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मृत्यु दंड में कमी लाने और इसको बढ़ाने की परिस्थितियाँ ( Circumstances for reducing and increasing the death penalty )

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चर्चा में क्यों?

कोलकाता के एक न्यायालय ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा दी। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने इस मामले में दोषी को मृत्युदंड दिये जाने की मांग की थी। यह घटना मृत्युदंड की वैधता, इससे जुड़े कानूनी और नैतिक मुद्दों पर बहस को पुनर्जीवित करती है।

मृत्युदंड एक ऐसा दंड है, जिसमें अपराधी को कानून द्वारा जीवन समाप्त करने की सजा दी जाती है। यह दंड सामाजिक न्याय और अपराध के प्रति निवारक प्रभाव के लिए उपयोग किया जाता है।

इस विशेष मामले में:

  • CBI ने इसे दुर्लभतम मामलों (“रेयरस्ट ऑफ द रेयर”) की श्रेणी में रखते हुए मृत्युदंड की मांग की थी।
  • न्यायालय ने दोषी को आजीवन कारावास दिया, जो पुनर्वास और सुधारात्मक दृष्टिकोण की ओर संकेत करता है।

मृत्युदंड: गुरुतकारी और शमनकारी परिस्थितियाँ

गुरुतकारी परिस्थितियाँ:

  1. अत्यधिक क्रूरता: अपराध अत्यंत क्रूर और निर्भयतापूर्ण हो।
  2. अपराध की प्रकृति: अपराध महिला, बच्चे, या असहाय व्यक्ति के खिलाफ हो।
  3. समाज पर प्रभाव: अपराध समाज की सुरक्षा और व्यवस्था के लिए खतरा हो।
  4. पूर्व इतिहास: दोषी का आपराधिक इतिहास हो या वह बार-बार अपराध करता हो।

शमनकारी परिस्थितियाँ:

  1. आरोपी की मानसिक स्थिति: अपराध के समय आरोपी मानसिक तनाव या असंतुलन में हो।
  2. आपराधिक पृष्ठभूमि: पहली बार अपराधी हो और उसके सुधार की संभावना हो।
  3. आर्थिक-सामाजिक स्थिति: आरोपी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति असहाय हो।
  4. पश्चाताप: अपराधी ने अपराध के प्रति गहरा पश्चाताप प्रकट किया हो।

बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980)

निर्णय का सारांश:

  1. सुप्रीम कोर्ट ने “दुर्लभतम मामलों” (Rarest of Rare Cases) के सिद्धांत को स्थापित किया।
  2. यह तय किया गया कि मृत्युदंड केवल उन्हीं मामलों में दिया जाएगा, जहां अन्य किसी भी सजा से न्याय पूरा नहीं होता।
  3. दोषी और अपराध दोनों की प्रकृति का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

बच्चन सिंह मामले के बाद उत्पन्न उग्र और शमनकारी परिस्थितियाँ:

  • उग्र परिस्थितियों: इस फैसले के बाद न्यायालयों ने क्रूर हत्याओं, आतंकवाद, और यौन अपराधों के मामलों में मृत्युदंड की सिफारिश की।
  • शमनकारी परिस्थितियों: सुधार की संभावना, आरोपी की मानसिक स्थिति, और सामाजिक पृष्ठभूमि जैसे कारकों को विशेष महत्व दिया गया।

मृत्युदंड से संबंधित महत्वपूर्ण सर्वोच्च न्यायालय के फैसले

  1. मछी सिंह बनाम पंजाब राज्य (1983):
    • न्यायालय ने अपराध की प्रकृति, पीड़ित की स्थिति और आरोपी की मंशा पर ध्यान दिया।
  2. दुष्कर्म और हत्या के मामलों में:
    • “निर्भया कांड” (2012) के दोषियों को मृत्युदंड दिया गया, जिसे समाज के लिए न्यायोचित माना गया।
  3. मनोज बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2023):
    • शमनकारी परिस्थितियों का गहन अध्ययन करने का निर्देश दिया गया।

मृत्युदंड पर विधि आयोग का दृष्टिकोण

262वाँ विधि आयोग की रिपोर्ट (2015):

  1. आयोग ने मृत्युदंड को समाप्त करने की सिफारिश की, सिवाय आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों को छोड़कर।
  2. सुधारात्मक दंड के विकल्प को प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया।
  3. मृत्युदंड को न्यायिक त्रुटियों और मानवाधिकार उल्लंघन का बड़ा कारण बताया।

मृत्युदंड के पक्ष और विपक्ष

पक्ष में तर्क:

  1. न्याय के उद्देश्य की पूर्ति।
  2. गंभीर अपराधों के प्रति निवारक प्रभाव।
  3. पीड़ित के प्रति समाज की सहानुभूति।

विपक्ष में तर्क:

  1. मानवाधिकारों का उल्लंघन।
  2. न्यायिक त्रुटि की संभावना।
  3. सुधार की संभावना समाप्त होना।
  4. वैश्विक स्तर पर मृत्युदंड की आलोचना।

आगे की राह

  1. न्यायिक समीक्षा: मृत्युदंड देने से पहले दोषी की सामाजिक, मानसिक, और व्यक्तिगत परिस्थितियों का गहन अध्ययन।
  2. सुधारात्मक दृष्टिकोण: मृत्युदंड के स्थान पर आजीवन कारावास जैसे कठोर दंडों को अपनाना।
  3. संविधान और मानवाधिकार: मृत्युदंड को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के संदर्भ में पुनः मूल्यांकन करना।

निष्कर्ष

मृत्युदंड का प्रश्न भारतीय न्याय प्रणाली में गहराई से निहित नैतिक और कानूनी मुद्दों को उजागर करता है। बच्चन सिंह मामले ने इसे “दुर्लभतम मामलों” तक सीमित कर दिया, लेकिन न्यायिक विवेक और सामाजिक मांग के बीच संतुलन बनाना आज भी चुनौतीपूर्ण है। कोलकाता का यह मामला पुनः इस बहस को प्रासंगिक बनाता है कि न्याय प्रणाली में सुधारात्मक दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।


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