तीन बाल्टिक देशों का रूसी ग्रिड से अलग होना:
हालिया घटनाक्रम
तीन बाल्टिक देश – एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया – ने अपनी बिजली प्रणाली को रूस के पावर ग्रिड से पूरी तरह से अलग कर लिया है। यह कदम यूरोपीय संघ (EU) के साथ अधिक निकटता से एकीकरण करने और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उठाया गया है। इस निर्णय के भू-राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव महत्वपूर्ण हैं।
1. भू-राजनीतिक दृष्टिकोण
बाल्टिक देश लंबे समय से रूस पर अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहे थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद भी, इन देशों की बिजली प्रणाली रूस और बेलारूस के साथ एकीकृत थी। हालाँकि, यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर ऊर्जा निर्भरता को ख़त्म करने की दिशा में यूरोपीय देशों ने ठोस कदम उठाए हैं। यह डिस्कनेक्शन रूस से ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण संकेत है।
2. यूरोपीय संघ के साथ समन्वय
अब इन देशों की बिजली प्रणाली EU के ENTSO-E (यूरोपियन नेटवर्क ऑफ ट्रांसमिशन सिस्टम ऑपरेटर्स फॉर इलेक्ट्रिसिटी) से जुड़ जाएगी। इससे बिजली आपूर्ति में स्थिरता बढ़ेगी और बाल्टिक देशों को पश्चिमी यूरोप के ऊर्जा बाजारों से जुड़ने का अवसर मिलेगा।
3. ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक लाभ
- रूस से बिजली आपूर्ति काटने के बाद इन देशों पर किसी भी संभावित रूसी ऊर्जा ब्लैकमेलिंग का असर नहीं पड़ेगा।
- EU के ग्रिड में शामिल होने से बिजली आपूर्ति अधिक स्थिर और लागत प्रभावी होगी।
- पश्चिमी देशों के साथ एकीकृत होने से नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में मदद मिलेगी।
4. आर्थिक प्रभाव
शॉर्ट टर्म में, इस बदलाव में बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने की लागत अधिक हो सकती है, लेकिन लॉन्ग टर्म में इससे ऊर्जा बाजार में स्थिरता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी। यह परिवर्तन ऊर्जा की कीमतों को संतुलित करने और नई ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाने में मदद करेगा।
मुख्य बिंदु
- बाल्टिक देशों के अपने पूर्व सोवियत साम्राज्यवादी शासक के ग्रिड से अलग होने की योजना, जिस पर दशकों से चर्चा चल रही थी, 2014 में मास्को द्वारा क्रीमिया के कब्जे के बाद गति पकड़ने लगी।
- यह ग्रिड रूस से जुड़े तीनों देशों का अंतिम शेष लिंक था, जिन्होंने सोवियत संघ के विघटन के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में पुनः उभरकर 2004 में यूरोपीय संघ और नाटो की सदस्यता प्राप्त की।
- कीव के कट्टर समर्थक इन तीनों देशों ने 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद रूस से बिजली खरीदना बंद कर दिया, लेकिन ब्लैकआउट से बचने के लिए आवृत्तियों को नियंत्रित करने और नेटवर्क को स्थिर करने के लिए रूसी ग्रिड पर निर्भर रहे।
- बाल्टिक सागर क्षेत्र हाई अलर्ट पर है क्योंकि बाल्टिक देशों और स्वीडन या फिनलैंड के बीच बिजली केबल, टेलीकॉम लिंक और गैस पाइपलाइन में रुकावटें देखी गई हैं। ऐसा माना जाता है कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद समुद्र तल पर जहाजों द्वारा लंगर खींचे जाने के कारण ये क्षति हुई। रूस ने किसी भी प्रकार की संलिप्तता से इनकार किया है।
- रूस के लिए, इस अलगाव का अर्थ है कि लिथुआनिया, पोलैंड और बाल्टिक सागर के बीच स्थित उसका कालिनिनग्राद क्षेत्र रूस के मुख्य ग्रिड से कट जाएगा, जिससे उसे अपनी बिजली प्रणाली को स्वतंत्र रूप से बनाए रखना पड़ेगा।
- बाल्टिक देशों ने 2018 से अब तक अपनी ग्रिड प्रणालियों को उन्नत करने के लिए लगभग 1.6 बिलियन यूरो (1.66 बिलियन डॉलर) खर्च किए हैं, जबकि मास्को ने कालिनिनग्राद में कई गैस आधारित बिजली संयंत्रों सहित 100 अरब रूबल (1 बिलियन डॉलर) खर्च किए हैं।
निष्कर्ष
बाल्टिक देशों का यह कदम सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और रणनीतिक निर्णय है। यह रूस पर निर्भरता समाप्त करने और यूरोपीय संघ के साथ अधिक मजबूती से जुड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम है। आने वाले वर्षों में, यह बदलाव बाल्टिक देशों की ऊर्जा स्वतंत्रता, सुरक्षा और आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाएगा।
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