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चुनावी ट्रस्ट और राजनीतिक दान : Electoral Trust and Political Donation:

Electoral Trust and Political Donation:

चुनावी ट्रस्ट और राजनीतिक दान :

पृष्ठभूमि:

चुनावी बांड और चुनावी ट्रस्ट दोनों का उद्देश्य राजनीतिक दलों को पारदर्शिता के साथ वित्तीय योगदान देना है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बांड को समाप्त करने के निर्णय के बाद चुनावी ट्रस्टों के माध्यम से दान में वृद्धि हुई है।

चुनावी ट्रस्ट क्या हैं?

चुनावी ट्रस्ट गैर-लाभकारी संस्थाएं होती हैं जिन्हें भारत के कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत किया जाता है। इनका मुख्य उद्देश्य कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत दान को एकत्रित करके इसे राजनीतिक दलों को पारदर्शी तरीके से वितरित करना है।

भारत में चुनावी दान के आंकड़े:

  1. वृद्धि:
    • चुनावी ट्रस्टों के माध्यम से दान में पिछले वर्ष की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • अधिकांश दान प्रमुख कॉर्पोरेट कंपनियों और उद्यमियों से आया है।
  2. पारदर्शिता:
    • चुनावी ट्रस्टों के माध्यम से दिया गया दान सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट किया जाता है, जिससे यह चुनावी बांड की तुलना में अधिक पारदर्शी है।
  3. प्रमुख दल:
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस को सबसे अधिक दान मिला।
    • क्षेत्रीय दलों को भी दान में वृद्धि हुई है, लेकिन राष्ट्रीय दलों की तुलना में उनकी हिस्सेदारी कम है।

चुनावी ट्रस्ट के लाभ:

  1. पारदर्शिता:
    • चुनावी बांड की गोपनीयता के विपरीत, चुनावी ट्रस्ट दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं के नाम का खुलासा करते हैं।
  2. वित्तीय योगदान का केंद्रीकरण:
    • कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत दानदाताओं के लिए यह एक सरल माध्यम है।
  3. कानूनी संरक्षण:
    • भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के दिशा-निर्देशों और नियमों के तहत कार्य करते हैं।

कानूनी ढांचा और विश्लेषण

1. चुनावी ट्रस्ट: कानूनी आधार

चुनावी ट्रस्ट भारत में कंपनी अधिनियम, 2013 और आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के तहत संचालित होते हैं। इनका गठन दान प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से किया गया है।

प्रमुख कानूनी प्रावधान:
  1. कंपनी अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013)
    • धारा 8:
      चुनावी ट्रस्ट गैर-लाभकारी संस्थाओं के रूप में पंजीकृत होते हैं।
    • कंपनियों के लिए दिशानिर्देश:
      कंपनियां अपने पिछले तीन वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का 7.5% तक राजनीतिक दान में दे सकती हैं।
      (पहले 5% की सीमा थी, जिसे कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2017 के तहत बढ़ाया गया।)
  2. आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961)
    • धारा 13A:
      राजनीतिक दलों को चुनावी ट्रस्टों से प्राप्त दान पर आयकर से छूट मिलती है।
    • धारा 80GGB और 80GGC:
      कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत दानदाताओं को चुनावी ट्रस्ट को दान पर कर छूट मिलती है।
  3. भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India)
    • निर्देश संख्या:
      चुनावी ट्रस्टों को दान और वितरण का पूर्ण विवरण भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के पास जमा करना होता है।
    • दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं के नाम सार्वजनिक करने का प्रावधान।
  4. चुनावी बांड और पारदर्शिता
    • चुनावी बांड योजना, 2018:
      इसे चुनावी ट्रस्ट से पहले पारदर्शी दान का माध्यम माना गया, लेकिन इसमें गोपनीयता की आलोचना हुई।
    • सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में चुनावी बांड को समाप्त कर दिया, जिससे ट्रस्टों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई।

2. कानूनी मुद्दे और चुनौतियाँ

  1. पारदर्शिता की सीमा:
    • चुनावी ट्रस्ट दानदाताओं और राजनीतिक दलों का विवरण प्रस्तुत करते हैं, लेकिन यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती कि ये दान किन उद्देश्यों के लिए उपयोग किए गए।
  2. केंद्र सरकार का प्रभाव:
    • बड़े कॉर्पोरेट दान का एक बड़ा हिस्सा सत्ता में रहने वाले दलों को मिलता है, जिससे विपक्ष और छोटे दलों के लिए असमानता बढ़ती है।
  3. कॉर्पोरेट शासन का प्रभाव:
    • कंपनियां राजनीतिक दान के माध्यम से नीतिगत फैसलों पर प्रभाव डाल सकती हैं, जो नीति निर्माण में पारदर्शिता के विपरीत है।

3. सुधार के उपाय (कानूनी दृष्टिकोण)

  1. कानूनी सुधार:
    • निर्वाचन सुधार समिति की सिफारिशें लागू करें।
    • राजनीतिक दलों को प्राप्त सभी दानों का विवरण सार्वजनिक करने का अनिवार्य प्रावधान।
  2. पारदर्शिता का विस्तार:
    • चुनावी ट्रस्टों द्वारा राजनीतिक दलों को किए गए दान की सार्वजनिक ऑडिट।
    • दान और उसके उपयोग के उद्देश्य को चुनाव आयोग द्वारा नियंत्रित किया जाए।
  3. समान वित्तीय अवसर:
    • धारा 80GGC के तहत क्षेत्रीय दलों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष कर छूट का प्रावधान।
  4. स्वतंत्र संस्था की स्थापना:
    • चुनावी दान और खर्च पर नजर रखने के लिए एक स्वतंत्र संस्था बनाई जाए।
  5. डिजिटल रजिस्टर:
    • डिजिटल ट्रांसपेरेंसी रजिस्टर: जिसमें चुनावी ट्रस्टों और दानदाताओं का वास्तविक समय में विवरण उपलब्ध हो।

4. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और इसका प्रभाव

  1. निर्णय का सार:
    • सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को “असंवैधानिक” ठहराया और इसे समाप्त कर दिया।
    • न्यायालय ने पारदर्शिता की कमी और चुनावी वित्तपोषण में असंतुलन को इसका आधार बनाया।
  2. परिणाम:
    • चुनावी ट्रस्ट अब पारदर्शिता के लिए एकमात्र बड़ा विकल्प बन गए हैं।
    • राजनीतिक दान में वृद्धि हुई, लेकिन छोटे दलों को अभी भी उचित भागीदारी नहीं मिल रही।

चुनौतियाँ:

  1. सत्ता का केंद्रीकरण:
    • अधिकांश दान प्रमुख राजनीतिक दलों को मिलता है, जिससे छोटे और क्षेत्रीय दलों को प्रतिस्पर्धा में मुश्किल होती है।
  2. कॉर्पोरेट प्रभाव:
    • बड़े कॉर्पोरेट दानदाताओं के कारण राजनीतिक निर्णयों पर उनका प्रभाव बढ़ सकता है।
  3. पारदर्शिता का आंशिक दायरा:
    • दानदाताओं के नाम उजागर होते हैं, लेकिन यह पता लगाना कठिन है कि दान किन उद्देश्यों के लिए किया गया।

आगे की राह:

  1. पारदर्शी प्रणाली का निर्माण:
    • चुनावी दान के स्रोतों और उपयोग को सार्वजनिक करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए।
  2. समानता की गारंटी:
    • छोटे और क्षेत्रीय दलों को वित्तीय सहायता के लिए विशेष प्रावधान किए जाने चाहिए।
  3. स्वतंत्र ऑडिट:
    • चुनावी ट्रस्ट और राजनीतिक दलों के वित्तीय लेन-देन की स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा नियमित ऑडिट की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

चुनावी बांड के समाप्त होने के बाद चुनावी ट्रस्ट एक महत्वपूर्ण विकल्प बनकर उभरे हैं। हालांकि, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस प्रणाली का दुरुपयोग न हो और राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता बनी रहे। भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए इस क्षेत्र में निरंतर सुधार और निगरानी की आवश्यकता है।


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