नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती – “पराक्रम दिवस”
संदर्भ
- 2021 से हर वर्ष 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को “पराक्रम दिवस” या वीरता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- 2025 में नेताजी की 128वीं जयंती मनाई जा रही है।
- इस दिवस को स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी के योगदान को सम्मानित करने और उनके अदम्य साहस को याद करने के लिए घोषित किया गया।
नेताजी का जीवन परिचय
- जन्म:
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ।
- वे एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे और 1920 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की।
- स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष (1938-1939)।
- उन्होंने गांधीजी के अहिंसात्मक दृष्टिकोण के विपरीत एक आक्रामक दृष्टिकोण अपनाया।
- फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने आजाद हिंद फौज (INA) की स्थापना की।
- उनका प्रसिद्ध नारा था: “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।”
पराक्रम दिवस का महत्त्व
- राष्ट्रवाद का प्रेरणा स्रोत:
- यह दिन नेताजी के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण, वीरता और नेतृत्व क्षमता को सम्मानित करता है।
- देश के युवाओं के लिए प्रेरणा:
- नेताजी का जीवन युवाओं को कठिन परिस्थितियों में भी निडरता और आत्मविश्वास के साथ खड़ा होना सिखाता है।
- भारतीय सेना में प्रेरणा का स्रोत:
- आजाद हिंद फौज ने भारतीय सेना को अनुशासन, साहस और बलिदान का पाठ सिखाया।
पराक्रम दिवस 2025 के विशेष कार्यक्रम
- राष्ट्रीय कार्यक्रम:
- नई दिल्ली में “नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्मारक” पर पुष्पांजलि अर्पित।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर प्रदर्शनी।
- स्कूलों और कॉलेजों में आयोजन:
- निबंध प्रतियोगिताएँ और भाषण।
- नेताजी के जीवन पर फिल्में और नाटकों का प्रदर्शन।
- प्रदर्शनी और जागरूकता अभियान:
- नेताजी से संबंधित संग्रहालयों और स्मारकों में विशेष प्रदर्शनी।
नेताजी की शिक्षाएँ और आज का भारत
- स्वराज का सपना:
- नेताजी ने पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) की कल्पना की थी।
- आज भारत आत्मनिर्भर भारत (आत्मनिर्भरता) के विचार को बढ़ावा दे रहा है।
- संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा:
- उन्होंने भारतीय सेना को मजबूत करने की नींव रखी।
- आज भारतीय सेना वैश्विक मंच पर एक प्रमुख शक्ति बन चुकी है।
- एकता का संदेश:
- नेताजी का मानना था कि भारत की विविधता ही उसकी ताकत है।
- उनके आदर्श “जय हिंद” ने पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधा।
आगे की राह
- नेताजी के विचारों और आदर्शों को शिक्षा और पाठ्यक्रम में शामिल करना।
- भारत के युवाओं में स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का भाव जगाना।
- नेताजी से जुड़ी ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और प्रचार।
निष्कर्ष
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अद्वितीय नायक थे। उनकी जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाना न केवल उनके साहस और बलिदान को सम्मानित करना है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को उनके आदर्शों से प्रेरणा देने का भी एक प्रयास है। उनका जीवन हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के संबंध
नेताजी और गांधीजी का परस्पर दृष्टिकोण
महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दो प्रमुख स्तंभ थे। हालांकि, दोनों के उद्देश्य समान थे—भारत को स्वतंत्र कराना—लेकिन उनके विचार और कार्य करने के तरीके अलग-अलग थे।
संबंधों का विकास और तनाव
- शुरुआती समर्थन:
- नेताजी ने महात्मा गांधी के नेतृत्व को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती चरणों में सराहा।
- उन्होंने गांधीजी को “राष्ट्रपिता” कहा और उनके अहिंसात्मक आंदोलन को प्रेरणा मानते हुए कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभाई।
- विचारधारा का टकराव:
- गांधीजी अहिंसा और सत्याग्रह में विश्वास करते थे, जबकि नेताजी सशस्त्र संघर्ष और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की वकालत करते थे।
- नेताजी मानते थे कि ब्रिटिश शासन को हटाने के लिए बल का उपयोग अनिवार्य है।
- कांग्रेस अध्यक्ष पद का विवाद (1939):
- नेताजी ने 1939 में त्रिपुरी अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा।
- गांधीजी ने पट्टाभि सीतारमैया का समर्थन किया, लेकिन नेताजी ने यह चुनाव जीत लिया।
- हालांकि, उनके और गांधीजी के बीच बढ़ते मतभेदों के कारण नेताजी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
नेताजी का अलग रास्ता
- गांधीजी के शांतिपूर्ण आंदोलन के विपरीत, नेताजी ने आजाद हिंद फौज (INA) का गठन किया और विदेशी सहयोग (जर्मनी और जापान) के माध्यम से भारत को आजादी दिलाने का प्रयास किया।
- इसके बावजूद, नेताजी ने गांधीजी को “महात्मा” मानकर हमेशा उनका सम्मान किया।
परस्पर सम्मान
- नेताजी का गांधीजी के प्रति सम्मान:
- 6 जुलाई 1944 को सिंगापुर से आजाद हिंद रेडियो पर अपने प्रसिद्ध संबोधन में नेताजी ने गांधीजी को “राष्ट्रपिता” कहकर संबोधित किया और उनसे आशीर्वाद मांगा।
- यह संबोधन दर्शाता है कि मतभेदों के बावजूद नेताजी के मन में गांधीजी के प्रति गहरा सम्मान था।
- गांधीजी का नेताजी के प्रति दृष्टिकोण:
- गांधीजी ने नेताजी के संघर्ष और बलिदान को स्वीकार किया, लेकिन हिंसा के मार्ग को सही नहीं ठहराया।
- नेताजी के निधन पर गांधीजी ने कहा, “नेताजी की मृत्यु ने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी है।”
दो दृष्टिकोणों की भूमिका
- गांधीजी और नेताजी दोनों का दृष्टिकोण भारत की स्वतंत्रता के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण था।
- गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम को जन आंदोलन में बदल दिया, जबकि नेताजी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के संघर्ष को पहचान दिलाई।
- एक तरफ गांधीजी का सत्य और अहिंसा का मार्ग था, तो दूसरी तरफ नेताजी का साहस और बलिदान।
निष्कर्ष
महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच मतभेदों के बावजूद, दोनों के उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित थे। उनका संबंध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जटिलता और विविधता को दर्शाता है।
नेताजी और गांधीजी के विचार हमें यह सिखाते हैं कि एक ही लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भिन्न दृष्टिकोण भी सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।
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