DAILY CURRENT AFFAIRS IN HINDI FOR UPSC IAS – Prelims And Mains Examination 2025 | 11 FEBRUARY 2025 – UPSC PRELIMS POINTER Fact Based Current Affairs.
DAILY Current Affairs Analysis For UPSC Pre And Mains Examination
Daily Archiveभारत में बुनियादी ढाँचे का विकास ( infrastructure development in india ) – Upsc Current Affairs
भारत में बुनियादी ढाँचे का विकास:
बुनियादी ढाँचे का विकास किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसमें परिवहन, ऊर्जा, शहरी विकास, जल आपूर्ति, और डिजिटल अवसंरचना जैसी सुविधाएँ शामिल होती हैं। भारत सरकार लगातार इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा रही है ताकि देश को एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में विकसित किया जा सके। इस विश्लेषण में हम बजट 2025-26 में घोषित बुनियादी ढाँचे से संबंधित पहल, वर्तमान स्थिति, इसकी परिभाषा, और आगे की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
बजट 2025-26 में बुनियादी ढाँचे के लिए प्रमुख घोषणाएँ
- बुनियादी ढाँचे के लिए पूंजीगत व्यय में वृद्धि – सरकार ने बुनियादी ढाँचे के विकास को गति देने के लिए पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि की है। इसका उद्देश्य सड़कों, रेलवे, और शहरी विकास परियोजनाओं में निवेश बढ़ाना है।
- परिसंपत्ति मौद्रीकरण योजना – बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं को वित्तीय रूप से सक्षम बनाने के लिए मौजूदा सरकारी परिसंपत्तियों का मौद्रीकरण किया जाएगा, जिससे धन जुटाया जा सकेगा।
- जल जीवन मिशन – ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इस मिशन को विस्तारित किया गया है।
- राज्यों को दीर्घकालिक ऋण – राज्यों को बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए ब्याज-मुक्त दीर्घकालिक ऋण दिया जाएगा, जिससे वे अपनी बुनियादी सुविधाओं का विकास कर सकें।
- ग्रीन एनर्जी और टिकाऊ अवसंरचना – नवीकरणीय ऊर्जा, हरित भवन, और पर्यावरण-अनुकूल परियोजनाओं में निवेश को प्राथमिकता दी गई है।
- परिवहन अवसंरचना का विस्तार – राष्ट्रीय राजमार्गों, रेलवे, और हवाई अड्डों के विस्तार के लिए बड़ी पूंजीगत राशि आवंटित की गई है।
- मेट्रो और सार्वजनिक परिवहन – शहरी क्षेत्रों में मेट्रो और बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (BRTS) के विस्तार के लिए नए प्रोजेक्ट प्रस्तावित किए गए हैं।
भारत में बुनियादी ढाँचे के विकास की वर्तमान स्थिति
1. परिवहन अवसंरचना
- भारत का सड़क नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक है। पिछले कुछ वर्षों में हाईवे और एक्सप्रेसवे का तेजी से विकास हुआ है।
- रेलवे क्षेत्र में, नई उच्च गति रेल परियोजनाओं और सेमी-हाई स्पीड ट्रेनों का विस्तार किया जा रहा है।
- हवाई अड्डों के विकास में तेजी आई है, और कई टियर-2 और टियर-3 शहरों में हवाई संपर्क बढ़ाया गया है।
2. ऊर्जा क्षेत्र
- भारत तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है।
- थर्मल और हाइड्रो पावर परियोजनाओं को भी पर्याप्त समर्थन दिया जा रहा है।
- विद्युत ट्रांसमिशन और वितरण में सुधार के लिए कई स्मार्ट ग्रिड परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं।
3. शहरी विकास और स्मार्ट सिटी परियोजनाएँ
- स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कई शहरों में बुनियादी सुविधाओं का आधुनिकीकरण किया गया है।
- नगर निगमों को बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए अतिरिक्त वित्तीय सहायता दी जा रही है।
- टिकाऊ और स्मार्ट शहरी परिवहन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
4. डिजिटल अवसंरचना
- डिजिटल इंडिया अभियान के तहत देशभर में इंटरनेट कनेक्टिविटी को मजबूत किया जा रहा है।
- 5G नेटवर्क का विस्तार और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल सेवाओं को सुलभ बनाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
- डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लिए सरकार नई पहलों की योजना बना रही है।
बुनियादी ढाँचे की परिभाषा
बुनियादी ढाँचा किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है। यह विभिन्न प्रकार की भौतिक और संगठनात्मक सुविधाओं को दर्शाता है, जो सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक होते हैं। इसमें निम्नलिखित प्रमुख घटक शामिल हैं:
- परिवहन – सड़कें, रेलवे, हवाई अड्डे, और बंदरगाह।
- ऊर्जा – बिजली उत्पादन, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, ट्रांसमिशन और वितरण नेटवर्क।
- जल आपूर्ति और स्वच्छता – पेयजल आपूर्ति, सीवेज प्रबंधन, और जल संरक्षण।
- संचार – दूरसंचार, इंटरनेट नेटवर्क, और ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी।
- शहरी विकास – स्मार्ट सिटी, आवासीय और व्यावसायिक अवसंरचना, और सार्वजनिक परिवहन।
आधारभूत अवसंरचना के विकास के लिये सरकार की पहल क्या हैं?
- PM गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (NMP): NMP में 44 केंद्रीय मंत्रालयों और 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया गया है।
- राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति: वर्ल्ड बैंक लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स (LPI) में भारत की रैंकिंग वर्ष 2018 के 44वें स्थान से 6 स्थान सुधरकर वर्ष 2023 में 139 देशों में 38वें स्थान पर पहुँच गई है।
- भारतमाला परियोजना: नवंबर, 2024 तक परियोजना के तहत कुल 18,926 किलोमीटर सड़कें पूरी हो चुकी हैं।
- प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना: वर्ष 2024-25 में 7,71,950 कि.मी सड़कें पूरी हुईं।
- क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS)- उड़ान: अब तक 619 RCS मार्गों पर परिचालन शुरू हो चुका है, जो 13 हेलीपोर्ट और 2 जल हवाई अड्डों सहित 88 हवाई अड्डों को आपस में जोड़ता हैं।
आगे की राह
भारत के बुनियादी ढाँचे के विकास को और अधिक सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाना आवश्यक है:
- निजी निवेश को बढ़ावा – सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है ताकि निजी क्षेत्र की भागीदारी से परियोजनाओं को गति मिले।
- तेजी से परियोजनाओं का क्रियान्वयन – कई बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ समय पर पूरी नहीं होती हैं। इसके लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल और तेज़ करना आवश्यक है।
- हरित और सतत बुनियादी ढाँचा – पर्यावरण-अनुकूल निर्माण तकनीकों और टिकाऊ विकास पर अधिक ध्यान देना होगा।
- रोजगार और कौशल विकास – बुनियादी ढाँचे से जुड़े कार्यों में कुशल श्रमिकों की माँग को पूरा करने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- स्थानीय और क्षेत्रीय योजना का समावेश – बुनियादी ढाँचा योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ स्थानीय और क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार भी विकसित करने की जरूरत है।
निष्कर्ष
भारत में बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में लगातार सुधार हो रहा है, और सरकार द्वारा नए निवेश और योजनाएँ लाने से इस क्षेत्र को और मजबूती मिलेगी। बजट 2025-26 में की गई घोषणाएँ इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। अगर निजी और सार्वजनिक क्षेत्र मिलकर प्रभावी नीतियों के साथ आगे बढ़ते हैं, तो भारत अगले दशक में विश्वस्तरीय बुनियादी ढाँचा विकसित कर सकता है, जो आर्थिक विकास को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा।
साउथ कोस्ट रेलवे (एससीओआर) ज़ोन: डिवीजन, वाल्टेयर स्प्लिट और आर्थिक प्रभाव ( South Coast Railway (SCoR) Zone: Divisions, Waltair Split & Economic Impact )
दक्षिण तट रेलवे (SCoR) ज़ोन: नवीनतम समाचार
केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत दक्षिण तट रेलवे (South Coast Railway – SCoR) ज़ोन के गठन को मंजूरी दी।
यह भारत का 18वाँ रेलवे ज़ोन होगा।
✅ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी में इसके मुख्यालय के लिए विशाखापट्टनम में आधारशिला रखी।
✅ यह नया ज़ोन पूर्व तट रेलवे (East Coast Railway) और दक्षिण मध्य रेलवे (South Central Railway) के कुछ हिस्सों को पुनर्गठित कर बनाया गया है।
✅ वाल्टेयर रेल मंडल (Waltair Division) को विभाजित किया गया:
- एक भाग विशाखापट्टनम रेलवे मंडल बना, जो SCoR का हिस्सा होगा।
- दूसरा भाग रायगढ़ा (ओडिशा) में एक नया मंडल बनेगा, जो पूर्व तट रेलवे (East Coast Railway) के अंतर्गत आएगा।
दक्षिण तट रेलवे (SCoR) ज़ोन के गठन का कारण
1️⃣ आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत अनिवार्यता
✅ अनुसूची 13 (इंफ्रास्ट्रक्चर), आइटम 8 के अनुसार, भारतीय रेलवे को एक नए रेलवे ज़ोन की व्यवहार्यता की जाँच करने का निर्देश था।
2️⃣ सरकारी घोषणा और रणनीतिक महत्व
✅ फरवरी 2019 में केंद्र सरकार ने SCoR ज़ोन के गठन की घोषणा की।
✅ यह रेलवे संचालन की प्रभावशीलता बढ़ाने और यात्री व मालवाहन मांगों को पूरा करने के लिए किया गया।
3️⃣ आर्थिक और लॉजिस्टिक लाभ
✅ एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी के अनुसार, नया ज़ोन:
- औद्योगिक और कृषि विकास को बढ़ावा देगा।
- विशाखापट्टनम और कृष्णापट्टनम जैसे प्रमुख बंदरगाहों के लिए लॉजिस्टिक्स में सुधार करेगा।
- तिरुपति और अन्य सांस्कृतिक स्थलों के पर्यटन को प्रोत्साहित करेगा।
4️⃣ राजनीतिक संदर्भ
✅ आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद से अलग रेलवे ज़ोन की मांग चल रही थी, लेकिन इसे तभी मंजूरी मिली जब राज्य और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक सहमति बनी।
✅ 2024 में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) की सत्ता में वापसी और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल होने के बाद यह निर्णय लिया गया।
दक्षिण तट रेलवे (SCoR) ज़ोन के अंतर्गत मंडल
📍 भौगोलिक क्षेत्र कवरेज
✅ यह ज़ोन मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश को कवर करेगा और तेलंगाना और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों को भी जोड़ेगा।
📍 प्रमुख रेलवे मंडल
1️⃣ विजयवाड़ा मंडल (दक्षिण मध्य रेलवे से स्थानांतरित)
2️⃣ गुंटूर मंडल (दक्षिण मध्य रेलवे से स्थानांतरित)
3️⃣ विशाखापट्टनम मंडल (पूर्व वाल्टेयर मंडल का हिस्सा)
विशाखापट्टनम मंडल (SCoR) के तहत रेल खंड
✅ यह मंडल लगभग 410 किमी क्षेत्र को कवर करेगा, जिसमें शामिल हैं:
- पालासा–विशाखापट्टनम–दुव्वाडा
- कुनेरू–विजयनगरम
- नौपाड़ा जं.–परलाखेमुंडी
- बोब्बिली जं.–सालूर
- सिंहाचलम नॉर्थ–दुव्वाडा बाईपास
- वडालापुडी–दुव्वाडा
- विशाखापट्टनम स्टील प्लांट–जग्गयपालेम
रायगढ़ा मंडल (पूर्व तट रेलवे) के तहत रेल खंड
✅ शेष वाल्टेयर मंडल (लगभग 680 किमी क्षेत्र) को पुनर्गठित कर एक नया मंडल बनाया गया, जिसमें शामिल हैं:
- कोट्टावलसा–बचेली
- कुनेरू–थेरुवली जं.
- सिंगापुर रोड–कोरापुट जं.
- परलाखेमुंडी–गुणपुर
वाल्टेयर मंडल का महत्व
📌 प्रमुख राजस्व उत्पन्न करने वाला मंडल
✅ वाल्टेयर मंडल भारतीय रेलवे के लिए एक प्रमुख राजस्व स्रोत है, खासकर ओडिशा और छत्तीसगढ़ के खनन और इस्पात उद्योगों से जुड़े मालवाहन यातायात के कारण।
📊 पूर्व तट रेलवे (ECoR) की मालवाहन उपलब्धि
✅ वित्त वर्ष 2023-24 में पूर्व तट रेलवे (ECoR) ने 250 मिलियन टन माल लोड करके नया रिकॉर्ड बनाया।
✅ यह लगातार पांचवें वर्ष था जब ECoR ने 200 मिलियन टन से अधिक माल का परिवहन किया।
🛤 मंडल-वार योगदान:
1️⃣ खुर्दा रोड मंडल – 156.17 मिलियन टन
2️⃣ वाल्टेयर मंडल – 74.66 मिलियन टन
3️⃣ संभलपुर मंडल – 19.20 मिलियन टन
✅ वाल्टेयर मंडल का योगदान महत्वपूर्ण है, जिससे यह रेलवे के लिए राजस्व बढ़ाने वाला प्रमुख क्षेत्र बन गया है।
⚠️ ओडिशा में राजनीतिक विरोध
✅ ओडिशा के नेता SCoR ज़ोन के पुनर्गठन का विरोध कर रहे हैं।
✅ उनका तर्क है कि इससे ओडिशा को आर्थिक नुकसान होगा, क्योंकि ECoR का एक बड़ा राजस्व उत्पन्न करने वाला हिस्सा (मुख्यालय: भुवनेश्वर) दक्षिण तट रेलवे (SCoR) में स्थानांतरित किया जा रहा है।
दक्षिण तट रेलवे (SCoR) ज़ोन FAQs
Q1. दक्षिण रेलवे (Southern Railway) में कितने ज़ोन हैं?
✅ दक्षिण रेलवे (Southern Railway) का मुख्यालय चेन्नई में स्थित है और इसके अंतर्गत छह मंडल आते हैं:
1️⃣ चेन्नई
2️⃣ तिरुचिरापल्ली
3️⃣ मदुरै
4️⃣ पालक्काड
5️⃣ सलेम
6️⃣ तिरुवनंतपुरम
Q2. दक्षिण तट रेलवे (SCoR) ज़ोन में कितने मंडल हैं?
✅ दक्षिण तट रेलवे (SCoR) ज़ोन का मुख्यालय विशाखापट्टनम में होगा और इसमें चार मंडल शामिल होंगे:
1️⃣ विशाखापट्टनम (पूर्व में वाल्टेयर मंडल का हिस्सा)
2️⃣ विजयवाड़ा
3️⃣ गुंटूर
4️⃣ गुंटकल
Q3. भारतीय रेलवे में SCoR का पूर्ण रूप क्या है?
✅ SCoR का पूर्ण रूप South Coast Railway (दक्षिण तट रेलवे) है।
✅ यह भारत का 18वाँ रेलवे ज़ोन है।
Q4. वाल्टेयर का नया नाम क्या है?
✅ वाल्टेयर मंडल का नया नाम विशाखापट्टनम मंडल रखा गया है।
✅ वाल्टेयर नाम को औपनिवेशिक विरासत मानते हुए बदला गया है।
Q5. वाल्टेयर मंडल का क्या अर्थ है?
✅ वाल्टेयर रेलवे मंडल, भारतीय रेलवे के पूर्व तट रेलवे (ECoR) ज़ोन के तहत एक प्रमुख मंडल था।
✅ अब इसका नाम बदलकर विशाखापट्टनम मंडल कर दिया गया है।
✅ वाल्टेयर मंडल भारतीय रेलवे के लिए एक महत्वपूर्ण मालवाहन केंद्र रहा है।
✅ SCoR ज़ोन के गठन से विशाखापट्टनम का महत्व बढ़ेगा, लेकिन ओडिशा में आर्थिक प्रभाव को लेकर राजनीतिक विवाद जारी है।
निजी संपत्ति और कानून के अनुसार अधिग्रहण का राज्य का अधिकार ( Private Property and the State’s Right to Acquire According to Law )
निजी संपत्ति अधिग्रहण करने का राज्य का अधिकार – ताज़ा खबर
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दक्षिण अफ्रीका पर निजी भूमि को ज़ब्त करने का आरोप लगाने के बीच, यह लेख विभिन्न देशों—दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और भारत में भूमि अधिग्रहण और संपत्ति अधिकारों से जुड़े क़ानूनों के विकास पर प्रकाश डालता है।
यह निजी संपत्ति अधिकारों और राज्य के अधिग्रहण अधिकार (Eminent Domain) के बीच संतुलन पर चर्चा करता है।
राज्य का निजी संपत्ति अधिग्रहण अधिकार: एमिनेंट डोमेन और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
एमिनेंट डोमेन का अर्थ है कि राज्य को सार्वजनिक उपयोग के लिए निजी भूमि अधिग्रहित करने का अधिकार होता है, चाहे मुआवज़ा दिया जाए या नहीं।
इस अवधारणा की उत्पत्ति 1625 में ह्यूगो ग्रोटियस के लेखन में हुई, जिन्होंने यह विचार प्रस्तुत किया कि सार्वजनिक आवश्यकता के लिए संप्रभु (sovereign) निजी संपत्ति ले सकता है।
यह सिद्धांत यूरोपीय उपनिवेशों में पहुँचा और निम्नलिखित क़ानूनों को प्रभावित किया:
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 (भारत)
- एक्सप्रोप्रियेशन अधिनियम, 1975 (दक्षिण अफ्रीका)
राज्य का निजी संपत्ति अधिग्रहण अधिकार: वैश्विक परिप्रेक्ष्य
1. यूनाइटेड किंगडम (UK)
- मैग्ना कार्टा (1215) पहला उदाहरण था जब राजा की संपत्ति जब्त करने की शक्ति पर प्रतिबंध लगाया गया।
- इसमें यह प्रावधान किया गया कि संपत्ति केवल “कानून द्वारा” अधिग्रहित की जा सकती है।
2. संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
- पांचवां संशोधन (1791): यह प्रावधान करता है कि निजी संपत्ति को बिना उचित मुआवज़े के सार्वजनिक उपयोग के लिए अधिग्रहित नहीं किया जा सकता।
- केलो बनाम न्यू लंदन (2005) मामले में, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि निजी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए संपत्ति अधिग्रहण को “सार्वजनिक उपयोग” के तहत उचित ठहराया जा सकता है।
- इसके बाद, अलाबामा, डेलावेयर और टेक्सास जैसे अमेरिकी राज्यों ने एमिनेंट डोमेन के उपयोग को सीमित करने के लिए क़ानून बनाए।
3. दक्षिण अफ्रीका
- संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जा सकता।
- हालाँकि, सार्वजनिक उद्देश्य के लिए उचित मुआवज़े के साथ संपत्ति का अधिग्रहण किया जा सकता है।
4. भारत
- संविधान में पहले संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार था, जिसे अनुच्छेद 19 के तहत मान्यता प्राप्त थी।
- अनुच्छेद 31 में यह भी प्रावधान था कि कोई संपत्ति सार्वजनिक उद्देश्य के लिए तब तक अधिग्रहित नहीं की जा सकती, जब तक कि उचित मुआवज़े की व्यवस्था न हो।
- 44वें संविधान संशोधन (1978) द्वारा इसे मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया।
- अब यह केवल एक वैधानिक अधिकार (Legal Right) है, जो अनुच्छेद 300A के तहत लागू होता है।
- अनुच्छेद 300A यह सुनिश्चित करता है कि बिना किसी विधायी अधिकार (Legal Authority) के संपत्ति अधिग्रहित नहीं की जा सकती।
भारत में राज्य का निजी संपत्ति अधिग्रहण अधिकार: भूमि अधिग्रहण
2013 से पहले का ढांचा
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 द्वारा शासित।
- सरकार को “सार्वजनिक उद्देश्य” के लिए भूमि अधिग्रहण की अनुमति थी, लेकिन मुआवजे की प्रक्रिया अस्पष्ट थी।
- केवल भूमि स्वामी पर ध्यान दिया जाता था, जबकि प्रभावित परिवारों के हितों की अनदेखी की जाती थी।
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता अधिनियम, 2013
यह अधिनियम न्यायसंगत, सहभागी और पारदर्शी भूमि अधिग्रहण सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया:
✅ सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA): प्रभावित समुदायों पर प्रभाव का मूल्यांकन अनिवार्य।
✅ न्यायसंगत मुआवजा: प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन की गारंटी।
✅ पारदर्शिता और भागीदारी: भूमि अधिग्रहण में प्रभावित समुदायों की सहमति और प्रक्रिया में खुलापन।
निष्कर्ष
✅ सार्वजनिक हित और निजी संपत्ति अधिकारों के बीच संतुलन आवश्यक है।
✅ विभिन्न देशों ने भूमि अधिग्रहण को नियंत्रित करने के लिए क़ानून विकसित किए हैं, जो मुआवज़े और कानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।
✅ भारत में 2013 के बाद के सुधारों का उद्देश्य भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को अधिक न्यायसंगत और पारदर्शी बनाना है।
निजी संपत्ति अधिग्रहण पर सामान्य प्रश्न (FAQs)
Q1. भारत में निजी संपत्ति के अधिकार का विकास कैसे हुआ? संविधान संशोधनों के संदर्भ में समझाइए।
✅ उत्तर: संपत्ति का अधिकार मूल रूप से अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 31 के तहत एक मौलिक अधिकार था।
✅ 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा इसे मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया और अब यह अनुच्छेद 300A के तहत एक कानूनी अधिकार है।
Q2. भारत और अमेरिका के भूमि अधिग्रहण क़ानूनों की तुलना करें, विशेष रूप से मुआवज़े और सार्वजनिक उपयोग के संदर्भ में।
✅ उत्तर:
- अमेरिका: पांचवें संशोधन के तहत उचित मुआवज़े (Just Compensation) की अनिवार्यता।
- भारत: 2013 अधिनियम में न्यायसंगत मुआवज़े और पुनर्वास के प्रावधान; सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) अनिवार्य।
Q3. एमिनेंट डोमेन सिद्धांत क्या है, और इसने वैश्विक भूमि अधिग्रहण कानूनों को कैसे प्रभावित किया?
✅ उत्तर: एमिनेंट डोमेन वह अधिकार है जिसके तहत राज्य सार्वजनिक उद्देश्य के लिए निजी भूमि का अधिग्रहण कर सकता है, मुआवज़े के साथ या बिना।
✅ यह अवधारणा ह्यूगो ग्रोटियस (1625) से निकली और इसे भारत (1894 भूमि अधिग्रहण अधिनियम) और अमेरिका (पांचवां संशोधन) जैसे क़ानूनों में शामिल किया गया।
Q4. “भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता अधिनियम, 2013” के प्रमुख प्रावधानों का विश्लेषण करें और इसका भूमि मालिकों और प्रभावित समुदायों पर प्रभाव समझाएँ।
✅ उत्तर:
- मुआवज़ा: बाजार दर से कम से कम 2-4 गुना अधिक मुआवज़ा।
- सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA): भूमि अधिग्रहण का समाज पर प्रभाव आकलन।
- पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन: विस्थापित परिवारों के लिए आवास, नौकरियाँ और अन्य सुविधाएँ।
✅ प्रभाव: भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया अधिक न्यायसंगत और पारदर्शी बनी, जिससे भूमि मालिकों और प्रभावित समुदायों के अधिकार मज़बूत हुए।
Q5. सार्वजनिक हित (Public Interest) के सिद्धांत के तहत भूमि अधिग्रहण को कैसे उचित ठहराया जाता है, और इस प्रक्रिया में कौन-कौन से नैतिक मुद्दे उत्पन्न होते हैं?
✅ उत्तर:
- भूमि अधिग्रहण बुनियादी ढाँचे के विकास (Infrastructure Development), औद्योगीकरण और सामाजिक कल्याण परियोजनाओं के लिए आवश्यक हो सकता है।
- हालाँकि, नैतिक चिंताएँ भी हैं:
- अपर्याप्त मुआवज़ा
- जबरन विस्थापन
- सामाजिक अन्याय
✅ इसीलिए संतुलित पुनर्वास नीति और निष्पक्ष मुआवज़ा आवश्यक हैं ताकि प्रभावित समुदायों के अधिकार सुरक्षित रहें।
भारत का परमाणु दायित्व कानून संशोधन : India’s Nuclear Liability Law Amendments
India’s Nuclear Liability Law Amendments: A Step Towards Global Partnerships
भारत का परमाणु दायित्व कानून – ताज़ा खबर
केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि वह अपने नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damages Act) और परमाणु ऊर्जा अधिनियम (Atomic Energy Act) में संशोधन करेगी।
परिचय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका और फ्रांस यात्रा (10-13 फरवरी 2025) से पहले, भारतीय सरकार ने अपने नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम (CLNDA) और परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन करने की योजना घोषित की है।
इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी और फ्रांसीसी परमाणु ऊर्जा कंपनियों की चिंताओं को दूर करना है, जिनकी भारत में परियोजनाएँ दायित्व से संबंधित मुद्दों के कारण रुकी हुई हैं।
यह घोषणा सरकार की 2015 की नीति में महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है, जब उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि “अधिनियम या नियमों में संशोधन का कोई प्रस्ताव नहीं है।” अब, ये संशोधन निम्नलिखित प्रमुख परमाणु परियोजनाओं को लागू करने में मदद कर सकते हैं:
- इलेक्ट्रिसिटी डी फ्रांस (EDF) – महाराष्ट्र (जैतापुर) में छह EPR1650 रिएक्टरों के निर्माण के लिए एमओयू
- वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक कंपनी – आंध्र प्रदेश (कोव्वाडा) में छह AP1000 रिएक्टरों के निर्माण के लिए एमओयू
इसके अतिरिक्त, भारत अब “स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR)” तकनीक को अपनाने की योजना बना रहा है, जो विकसित देशों में लोकप्रिय हो रही है।
भारत द्वारा परमाणु दायित्व कानून में संशोधन के कारण
1. विदेशी कंपनियों की चिंताओं का समाधान
पश्चिमी परमाणु ऊर्जा कंपनियाँ CLNDA, 2010 की सख्त दायित्व शर्तों के कारण भारत में निवेश करने से हिचक रही थीं। इस अधिनियम में परमाणु दुर्घटनाओं के लिए आपूर्तिकर्ताओं (suppliers) को ज़िम्मेदार ठहराया गया था।
इसके विपरीत, अंतरराष्ट्रीय परमाणु क्षति के लिए पूरक मुआवजा सम्मेलन (Convention for Supplementary Compensation – CSC) में मुख्य रूप से संचालक (operators) को जिम्मेदार माना जाता है।
2012 में, जब यह कानून लागू किया गया था, तब संसद में गहन बहस हुई थी। उस समय एनडीए (वर्तमान सत्ताधारी दल) ने आपूर्तिकर्ताओं की ज़िम्मेदारी तय करने पर ज़ोर दिया था, क्योंकि भोपाल गैस त्रासदी (1984) और फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना (2011) जैसी घटनाओं के कारण दायित्व को कड़ा बनाया गया था।
हालांकि, इस सख्त कानून के कारण अमेरिकी और फ्रांसीसी कंपनियाँ भारत में निवेश करने से बचती रहीं, क्योंकि उन्हें यह आर्थिक रूप से जोखिम भरा लग रहा था।
2. भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ाना
वर्तमान में, भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता 6,780 मेगावाट है, जिसमें 22 रिएक्टर कार्यरत हैं।
अभी तक, रूस की रोसाटॉम (Rosatom) ही भारत में एकमात्र विदेशी परमाणु ऊर्जा कंपनी है।
2025 के केंद्रीय बजट में सरकार ने परमाणु ऊर्जा विकास के लिए ₹20,000 करोड़ का आवंटन किया है।
भारत का लक्ष्य 2047 तक 100 गीगावाट (GW) परमाणु ऊर्जा उत्पादन हासिल करना है।
इसके अलावा, स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) तकनीक को बढ़ावा देने की योजना है, जिसमें 2033 तक पांच यूनिट शुरू करने की योजना है।
3. अमेरिका और फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना
भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौता (2008) का उद्देश्य परमाणु ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा देना था, लेकिन दायित्व कानून की बाधाओं के कारण अब तक यह प्रभावी नहीं हो पाया।
इसी तरह, फ्रांस की EDF को भी जैतापुर परियोजना में वर्षों की देरी का सामना करना पड़ा है।
प्रधानमंत्री मोदी की वॉशिंगटन और पेरिस यात्रा के दौरान, भारत परमाणु ऊर्जा निवेश में आ रही रुकावटों को दूर करने और नए समझौतों को अंतिम रूप देने की कोशिश करेगा।
CLNDA में संशोधन की चुनौतियाँ
1. घरेलू राजनीतिक विरोध
- मूल 2010 CLNDA अधिनियम को व्यापक सार्वजनिक और संसदीय बहस के बाद पारित किया गया था, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया था कि विदेशी कंपनियों को परमाणु दुर्घटनाओं के लिए दायित्व से छूट नहीं मिलेगी।
- यदि प्रस्तावित संशोधन आपूर्तिकर्ताओं की ज़िम्मेदारी को कम करते हैं, तो विपक्षी दल और नागरिक संगठनों से कड़ा विरोध झेलना पड़ सकता है।
2. कानूनी और नियामक अनिश्चितता
- विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि CLNDA को वैश्विक परमाणु दायित्व मानकों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए, लेकिन संशोधन कैसे लागू किए जाएंगे, इस पर स्पष्टता की कमी है।
- विदेश मंत्रालय (MEA) ने अब तक प्रस्तावित बदलावों का विवरण साझा करने से इनकार कर दिया है, जिससे अनिश्चितता बनी हुई है।
3. निवेशकों का विश्वास और बीमा संबंधी मुद्दे
- भारत ने 2019 में ₹1,500 करोड़ का बीमा कोष बनाया था ताकि परमाणु क्षति के मामलों को कवर किया जा सके, लेकिन यह बड़े विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में विफल रहा।
- संशोधनों में यह सुनिश्चित करना होगा कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ और भारतीय संचालक दोनों कानूनी सुरक्षा और मुआवजा ढांचे में विश्वास करें।
संभावित वैश्विक और आर्थिक प्रभाव
1. रुकी हुई परमाणु परियोजनाओं को गति देना
- यदि CLNDA में संशोधन किया जाता है, तो वेस्टिंगहाउस के AP1000 रिएक्टर (आंध्र प्रदेश) और EDF की जैतापुर परियोजना जैसी परियोजनाओं को हरी झंडी मिल सकती है।
- इससे भारत की स्वच्छ ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
2. वैश्विक परमाणु ऊर्जा में भारत की भूमिका को मजबूत करना
- भारत का SMR (स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर) विकास कार्यक्रम वैश्विक रुझानों के अनुरूप है, जहाँ कई देश लागत-कुशल और मॉड्यूलर परमाणु तकनीकों में निवेश कर रहे हैं।
- अमेरिका और फ्रांस के साथ परमाणु सहयोग से भारत को लाभ होगा:
- तकनीकी विशेषज्ञता में वृद्धि
- ऊर्जा स्रोतों में विविधता
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी
3. भारत में अमेरिकी और फ्रांसीसी रणनीतिक रुचि
- अमेरिका अपनी व्यापार और रणनीतिक नीति के तहत परमाणु प्रौद्योगिकी सहित ऊर्जा निर्यात बढ़ाना चाहता है।
- फ्रांस, जो परमाणु ऊर्जा में अग्रणी है, भारत को अपनी उन्नत रिएक्टर तकनीक के लिए एक प्रमुख बाजार मानता है।
- इसलिए, दोनों देश भारत के साथ परमाणु दायित्व से जुड़े मुद्दों को हल करने और आर्थिक व कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के इच्छुक हैं।
निष्कर्ष
भारत के परमाणु दायित्व कानून में प्रस्तावित संशोधन एक महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन को दर्शाते हैं, जो विदेशी निवेश को आकर्षित करने और रुकी हुई परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं को गति देने की दिशा में उठाया गया कदम है।
हालाँकि, इस निर्णय से भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय विस्तार हो सकता है, लेकिन सरकार को अंतरराष्ट्रीय दायित्वों और घरेलू राजनीतिक विरोध के बीच संतुलन बनाना होगा।
जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका और फ्रांस की यात्रा पर जाएंगे, दुनिया की नज़र इस बात पर होगी कि क्या ये संशोधन 15 साल से चले आ रहे गतिरोध को समाप्त कर सकते हैं और भारत को वैश्विक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी बना सकते हैं।
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