DAILY CURRENT AFFAIRS IN HINDI FOR UPSC IAS – Prelims And Mains Examination 2025 | 06 March 2025 – UPSC PRELIMS POINTER Fact Based Current Affairs.
DAILY Current Affairs Analysis For UPSC Pre And Mains Examination
Daily Archiveऑफशोर माइनिंग ( OFFSHORE MINING )
ऑफशोर माइनिंग और केरल में विरोध
समाचार में क्यों?
• केरल के तटीय समुदायों में केंद्र सरकार की ऑफशोर माइनिंग (समुद्री खनन) योजनाओं के खिलाफ विरोध बढ़ रहा है।
• स्थानीय लोगों का मानना है कि यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (Marine Ecosystem) को नष्ट कर देगा और उनकी पारंपरिक आजीविका को समाप्त कर देगा।
ऑफशोर माइनिंग क्या है?
• समुद्र की गहराइयों से खनिजों और संसाधनों का दोहन।
• मुख्यतः रेयर अर्थ एलिमेंट्स (Rare Earth Elements), तेल, प्राकृतिक गैस, भारी खनिज (Heavy Minerals) और बहुमूल्य धातुओं का खनन।
• इसे ड्रेजिंग (Dredging), अंडरवाटर ड्रिलिंग और गहरे समुद्र में उत्खनन द्वारा किया जाता है।
केरल में ऑफशोर माइनिंग का मुद्दा
• केरल के तट मोनेज़ाइट (Monazite), इल्मेनाइट (Ilmenite) और गार्नेट (Garnet) जैसे भारी खनिजों से समृद्ध हैं।
• सरकार की योजना समुद्री क्षेत्र में इन खनिजों के खनन की है।
• स्थानीय मछुआरे और तटीय समुदाय इस योजना के विरोध में हैं क्योंकि –
• समुद्री जैव विविधता को नुकसान होगा।
• मत्स्य संसाधनों पर असर पड़ेगा, जिससे उनकी आजीविका खत्म हो सकती है।
• तटीय क्षरण (Coastal Erosion) बढ़ सकता है।
पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताएँ
• समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो सकता है।
• कोरल रीफ्स और समुद्री जीवों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
• मछली पकड़ने के क्षेत्र घट सकते हैं, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होगी।
• तटीय कटाव (Coastal Erosion) बढ़ेगा, जिससे बाढ़ और भूमि क्षरण के खतरे बढ़ेंगे।
भारत में ऑफशोर माइनिंग का कानूनी ढांचा
• दीप महासागर मिशन (Deep Ocean Mission) – समुद्री संसाधनों के अध्ययन और खनन की योजना।
• भारतीय खनिज विकास नीति (National Mineral Policy, 2019) – सतत खनन को बढ़ावा देने का प्रयास।
• पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 – समुद्री पारिस्थितिकी की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण।
मुख्य निष्कर्ष
2023 का संशोधन और निजी क्षेत्र की भागीदारी
- ऑफशोर एरिया मिनरल (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) बिल, 2023 में संशोधन के तहत निजी क्षेत्र को ऑफशोर माइनिंग में भागीदारी की अनुमति दी गई।
- उत्पादन पट्टे और संयुक्त लाइसेंस अब प्रतिस्पर्धी नीलामी के माध्यम से दिए जाएंगे।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के सर्वेक्षण निष्कर्ष
- गुजरात और महाराष्ट्र के तट – एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) में चूना मिट्टी (lime mud) पाई गई।
- केरल का तट – निर्माण कार्य में उपयोगी रेत के भंडार मिले।
- ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र – भारी खनिज (heavy mineral placers) पाए गए।
- अंडमान और लक्षद्वीप समुद्र – पॉलीमेटैलिक फेरोमैंगनीज (Fe-Mn) नोड्यूल्स और क्रस्ट का पता चला।
पहले चरण (Tranche 1) में 13 ऑफशोर क्षेत्रों की नीलामी
- गुजरात तट पर – तीन चूना मिट्टी ब्लॉक।
- केरल तट पर – तीन निर्माण रेत ब्लॉक।
- ग्रेट निकोबार द्वीप के पास – सात पॉलीमेटैलिक नोड्यूल और क्रस्ट ब्लॉक।
केरल में खनन का प्रभाव
- केरल के तीन खनन ब्लॉक ‘कोल्लम परप्पु’ (Quilon Bank) में स्थित हैं, जो दक्षिण-पश्चिमी तट का सबसे समृद्ध मछली पकड़ने का क्षेत्र है।
- यह क्षेत्र यांत्रिक नौकाओं, जाल वाली नौकाओं, और हुक व लाइन मछुआरों द्वारा बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
- केरल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, खनन गतिविधियाँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होगी।
- अध्ययन में कोल्लम क्षेत्र में एकल और कोमल प्रवाल (solitary & soft corals) की विविधता के लिए खतरा बताया गया है, क्योंकि:
- खनन से तलछट के गुबार (sediment plumes) बनेंगे, जिससे पानी की गंदलापन (turbidity) बढ़ेगी।
- इससे पानी की गुणवत्ता घटेगी, खाद्य श्रृंखलाएँ बाधित होंगी, और प्रजनन क्षेत्र (spawning grounds) प्रभावित होंगे।
- इसके अलावा, खनन से निकली रेत को धोने के लिए मीठे पानी के उपयोग की आर्थिक लागत का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 3:
• प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और सतत विकास।
• समुद्री जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव।
• पर्यावरणीय कानून और संरक्षण नीतियाँ।
GS Paper 2:
• नीति निर्माण और तटीय समुदायों के अधिकार।
• सरकार और समाज के बीच संतुलन।
निष्कर्ष:
ऑफशोर माइनिंग से आर्थिक विकास और खनिज संसाधनों की उपलब्धता बढ़ सकती है, लेकिन यह पर्यावरणीय क्षति और सामाजिक संघर्ष को जन्म दे सकता है। सरकार को स्थानीय समुदायों को विश्वास में लेकर पर्यावरणीय प्रभावों का संतुलित मूल्यांकन करना चाहिए।
कॉपर के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा और भारत का प्रयास ( RACE FOR COPPER )
समाचार में क्यों?
• हाल ही में भारत सरकार ने ज़ाम्बिया में 9,000 वर्ग किमी क्षेत्र में तांबा (Copper) और कोबाल्ट (Cobalt) की खोज के लिए ब्लॉक सुरक्षित किया है।
• ज़ाम्बिया तांबे के उच्च-ग्रेड भंडार (High-Grade Copper Deposits) के लिए जाना जाता है।
• यह पहल भारत की महत्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals) सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है।
कॉपर: एक महत्वपूर्ण धातु
• संकेतक: प्रतीक Cu, परमाणु क्रमांक 29।
• प्रमुख उपयोग:
• बिजली और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग।
• नवीकरणीय ऊर्जा और बैटरियों में महत्वपूर्ण भूमिका।
• निर्माण और दूरसंचार क्षेत्र।
• वैश्विक उत्पादन:
• शीर्ष उत्पादक देश: चिली, पेरू, चीन, अमेरिका, कांगो।
• भारत में प्रमुख भंडार – राजस्थान, झारखंड, मध्य प्रदेश।
मुख्य बिंदु
कॉपर की बढ़ती मांग और वैश्विक आपूर्ति
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरियों और स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों से प्रेरित कॉपर की मांग 2035 तक खदानों से होने वाली आपूर्ति से अधिक हो जाएगी।
- देशों में आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित करने और घरेलू क्षमताओं को मजबूत करने की होड़ मची हुई है।
- अधिक रिसाइक्लिंग और वैकल्पिक बैटरी रसायन आपूर्ति पर दबाव कम कर सकते हैं, लेकिन खनन अभी भी आवश्यक रहेगा।
भारत का अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
- भारत में कॉपर को एक महत्वपूर्ण खनिज के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- 2023-24 में घरेलू अयस्क उत्पादन 3.78 मिलियन टन रहा, जो 2018-19 की तुलना में 8% कम है।
- अप्रैल 2023 – जनवरी 2024 के बीच, हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) द्वारा उत्पादन वर्ष-दर-वर्ष 6% कम रहा।
- स्थानीय उत्पादन में ठहराव के कारण, भारत का कॉपर कंसंट्रेट आयात दोगुना होकर ₹26,000 करोड़ (2023-24) हो गया।
- भारत में बड़े कॉपर भंडार हैं, लेकिन खनन शुरू करने से पहले व्यापक अन्वेषण की आवश्यकता है।
- वैश्विक स्तर पर, एक कॉपर खदान को चालू करने में औसतन 17 साल लगते हैं।
- भारत, तांबा-समृद्ध देशों (ज़ाम्बिया, चिली और DRC) में ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड खनिज संपत्तियाँ सुरक्षित करने की कोशिश कर रहा है।
अफ्रीका पर विशेष ध्यान
- अफ्रीका का योगदान तांबा, लिथियम और प्राकृतिक ग्रेफाइट जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन में बढ़ रहा है।
- यह पहले से ही वैश्विक कोबाल्ट उत्पादन का 70% और तांबे का 16% उत्पादन करता है।
- DRC 2030 तक दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तांबा आपूर्तिकर्ता बनने की राह पर है।
- भारत को ज़ाम्बिया के नॉर्थवेस्टर्न प्रांत में 9,000 वर्ग किलोमीटर का खनन ब्लॉक सरकारी स्तर पर आवंटित हुआ है।
- भारत का भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग (GSI) इस भूमि की खोज करेगा, जो दिल्ली के आकार से 6 गुना बड़ी है।
- ज़ाम्बिया दुनिया का सातवां सबसे बड़ा तांबा उत्पादक है, जबकि चिली, पेरू और DRC पहले तीन स्थानों पर हैं।
ज़ाम्बिया में भारत की खनन पहल
• महत्व: ज़ाम्बिया अफ्रीका का दूसरा सबसे बड़ा तांबा उत्पादक देश है।
• साझेदारी: यह सौदा भारत और ज़ाम्बिया के द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग को मजबूत करेगा।
• कोबाल्ट की उपलब्धता: ज़ाम्बिया कोबाल्ट का भी प्रमुख उत्पादक है, जो इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरियों में इस्तेमाल होता है।
कॉपर और कोबाल्ट: रणनीतिक खनिज क्यों?
• ऊर्जा परिवर्तन: हरित ऊर्जा तकनीकों में आवश्यक।
• इलेक्ट्रिक वाहन (EVs): बैटरी और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में महत्वपूर्ण।
• औद्योगिक महत्व: उच्च चालकता और संक्षारण प्रतिरोध के कारण विभिन्न उद्योगों में उपयोगी।
भारत में तांबे का उत्पादन और आयात
• घरेलू उत्पादन:
• प्रमुख खदानें – बालाघाट (मध्य प्रदेश), खेड़ी (राजस्थान), सिंहभूम (झारखंड)।
• हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) भारत की प्रमुख तांबा उत्पादक कंपनी।
• आयात निर्भरता:
• भारत अपनी तांबा आवश्यकता का बड़ा हिस्सा आयात करता है।
• ज़ाम्बिया में निवेश आयात निर्भरता कम कर सकता है।
वैश्विक तांबा प्रतिस्पर्धा
• चीन: अफ्रीका में भारी निवेश, विशेष रूप से तांबा और कोबाल्ट खनन में।
• अमेरिका और यूरोप: खनिज सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं।
• भारत: खनिज संसाधनों के लिए अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में निवेश बढ़ा रहा है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 3:
• खनिज संसाधन और उनकी रणनीतिक महत्ता।
• भारत की खनिज सुरक्षा नीति।
• नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में खनिजों की भूमिका।
GS Paper 2:
• भारत-अफ्रीका आर्थिक सहयोग।
• वैश्विक खनिज आपूर्ति श्रृंखला में भारत की स्थिति।
निष्कर्ष:
भारत का ज़ाम्बिया में तांबा और कोबाल्ट खनन में निवेश खनिज आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक विकास और भारत-अफ्रीका संबंधों को मजबूत करने में सहायक होगा।
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