझौतों में से एक मानी जाती है।
    • इसे तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद दोनों देशों ने 1960 से बरकरार रखा है।
  2. जल विवादों का समाधान:
    • संधि ने विवाद सुलझाने के लिए स्पष्ट प्रावधान दिए हैं।
    • तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।
  3. पर्यावरणीय और रणनीतिक महत्व:
    • पश्चिमी नदियों पर भारत की परियोजनाएं जल संसाधनों के रणनीतिक उपयोग और ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक हैं।
    • पाकिस्तान की आपत्ति का केंद्र उसकी जल सुरक्षा है।

आगे की राह

  1. आपसी बातचीत:
    • दोनों देशों को विवादों को सुलझाने के लिए संवाद और कूटनीतिक तरीकों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  2. संधि की समीक्षा:
    • भारत को पश्चिमी नदियों पर अपने सीमित अधिकारों का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • बदलते पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में संधि की समीक्षा की जानी चाहिए।
  3. वैश्विक मध्यस्थता:
    • यदि विवाद बढ़ता है, तो इसे सुलझाने के लिए विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका को बढ़ावा देना होगा।

निष्कर्ष

सिंधु जल संधि दोनों देशों के बीच जल विवादों को सुलझाने का एक सशक्त उपकरण है। तटस्थ विशेषज्ञ का यह फैसला संधि की शर्तों और प्रक्रियाओं की प्रासंगिकता को दर्शाता है।
भारत और पाकिस्तान को संधि की भावना का पालन करते हुए अपने विवादों को सुलझाने की दिशा में काम करना चाहिए। जल संसाधनों का न्यायसंगत और टिकाऊ उपयोग क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है।


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