DAILY CURRENT AFFAIRS IN HINDI FOR UPSC IAS – Prelims And Mains Examination 2025 | 01 April 2025 – UPSC PRELIMS POINTER Fact Based Current Affairs.
DAILY Current Affairs Analysis For UPSC Pre And Mains Examination
Daily Archiveराष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (National Technical Textiles Mission – NTTM)
चर्चा में क्यों?
• राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (NTTM) ने अपनी स्थापना के 5 वर्ष पूरे कर लिए हैं।
• यह मिशन तकनीकी वस्त्र (Technical Textiles) क्षेत्र में नवाचार, अनुसंधान और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था।
• इसका उद्देश्य तकनीकी वस्त्रों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाना और भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक नेता बनाना है।
राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (NTTM) क्या है?
✔ यह मिशन फरवरी 2020 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था।
✔ 2020-2024 की अवधि के लिए ₹1,480 करोड़ के बजट के साथ इसे लॉन्च किया गया।
✔ तकनीकी वस्त्र (Technical Textiles) ऐसे विशेष वस्त्र होते हैं जो सामान्य परिधान से अलग होते हैं और विशेष औद्योगिक, चिकित्सा, रक्षा, कृषि और अवसंरचना क्षेत्रों में उपयोग किए जाते हैं।
✔ इस मिशन का उद्देश्य तकनीकी वस्त्रों के अनुसंधान, विकास और उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
तकनीकी वस्त्रों के प्रकार
तकनीकी वस्त्रों को उनके उपयोग के आधार पर 12 श्रेणियों में बांटा गया है:
- एग्रीटेक्स (Agrotech) – कृषि और बागवानी में उपयोग (जैसे: नमी-संरक्षण जाल, पौधों के लिए सुरक्षा कपड़े)।
- बिल्डटेक्स (Buildtech) – निर्माण उद्योग में उपयोग (जैसे: जियोमेम्ब्रेन, भवन संलग्नक)।
- क्लॉथटेक्स (Clothtech) – परिधान उद्योग में उपयोग (जैसे: अस्तर, इंटरलाइंग सामग्री)।
- जियोटेक्स (Geotech) – सड़क निर्माण, जल संरक्षण, मिट्टी संरक्षण में उपयोग।
- होमटेक्स (Hometech) – घरेलू उपयोग (जैसे: परदे, गद्दे, कुशन कवर)।
- इंडूटेक्स (Indutech) – औद्योगिक प्रयोजन (जैसे: फ़िल्टर कपड़े, बेल्ट)।
- मेडटेक्स (Medtech) – चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग (जैसे: सर्जिकल मास्क, पीपीई किट, कृत्रिम अंग)।
- मॉबिलटेक्स (Mobiltech) – ऑटोमोबाइल क्षेत्र में उपयोग (जैसे: एयरबैग, सीट बेल्ट, कारपेट)।
- ओएकोटेक्स (Oekotech) – पर्यावरणीय सुरक्षा (जैसे: ऑयल स्पिल कंट्रोल, प्रदूषण नियंत्रण)।
- प्लेटटेक्स (Packtech) – पैकेजिंग में उपयोग (जैसे: बैग, खाद्य पैकेजिंग सामग्री)।
- प्रोटेक्टेक्स (Protech) – सुरक्षा उपकरण (जैसे: अग्निरोधक वस्त्र, बुलेटप्रूफ जैकेट)।
- स्पोर्टटेक्स (Sportech) – खेल सामग्री में उपयोग (जैसे: स्पोर्ट्स शूज़, स्विमसूट, ट्रैक सूट)।
NTTM के प्रमुख उद्देश्य
✅ घरेलू उत्पादन और आत्मनिर्भरता – भारत को तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना।
✅ नवाचार और अनुसंधान – शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के सहयोग से नई तकनीकों का विकास।
✅ वैश्विक प्रतिस्पर्धा – भारतीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना।
✅ निर्यात को बढ़ावा – भारत को तकनीकी वस्त्रों के वैश्विक हब के रूप में स्थापित करना।
✅ रोजगार सृजन – इस क्षेत्र में नई नौकरियों के अवसर पैदा करना।
NTTM के तहत प्रमुख पहलें
- अनुसंधान और विकास (R&D) को बढ़ावा – ₹1,000 करोड़ से अधिक की लागत से अत्याधुनिक अनुसंधान केंद्रों की स्थापना।
- तकनीकी वस्त्रों में शिक्षा – NTTM के तहत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) और अन्य संस्थानों में पाठ्यक्रम विकसित किए गए हैं।
- उद्योग और शिक्षा सहयोग – उद्योगों को विश्वविद्यालयों के साथ जोड़कर नवाचार को बढ़ावा देना।
- विनिर्माण क्षमता में वृद्धि – सरकार ने पीएलआई (Production Linked Incentive) योजना के तहत तकनीकी वस्त्र निर्माण इकाइयों को समर्थन दिया।
- निर्यात प्रोत्साहन – भारत से तकनीकी वस्त्रों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नई नीतियाँ लागू की गई हैं।
तकनीकी वस्त्र उद्योग की चुनौतियाँ
⚠ तकनीकी ज्ञान की कमी – भारत में इस क्षेत्र में अभी भी प्रशिक्षित श्रमिकों और विशेषज्ञों की कमी है।
⚠ अनुसंधान और नवाचार में धीमी गति – विकसित देशों की तुलना में तकनीकी वस्त्रों में अनुसंधान धीमा है।
⚠ कच्चे माल की उपलब्धता – कई महत्वपूर्ण कच्चे माल का आयात करना पड़ता है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
⚠ निर्यात में बाधाएँ – वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता मानकों का पालन एक चुनौती है।
⚠ नीतिगत समर्थन की जरूरत – सरकार को इस क्षेत्र में दीर्घकालिक नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है।
NTTM के प्रभाव और भविष्य की संभावनाएँ
✔ भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत होगी – यह मिशन भारत को तकनीकी वस्त्रों के प्रमुख निर्यातकों में शामिल करने में मदद करेगा।
✔ रोजगार के नए अवसर – सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को बढ़ावा मिलेगा, जिससे रोजगार सृजन होगा।
✔ “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” को बल – तकनीकी वस्त्रों का घरेलू उत्पादन आयात निर्भरता कम करेगा।
✔ वैश्विक मांग में वृद्धि का लाभ – तकनीकी वस्त्रों की मांग वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है, भारत इस अवसर का लाभ उठा सकता है।
निष्कर्ष
• राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (NTTM) भारत को वैश्विक तकनीकी वस्त्र बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
• इस मिशन के तहत अनुसंधान, उत्पादन, नवाचार और निर्यात को बढ़ावा दिया जा रहा है।
• हालांकि तकनीकी ज्ञान, कच्चे माल और नीतिगत समर्थन से जुड़ी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं, लेकिन सरकार के प्रयासों से यह क्षेत्र भविष्य में तेजी से विकसित हो सकता है।
• यदि नीति निर्माण, अनुसंधान और उद्योग सहयोग को सही दिशा में रखा जाए, तो भारत तकनीकी वस्त्रों में वैश्विक नेतृत्व हासिल कर सकता है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 3 (अर्थव्यवस्था और विज्ञान-प्रौद्योगिकी)
• तकनीकी वस्त्र क्या हैं?
• NTTM का उद्देश्य और प्रभाव।
• भारत में तकनीकी वस्त्रों का विकास और चुनौतियाँ।
• मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत तकनीकी वस्त्रों की भूमिका।
GS Paper 2 (सरकारी योजनाएँ और नीतियाँ)
• सरकार द्वारा तकनीकी वस्त्र क्षेत्र को बढ़ावा देने की योजनाएँ।
• राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन का महत्व और इसकी नीतिगत प्रासंगिकता।
भारत में लाइट फिशिंग का बढ़ता खतरा ( The growing threat of light fishing in India )
चर्चा में क्यों?
• हाल ही में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और गोवा सहित भारत के कई तटीय राज्यों में लाइट फिशिंग (Light Fishing) के बढ़ते उपयोग के कारण स्थानीय मछुआरे विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
• मछुआरे लाइट फिशिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (Marine Ecosystem) को नुकसान पहुंचा रही है और स्थानीय मछुआरों के जीवनयापन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
लाइट फिशिंग क्या है?
• लाइट फिशिंग एक गैर-पारंपरिक मछली पकड़ने की तकनीक है, जिसमें शक्तिशाली कृत्रिम रोशनी (High-intensity Artificial Lights) का उपयोग समुद्र में मछलियों को आकर्षित करने के लिए किया जाता है।
• रोशनी से छोटी मछलियाँ और प्लवक (Plankton) आकर्षित होते हैं, जिससे बड़ी मछलियाँ भी उस क्षेत्र में एकत्र हो जाती हैं और आसानी से जाल में फंस जाती हैं।
• आमतौर पर LED और हाई-इंटेंसिटी मेटल-हेलाइड लाइट्स का उपयोग किया जाता है, जिससे मछलियों की पूरी आबादी प्रभावित होती है।
भारत में लाइट फिशिंग पर प्रतिबंध और नियम
• भारतीय मत्स्य पालन अधिनियम, 1897 (Indian Fisheries Act, 1897) में संवेदनशील मछली पकड़ने की विधियों पर नियंत्रण के प्रावधान हैं।
• राष्ट्रीय समुद्री मत्स्य नीति (National Marine Fisheries Policy, 2017) के तहत अनैतिक और अवैज्ञानिक मत्स्यन (Illegal, Unreported, and Unregulated Fishing – IUU Fishing) पर रोक लगाने की बात कही गई है।
• गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल ने अपने जलक्षेत्र में लाइट फिशिंग पर आंशिक या पूर्ण प्रतिबंध लगाया है।
• तमिलनाडु में अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है, जिससे विवाद बढ़ रहा है।
लाइट फिशिंग से जुड़ी समस्याएँ और खतरे
• समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान – लाइट फिशिंग से प्लवक (Plankton) और छोटी मछलियों की संख्या तेजी से घटती है, जिससे समुद्री खाद्य श्रृंखला (Food Chain) असंतुलित हो जाती है।
• स्थानीय मछुआरों के लिए खतरा – बड़े ट्रॉलर्स अत्यधिक मात्रा में मछली पकड़कर स्थानीय मछुआरों के लिए संकट पैदा कर रहे हैं।
• ओवरफिशिंग (Overfishing) का खतरा – मछलियों का अनुचित दोहन होता है, जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर आ सकती हैं।
• अवैध मत्स्यन (Illegal Fishing) – कई मछली पकड़ने वाले जहाज अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्रों में लाइट फिशिंग करते हैं, जिससे सीमा विवाद और समुद्री संघर्ष बढ़ सकते हैं।
लाइट फिशिंग को रोकने के लिए उठाए गए कदम
• राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) समुद्री मत्स्यन को टिकाऊ (Sustainable) बनाने के लिए नियमों को सख्त कर रहा है।
• “ब्लू इकोनॉमी” (Blue Economy) नीति में टिकाऊ मत्स्य पालन (Sustainable Fisheries) को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई है।
• कोस्ट गार्ड और मरीन पुलिस को मजबूत करने की जरूरत है ताकि अवैध मछली पकड़ने पर नियंत्रण किया जा सके।
निष्कर्ष
• लाइट फिशिंग एक गंभीर पर्यावरणीय और आर्थिक समस्या बन चुकी है, जो समुद्री जैव विविधता और स्थानीय मछुआरों के जीवनयापन को खतरे में डाल रही है।
• भारत सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर सख्त कानून बनाकर इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए और टिकाऊ मत्स्यन को बढ़ावा देना चाहिए।
• स्थानीय समुदायों, वैज्ञानिक संस्थानों और प्रशासन के बीच बेहतर समन्वय से इस समस्या का प्रभावी समाधान निकाला जा सकता है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
• GS Paper 3 (पर्यावरण और जैव विविधता) – लाइट फिशिंग और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव।
• GS Paper 3 (अर्थव्यवस्था) – टिकाऊ मत्स्यन (Sustainable Fishing) और ब्लू इकोनॉमी।
• GS Paper 2 (नीतिगत सुधार और प्रशासन) – मछली पकड़ने के अवैध तरीकों पर कानूनी प्रतिबंध।
• राज्यों और केंद्र सरकार की भूमिका।
• स्थानीय समुदायों की समस्याएँ और समाधान।
इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG)
चर्चा में क्यों?
• वैज्ञानिकों ने इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) विकसित किया है, जो स्टेम कोशिकाओं से शुक्राणु (Sperm) और अंडाणु (Eggs) बनाने की एक नवीनतम जैव-प्रौद्योगिकी प्रक्रिया है।
• यह तकनीक इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) की तुलना में अधिक कुशल और नवाचारपूर्ण मानी जा रही है।
• यह भविष्य में बांझपन (Infertility) के इलाज, प्रजनन उपचार, और जेनेटिक बीमारियों से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) क्या है?
✔ इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) एक प्रयोगशाला-आधारित तकनीक है, जिसमें प्लुरीपोटेंट स्टेम कोशिकाओं (Pluripotent Stem Cells – PSCs) से शुक्राणु और अंडाणु विकसित किए जाते हैं।
✔ इसे प्राकृतिक प्रजनन प्रणाली के बाहर, कृत्रिम रूप से एक नियंत्रित वातावरण में किया जाता है।
✔ इस तकनीक में स्टेम सेल को गैमेट (Gametes – यानि शुक्राणु और अंडाणु) में परिवर्तित किया जाता है, जिससे बिना पारंपरिक मैथुन प्रक्रिया के भ्रूण (Embryo) तैयार करना संभव होता है।
IVG की प्रक्रिया कैसे काम करती है?
- स्टेम कोशिकाओं का निष्कर्षण – मानव या किसी अन्य जीव के शरीर से प्लुरीपोटेंट स्टेम कोशिकाएँ (PSCs) प्राप्त की जाती हैं।
- इन कोशिकाओं को प्रयोगशाला में विकसित करना – इन्हें विशेष रासायनिक और जैविक संकेतों के माध्यम से शुक्राणु या अंडाणु में बदला जाता है।
- गैमेट उत्पादन – तैयार किए गए शुक्राणु और अंडाणु का उपयोग कर प्रयोगशाला में निषेचन (Fertilization) किया जाता है।
- भ्रूण का विकास और प्रत्यारोपण – तैयार भ्रूण को इच्छित माता-पिता के गर्भाशय (Uterus) में प्रत्यारोपित किया जाता है।
IVG के संभावित लाभ
✔ बांझपन (Infertility) का समाधान – जोड़ों में यदि किसी भी कारण से प्राकृतिक रूप से शुक्राणु या अंडाणु नहीं बन रहे हैं, तो IVG तकनीक से संतान प्राप्ति संभव होगी।
✔ उम्रदराज़ माता-पिता के लिए सहायक – जो महिलाएँ अधिक उम्र में संतान चाहती हैं, उनके लिए यह तकनीक उपयोगी हो सकती है।
✔ समलैंगिक (LGBTQ+) दंपतियों के लिए विकल्प – यह तकनीक समलैंगिक जोड़ों को भी जैविक संतान (Biological Child) प्राप्त करने में सहायता कर सकती है।
✔ गुणसूत्रीय (Genetic) बीमारियों से बचाव – IVG के माध्यम से भ्रूण में अनुवांशिक विकारों की जांच (Genetic Screening) कर उन्हें दूर किया जा सकता है।
✔ अनुसंधान और क्लोनिंग में उपयोग – यह तकनीक चिकित्सा अनुसंधान, स्टेम सेल उपचार और अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplantation) में भी मदद कर सकती है।
IVG से जुड़ी चिंताएँ और चुनौतियाँ
⚠ नैतिक और सामाजिक चिंताएँ – IVG से “Designer Babies” (आदेशानुसार संतान) और जेनेटिक हेरफेर (Genetic Manipulation) के खतरे बढ़ सकते हैं।
⚠ कृत्रिम मानव उत्पादन का डर – क्या यह तकनीक प्राकृतिक प्रजनन को अप्रासंगिक बना सकती है?
⚠ वैधानिक और कानूनी बाधाएँ – कई देशों में स्टेम सेल अनुसंधान और मानव भ्रूण में जेनेटिक संशोधन पर कड़े नियम हैं।
⚠ दीर्घकालिक प्रभावों की जानकारी नहीं – अभी यह स्पष्ट नहीं है कि IVG से जन्मे बच्चों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव क्या होंगे?
IVG और IVF में अंतर
विशेषता | इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) | इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) |
---|---|---|
गैमेट उत्पादन | स्टेम सेल से प्रयोगशाला में शुक्राणु/अंडाणु बनाए जाते हैं। | प्राकृतिक रूप से उत्पादित शुक्राणु और अंडाणु का उपयोग किया जाता है। |
बांझपन का समाधान | उन लोगों के लिए भी उपयोगी जिनमें शुक्राणु/अंडाणु नहीं बनते। | केवल उन्हीं लोगों के लिए जिनके शरीर में शुक्राणु/अंडाणु बनते हैं। |
तकनीकी जटिलता | जटिल और अभी अनुसंधान चरण में है। | पहले से विकसित और सफल तकनीक। |
लागत और उपलब्धता | वर्तमान में महंगी और सीमित अनुसंधान स्तर पर। | IVF अधिक उपलब्ध और अपेक्षाकृत सस्ती है। |
भारत में प्रासंगिकता और भविष्य
✔ भारत में बढ़ती बांझपन दर – आधुनिक जीवनशैली और प्रदूषण के कारण बांझपन की समस्या बढ़ रही है, IVG इस समस्या का समाधान कर सकता है।
✔ बायोटेक्नोलॉजी अनुसंधान में प्रगति – भारत बायोटेक्नोलॉजी में अग्रणी है और इस क्षेत्र में निवेश से वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
✔ कानूनी ढांचा तैयार करने की आवश्यकता – भारत में IVG को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है, सरकार को नैतिकता और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नीति बनानी होगी।
निष्कर्ष
• इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) एक क्रांतिकारी जैव-प्रौद्योगिकी है, जो बांझपन के उपचार, समलैंगिक जोड़ों के लिए संतान प्राप्ति और अनुवांशिक बीमारियों से बचाव में मदद कर सकती है।
• हालाँकि, इसके नैतिक, कानूनी और वैज्ञानिक पहलुओं पर गहन शोध और विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
• यदि उचित नीति और नैतिक मानकों के साथ लागू किया जाए, तो IVG भविष्य में प्रजनन और चिकित्सा विज्ञान में एक ऐतिहासिक परिवर्तन ला सकता है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 3 (विज्ञान और प्रौद्योगिकी)
• जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) में नवीनतम प्रगति।
• स्टेम सेल अनुसंधान और चिकित्सा क्षेत्र में इसका उपयोग।
• इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन के बीच अंतर।
• भारत में बायोटेक्नोलॉजी अनुसंधान और नीति।
GS Paper 4 (नैतिकता और कानून)
• कृत्रिम प्रजनन तकनीकों से जुड़ी नैतिक चिंताएँ।
• IVG का सामाजिक और कानूनी प्रभाव।
• चिकित्सा अनुसंधान और मानवाधिकार।
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