पूंजी खाता परिवर्तनीयता (Capital Account Convertibility) और भारत का रुख
समाचार में क्यों?
• 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि भारत को वर्तमान प्रति व्यक्ति आय ($2,570) के स्तर पर पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता (Full Capital Account Convertibility) की ओर जल्दी नहीं बढ़ना चाहिए।
• उनका तर्क है कि पूंजी प्रवाह को पूरी तरह मुक्त करने से आर्थिक स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
पूंजी खाता परिवर्तनीयता (Capital Account Convertibility) क्या है?
• पूंजी खाता परिवर्तनीयता का अर्थ है कि किसी देश की मुद्रा को बिना किसी प्रतिबंध के विदेशी पूंजी प्रवाह (Capital Flows) के लिए पूरी तरह बदला जा सकता है।
• इससे निवेशक और व्यवसाय आसानी से विदेशी मुद्रा का लेन-देन कर सकते हैं, विदेशी संपत्तियों में निवेश कर सकते हैं और अन्य देशों की मुद्राओं में धन रख सकते हैं।
• जब कोई देश पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता की अनुमति देता है, तो वह विदेशी निवेश, कर्ज और अन्य पूंजीगत लेन-देन पर सभी नियंत्रण हटा देता है।
भारत में पूंजी खाता परिवर्तनीयता की स्थिति
• भारत ने आंशिक पूंजी खाता परिवर्तनीयता (Partial Capital Account Convertibility) को अपनाया है।
• भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) विदेशी मुद्रा प्रवाह पर कुछ नियंत्रण रखता है, विशेष रूप से विदेशी निवेश (FDI, FPI) और बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ECB) के मामलों में।
• चालू खाता (Current Account) पूरी तरह से परिवर्तनीय है, जिसका अर्थ है कि व्यापार और सेवा लेन-देन बिना किसी प्रतिबंध के किए जा सकते हैं।
पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता के संभावित लाभ
• विदेशी निवेश में वृद्धि: निवेशकों के लिए बाजार अधिक आकर्षक बनेगा।
• मुद्रा विनिमय दर का स्थिरीकरण: अधिक विदेशी मुद्रा प्रवाह से भारतीय रुपये को मजबूती मिल सकती है।
• वैश्विक वित्तीय एकीकरण: भारत अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेगा।
• निवेशकों के लिए अधिक स्वतंत्रता: भारतीय कंपनियाँ और नागरिक विदेशों में आसानी से निवेश कर सकेंगे।
भारत को पूंजी खाता परिवर्तनीयता में जल्दबाजी क्यों नहीं करनी चाहिए?
• मुद्रा अस्थिरता का खतरा: विदेशी निवेशकों द्वारा बड़ी मात्रा में पूंजी निकासी से भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ सकता है।
• वित्तीय संकट की संभावना: एशियाई वित्तीय संकट (1997) जैसे उदाहरण बताते हैं कि अनियंत्रित पूंजी प्रवाह आर्थिक अस्थिरता पैदा कर सकता है।
• बैंकिंग प्रणाली पर प्रभाव: पूर्ण परिवर्तनीयता से बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों पर अधिक जोखिम बढ़ सकता है।
• नियामक नियंत्रण की कमी: भारत अभी विकसित देशों की तरह मजबूत वित्तीय नियमन प्रणाली नहीं बना पाया है।
भारत में पूंजी खाता परिवर्तनीयता पर अब तक की नीति
वर्ष | महत्वपूर्ण घटनाएँ |
---|---|
1991 | आर्थिक सुधारों के बाद आंशिक चालू खाता परिवर्तनीयता लागू की गई। |
1997 | Tarapore Committee ने पूंजी खाता परिवर्तनीयता के लिए रूपरेखा सुझाई। |
2006 | Tarapore Committee (द्वितीय) ने सुझाव दिया कि पूंजी खाता परिवर्तनीयता को सावधानीपूर्वक लागू किया जाए। |
2016 | RBI के गवर्नर रघुराम राजन ने भी पूंजी खाता परिवर्तनीयता के प्रति सतर्क रुख अपनाने की सलाह दी। |
2023 | RBI ने सीमित क्षेत्रों में विदेशी मुद्रा लेनदेन को सरल बनाया। |
निष्कर्ष:
भारत को पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता अपनाने से पहले अपनी वित्तीय प्रणाली को और मजबूत बनाने, विनियमन सुधारने और विदेशी मुद्रा भंडार को सुरक्षित स्तर पर बनाए रखने की आवश्यकता है।
तब तक, आंशिक पूंजी खाता परिवर्तनीयता ही आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए उपयुक्त विकल्प है।
यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिक बिंदु
GS Paper 3:
• भारतीय अर्थव्यवस्था और पूंजी बाजार।
• RBI की मौद्रिक नीति और वित्तीय विनियमन।
• वैश्विक वित्तीय प्रणाली और भारत।
GS Paper 2:
• आर्थिक सुधार और नीति निर्माण।
• अंतरराष्ट्रीय व्यापार और मुद्रा विनिमय नीति।
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