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Daily Current Affairs For UPSC IAS | 21 February 2025

DAILY CURRENT AFFAIRS IN HINDI FOR UPSC IAS – Prelims And Mains Examination 2025 | 21 FEBRUARY 2025 – UPSC PRELIMS POINTER Fact Based Current Affairs.

DAILY Current Affairs Analysis For UPSC Pre And Mains Examination

Daily Archive

ग्लोबल वार्मिंग से जल अंतराल बढ़ रहा है ( GLOBAL WARMING EXACERBATING WATER GAPS ) – Daily Current Affairs

वैश्विक जल संकट और जलवायु परिवर्तन:

पृष्ठभूमि:
वर्तमान में, हर साल लगभग 458 अरब घन मीटर (bcm) पानी की कमी दर्ज की जाती है। हाल ही में Nature Communications में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यह संकट भविष्य में और भी गहरा सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि से जल की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन और अधिक बढ़ेगा।


मुख्य बिंदु

जल असंतुलन (Water Gaps) का अर्थ

  • जल असंतुलन वह अंतर है जो नवीकरणीय जल उपलब्धता और जल खपत के बीच होता है, जबकि जल निकायों में पर्याप्त प्रवाह बनाए रखना आवश्यक होता है।
  • शोधकर्ताओं ने जलवायु मॉडल के डेटा का उपयोग करके वर्तमान, 1.5°C और 3°C तापमान वृद्धि पर जल असंतुलन का आकलन किया।

जल असंतुलन के बढ़ते खतरे

  • वर्तमान में जल असंतुलन झेल रहे क्षेत्र 1.5°C तापमान वृद्धि पर और अधिक गंभीर स्थिति का सामना करेंगे, और 3°C पर हालात और भी खराब हो जाएंगे।
  • यह प्रभाव विशेष रूप से पूर्वी अमेरिका, चिली, भूमध्यसागरीय क्षेत्र, दक्षिण एवं पूर्वी भारत, और नॉर्थ चाइना प्लेन में स्पष्ट रूप से देखा जाएगा।
  • कुछ क्षेत्र जो अब तक ज्यादा प्रभावित नहीं थे, जैसे इटली, मेडागास्कर, अमेरिका के पूर्वी तट (नॉर्थ कैरोलाइना और वर्जीनिया) और ग्रेट लेक्स क्षेत्र (विस्कॉन्सिन, मिनेसोटा, इलिनोइस), वहां भी हालात बिगड़ने की आशंका है।
  • सऊदी अरब में 1.5°C पर जल संकट कम होने की संभावना है, लेकिन 3°C तापमान वृद्धि पर जल असंतुलन काफी बढ़ सकता है।

भारत में सबसे बड़ा जल असंतुलन

  • भारत, अमेरिका, पाकिस्तान, ईरान और चीन में वर्तमान जलवायु में सबसे अधिक जल असंतुलन देखा जाता है।
  • भारत में तापमान वृद्धि के सभी परिदृश्यों में सबसे अधिक जल असंतुलन बढ़ने का अनुमान है।
  • 1.5°C गर्म जलवायु में भारत को अतिरिक्त 11.1 किमी³ प्रति वर्ष जल असंतुलन का सामना करना पड़ेगा।

गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन पर संकट

  • वर्तमान जलवायु में, गंगा-ब्रह्मपुत्र, साबरमती, टिगरिस-यूफ्रेट्स, सिंधु (Indus) और नील (Nile) नदी घाटियों में सबसे अधिक जल असंतुलन देखा जाता है।
  • 1.5°C तापमान वृद्धि पर, गंगा-ब्रह्मपुत्र, गोदावरी और मिसिसिपी-मिसौरी नदी घाटियों में जल असंतुलन तेजी से बढ़ेगा, जबकि साबरमती, कोलंबिया और उत्तर-पश्चिमी अमेरिका तथा नील घाटी में यह घट सकता है।
  • 3°C तापमान वृद्धि पर, गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी में जल असंतुलन में सबसे अधिक वृद्धि होगी, इसके बाद सिंधु, मिसिसिपी-मिसौरी, चीन के तटीय क्षेत्र, गोदावरी और टिगरिस-यूफ्रेट्स नदी घाटियों में स्थिति और गंभीर हो जाएगी।

मुख्य निष्कर्ष और अनुमान

🌡 तापमान वृद्धि के साथ जल संकट की गंभीरता

🔹 1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग:
👉 पानी की कमी 6% तक बढ़ने की संभावना है।
👉 जल संसाधनों का असमान वितरण और अधिक तीव्र हो सकता है।

🔹 3 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग:
👉 पानी की कमी 15% तक बढ़ने का अनुमान है।
👉 यह स्थिति कृषि, पेयजल आपूर्ति और औद्योगिक उपयोग को प्रभावित करेगी।

💧 जल संकट के प्रमुख कारण

बढ़ती जनसंख्या और जल की अधिक खपत
भूजल भंडार का अत्यधिक दोहन
जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा चक्र में परिवर्तन
ग्लेशियरों का पिघलना, जिससे नदी जल प्रवाह में कमी


प्रभावित क्षेत्र और संभावित खतरे

🏜 सूखा प्रभावित क्षेत्र:

📌 दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश): गंगा और सिंधु नदी प्रणालियों पर प्रभाव
📌 अफ्रीका: सहारा और उप-सहारा क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता घटेगी
📌 मध्य पूर्व: पहले से ही जल संकट झेल रहे देशों में समस्या और बढ़ेगी

🌊 बढ़ते समुद्र स्तर का प्रभाव:

📌 तटीय क्षेत्रों में लवणीय जल का प्रवेश बढ़ेगा, जिससे पीने योग्य पानी की कमी होगी।
📌 नदियों और झीलों का जल स्तर गिर सकता है।

🌾 कृषि और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव:

📌 फसल उत्पादन पर संकट, जिससे खाद्य संकट उत्पन्न हो सकता है।
📌 सिंचाई जल की कमी से ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होंगी।


समाधान और संभावित उपाय

जल संरक्षण और प्रबंधन:

वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना
भूजल पुनर्भरण तकनीकों का उपयोग
जल उपयोग की दक्षता बढ़ाना (ड्रिप सिंचाई, स्मार्ट वाटर मैनेजमेंट)

जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास:

✔ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी
✔ सतत कृषि तकनीकों का विकास
✔ वनों की कटाई रोकना और वृक्षारोपण बढ़ाना

नीतिगत सुधार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग:

✔ सरकारों द्वारा जल सुरक्षा कानूनों को सख्ती से लागू करना
सीमापार जल समझौतों को मजबूत करना
✔ जल संकट से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर वित्तीय और तकनीकी सहायता बढ़ाना


निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन के कारण जल संकट आने वाले दशकों में और गंभीर रूप ले सकता है। यदि तात्कालिक और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट कृषि, उद्योग और मानव जीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित कर सकता है। जल संरक्षण, स्मार्ट जल प्रबंधन, और सतत विकास नीतियाँ अपनाकर ही इस चुनौती से निपटा जा सकता है।

लचीला दूरसंचार बुनियादी ढांचा | RESILIENT TELECOM INFRASTRUCTURE

भारतीय दूरसंचार नेटवर्क और आपदा तैयारी: CDRI की रिपोर्ट का विश्लेषण

“Coalition for Disaster Resilient Infrastructure (CDRI)” एक बहुपक्षीय संगठन है, जिसे 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉन्च किया गया था। इस संगठन का उद्देश्य आपदा-प्रतिरोधी इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देना है, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान महत्वपूर्ण सेवाओं को बनाए रखा जा सके।

हाल ही में CDRI ने भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की आपदा तैयारी पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की, जिसमें यह अध्ययन किया गया कि भूकंप, बाढ़, चक्रवात और साइबर हमलों जैसी आपदाओं के दौरान भारत की टेलीकॉम सेवाएं कितनी सुरक्षित और प्रभावी हैं।


मुख्य निष्कर्ष और चुनौतियाँ

1️⃣ टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर की संवेदनशीलता

🔹 भारत का दूरसंचार नेटवर्क अत्यधिक विस्तृत है, लेकिन यह बाढ़, चक्रवात, भूकंप और बिजली कटौती के प्रति संवेदनशील बना हुआ है।
🔹 कई मोबाइल टावर और फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क कमजोर स्थानों पर स्थित हैं, जिससे वे आसानी से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
🔹 साइबर हमलों के बढ़ते खतरे ने भी दूरसंचार सेवाओं की सुरक्षा को एक प्रमुख चिंता बना दिया है।

2️⃣ प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव

📌 2019 का फानी चक्रवात (ओडिशा) → मोबाइल नेटवर्क का 40% से अधिक क्षतिग्रस्त हो गया था।
📌 2020 का अम्फान चक्रवात (पश्चिम बंगाल) → लाखों टेलीकॉम उपभोक्ता 72 घंटे तक सेवाओं से वंचित रहे।
📌 उत्तराखंड बाढ़ (2013) → टेलीकॉम टावर गिरने से पूरे क्षेत्र का संचार बाधित हुआ था।

3️⃣ बिजली कटौती और बैकअप सिस्टम की समस्या

🔸 मोबाइल टावरों का बैकअप सिस्टम (डीजल जनरेटर, बैटरी) सीमित समय तक ही काम करता है, जिससे आपदा के समय नेटवर्क लंबे समय तक ठप हो सकता है।
🔸 रिमोट इलाकों में बिजली कटौती से नेटवर्क की बहाली में काफी समय लगता है।

4️⃣ साइबर सुरक्षा खतरे

🔹 CDRI की रिपोर्ट में टेलीकॉम सेक्टर पर बढ़ते साइबर हमलों पर भी चिंता जताई गई है।
🔹 5G नेटवर्क के आने से साइबर सुरक्षा उपायों को और मजबूत करने की आवश्यकता है।


CDRI की सिफारिशें और समाधान

टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना

✔ भूकंप, बाढ़ और चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में स्ट्रॉन्ग मोबाइल टावर और अंडरग्राउंड केबल का उपयोग किया जाए।
5G टावरों को अधिक स्थिर और आपदा-रोधी बनाया जाए।
✔ आपातकालीन स्थिति में सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम का उपयोग किया जाए।

बिजली आपूर्ति और बैकअप व्यवस्था में सुधार

✔ टेलीकॉम टावरों के लिए सोलर पैनल और लॉन्ग-लाइफ बैटरी का उपयोग किया जाए।
✔ बिजली कटौती के दौरान स्वचालित जनरेटर बैकअप सिस्टम को प्राथमिकता दी जाए।

साइबर सुरक्षा उपायों को मजबूत करना

✔ 5G और अन्य टेलीकॉम नेटवर्क के लिए एडवांस साइबर सुरक्षा सिस्टम अपनाया जाए।
✔ डेटा सुरक्षा और साइबर हमलों की रोकथाम के लिए नई नीतियाँ बनाई जाएँ।

आपदा प्रबंधन के लिए त्वरित प्रतिक्रिया टीम (DRT) बनाना

तेज़ नेटवर्क बहाली के लिए राष्ट्रीय टेलीकॉम आपदा प्रबंधन यूनिट बनाई जाए।
रिमोट इलाकों में मोबाइल नेटवर्क को जल्द से जल्द बहाल करने के लिए विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम लागू किए जाएँ।


निष्कर्ष

CDRI की रिपोर्ट भारत के दूरसंचार नेटवर्क में आपदा-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव देती है। भारत को साइबर सुरक्षा, टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूती और आपदा प्रबंधन तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। यदि ये सुधार लागू किए जाते हैं, तो भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं और साइबर खतरों के दौरान टेलीकॉम सेवाओं की विश्वसनीयता बढ़ाई जा सकती है।

INDIA AND QATAR – Relationship

भारत-कतर रणनीतिक साझेदारी: एक विस्तृत विश्लेषण

भारत और कतर ने हाल ही में अपने द्विपक्षीय संबंधों को “रणनीतिक साझेदारी” (Strategic Partnership) के स्तर तक बढ़ाने का निर्णय लिया है। यह कदम दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापार, निवेश, ऊर्जा सहयोग और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करेगा। यह घोषणा कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी की 17-18 फरवरी 2025 को भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई बैठक में की गई।


मुख्य समझौते और पहल

1️⃣ रणनीतिक साझेदारी समझौता

इस साझेदारी के तहत, भारत और कतर ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने पर सहमति व्यक्त की, जिनमें शामिल हैं:
व्यापार और निवेश
ऊर्जा और गैस आपूर्ति
टेक्नोलॉजी और डिजिटल पेमेंट सिस्टम
खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र
संस्कृति और जन-जन के बीच संबंध

2️⃣ दोहरा कराधान बचाव समझौता (DTAA)

भारत और कतर ने एक संशोधित “दोहरा कराधान बचाव समझौते” पर हस्ताक्षर किए, जिससे निवेश और वित्तीय लेनदेन को बढ़ावा मिलेगा। यह समझौता कर चोरी को रोकने और दोनों देशों के व्यावसायिक संगठनों के लिए कराधान को आसान बनाने में मदद करेगा।

3️⃣ व्यापार और निवेश के लक्ष्य

🔹 द्विपक्षीय व्यापार को अगले 5 वर्षों में $14 बिलियन से $28 बिलियन तक बढ़ाने का लक्ष्य।
🔹 कतर द्वारा भारत में $10 बिलियन का निवेश किया जाएगा, जिसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी, लॉजिस्टिक्स, हॉस्पिटैलिटी और कृषि क्षेत्र शामिल हैं।

4️⃣ वित्तीय सहयोग

🔸 कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (QIA) भारत में अपना कार्यालय स्थापित करेगा, जिससे निवेश के अवसरों में वृद्धि होगी।
🔸 भारत का यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) कतर के नेशनल बैंक के पॉइंट ऑफ़ सेल्स (POS) सिस्टम में एकीकृत किया जाएगा, जिससे दोनों देशों के बीच डिजिटल भुगतान को बढ़ावा मिलेगा।

5️⃣ ऊर्जा सहयोग

भारत और कतर के बीच पहले से ही एलएनजी (LNG) आपूर्ति को लेकर मजबूत संबंध हैं। नई साझेदारी के तहत, भारत कतर से प्राकृतिक गैस के आयात को बढ़ाने और इसमें दीर्घकालिक निवेश करने की योजना बना रहा है।

6️⃣ सांस्कृतिक और जनसंपर्क कार्यक्रम

🔹 “भारत-कतर संस्कृति और मित्रता वर्ष” मनाने पर सहमति बनी है, जिससे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा।
🔹 खेल और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए भी पहल की गई है।


मुख्य बिंदु:

  • दोनों देशों के बीच व्यापार $14 अरब प्रति वर्ष है, और उन्होंने इसे 2030 तक दोगुना कर $28 अरब करने का लक्ष्य रखा है।
  • कतर के सॉवरेन वेल्थ फंड का भारत में $1.5 अरब का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) है।
  • संयुक्त बयान के अनुसार, कतर ने भारत में $10 अरब निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है।

द्विपक्षीय संबंध

  • कतर के प्रमुख निर्यात: भारत को कतर LNG (तरलीकृत प्राकृतिक गैस), LPG, रसायन एवं पेट्रोकेमिकल्स, प्लास्टिक और एल्युमिनियम उत्पाद निर्यात करता है।
  • भारत के प्रमुख निर्यात: कतर को भारत अनाज, तांबे और लोहे-इस्पात के उत्पाद, सब्जियाँ, फल, मसाले, प्रोसेस्ड फूड, इलेक्ट्रिकल एवं अन्य मशीनरी, प्लास्टिक उत्पाद, निर्माण सामग्री, वस्त्र एवं परिधान, रसायन, कीमती पत्थर और रबर निर्यात करता है।
  • ऊर्जा सहयोग:
    • कतर भारत का सबसे बड़ा LNG आपूर्तिकर्ता है (वित्त वर्ष 2022-23 में 10.74 MMT LNG, जिसकी कीमत $8.32 अरब थी), जो भारत के कुल वैश्विक LNG आयात का 48% हिस्सा है।
    • कतर भारत का सबसे बड़ा LPG आपूर्तिकर्ता भी है (वित्त वर्ष 2022-23 में 5.33 MMT LPG, जिसकी कीमत $4.04 अरब थी), जो भारत के कुल LPG आयात का 29% हिस्सा है।
  • रक्षा सहयोग:
    • भारत और कतर के बीच रक्षा सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का महत्वपूर्ण स्तंभ है।
    • भारत अपने रक्षा संस्थानों में कतर सहित कई साझेदार देशों को प्रशिक्षण अवसर प्रदान करता है।
  • भारतीय प्रवासी समुदाय:
    • 2024 तक, कतर की कुल जनसंख्या का लगभग 25% भारतीय नागरिक हैं, जो मुख्य रूप से प्रवासी श्रमिक के रूप में काम कर रहे हैं।

प्रासंगिक घटनाक्रम और विश्लेषण

📌 व्यापार और आर्थिक वृद्धि

भारत और कतर की इस नई रणनीतिक साझेदारी से दोनों देशों को आर्थिक रूप से लाभ होगा। कतर जहां भारत में बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स में निवेश कर रहा है, वहीं भारत भी कतर में व्यापार के नए अवसर तलाश रहा है।

📌 ऊर्जा क्षेत्र में मजबूती

भारत अपनी एलएनजी जरूरतों का 50% से अधिक कतर से आयात करता है। यह साझेदारी इस संबंध को और मजबूत करेगी और दीर्घकालिक आपूर्ति सुनिश्चित करेगी।

📌 भूतपूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों की रिहाई

हाल ही में कतर में गिरफ्तार किए गए 8 भारतीय नौसेना अधिकारियों की रिहाई के बाद यह साझेदारी एक मजबूत संकेत देती है कि दोनों देश अपने संबंधों को नए स्तर तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

📌 भविष्य की संभावनाएँ

व्यापार और निवेश के लिए नए द्वार खुलेंगे।
भारत को ऊर्जा सुरक्षा में मजबूती मिलेगी।
डिजिटल भुगतान और फिनटेक सेक्टर में नई संभावनाएं बनेंगी।
सांस्कृतिक और शैक्षिक सहयोग से लोगों के बीच संपर्क मजबूत होगा।


निष्कर्ष

भारत-कतर रणनीतिक साझेदारी एक ऐतिहासिक कूटनीतिक निर्णय है जो दोनों देशों के आर्थिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक संबंधों को एक नई ऊंचाई तक ले जाएगा। इस सहयोग से व्यापार, निवेश, ऊर्जा और डिजिटल टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में व्यापक सुधार होंगे, जिससे दोनों देशों को दीर्घकालिक लाभ मिलेगा।