- दक्षिण कोरिया: मार्शल लॉ और राष्ट्रपति यूं सुक-योल की गिरफ्तारी
- मार्शल लॉ में क्या शामिल होता है?
- भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रक्रिया (Impeachment of the President of India)
- दक्षिण कोरिया का मार्शल लॉ बनाम भारत में मार्शल लॉ
- भारत और कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) के संबंध
दक्षिण कोरिया: मार्शल लॉ और राष्ट्रपति यूं सुक-योल की गिरफ्तारी
चर्चा में क्यों?
दक्षिण कोरिया में राजनीतिक अस्थिरता और विवाद ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय सुर्खियाँ बटोरीं। 15 जनवरी 2025 को, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यूं सुक-योल को महाभियोग (impeachment) के तहत गिरफ़्तार किया गया। यह घटनाक्रम दिसंबर 2024 में उनकी मार्शल लॉ (Marshall Law) की घोषणा के बाद की अस्थिर स्थिति का परिणाम है।
घटनाओं का कालक्रम:
- दिसंबर 2024: मार्शल लॉ की घोषणा
- राष्ट्रपति यूं सुक-योल ने राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक अशांति का हवाला देते हुए देश में मार्शल लॉ लागू किया।
- इस कदम को उनके राजनीतिक विरोधियों और जनता ने लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमले के रूप में देखा।
- यह घोषणा दक्षिण कोरिया के लोकतांत्रिक इतिहास में एक बड़ा झटका मानी गई, क्योंकि 1987 के बाद से ऐसी स्थिति कभी उत्पन्न नहीं हुई थी।
- जनता और विपक्षी दलों का विरोध
- राष्ट्रपति के इस कदम के विरोध में सियोल, ग्वांगजू, और अन्य बड़े शहरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए।
- प्रदर्शनकारियों ने इसे तानाशाही प्रवृत्ति और लोकतंत्र का हनन करार दिया।
- विपक्षी दलों ने संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया।
- 15 जनवरी 2025: महाभियोग और गिरफ्तारी
- दक्षिण कोरिया की संसद ने बहुमत के साथ राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग पारित किया।
- उन्हें सत्ता के दुरुपयोग, मानवाधिकार उल्लंघन, और संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करने के आरोपों में गिरफ़्तार किया गया।
- यह दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र में एक और मील का पत्थर है, जहाँ राष्ट्रपति पार्क ग्यून-हे की 2017 में महाभियोग के बाद यह दूसरी बड़ी घटना है।
मुख्य विवाद के बिंदु:
- मार्शल लॉ की वैधता पर सवाल:
- राष्ट्रपति ने देश की सुरक्षा का हवाला दिया, लेकिन कोई ठोस सबूत या आवश्यकता साबित नहीं कर सके।
- इसने सवाल उठाए कि यह कदम सत्ता पर पकड़ बनाए रखने का एक साधन था या वास्तविक सुरक्षा संकट।
- लोकतांत्रिक मूल्यों पर खतरा:
- 1987 के बाद से दक्षिण कोरिया ने लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए थे।
- मार्शल लॉ की घोषणा ने लोकतांत्रिक संस्थानों और नागरिक अधिकारों पर सवाल खड़ा कर दिया।
- जनता की प्रतिक्रिया:
- युवा पीढ़ी और लोकतांत्रिक समर्थक समूहों ने राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन किए।
- इन विरोधों में हिंसा और पुलिस बल के दुरुपयोग की घटनाएँ भी हुईं।
महत्व और प्रभाव:
- राजनीतिक स्थिरता पर प्रभाव:
- राष्ट्रपति की गिरफ्तारी से देश में सत्ता का संकट गहराता दिख रहा है।
- उप-राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री द्वारा कार्यवाहक सरकार का गठन देश को स्थिर करने का प्रयास करेगा।
- अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
- दक्षिण कोरिया के मुख्य सहयोगी देशों, जैसे अमेरिका और जापान, ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का समर्थन करने की बात कही है।
- चीन और उत्तर कोरिया ने स्थिति पर नज़दीकी नज़र रखी है, क्योंकि यह क्षेत्रीय भू-राजनीति को प्रभावित कर सकता है।
- भविष्य के लिए संकेत:
- यह घटना दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र बनाम शक्ति-केंद्रित राजनीति की बहस को फिर से जीवंत करेगी।
- राजनीतिक और कानूनी सुधारों की माँग जोर पकड़ सकती है।
मार्शल लॉ में क्या शामिल होता है?
1. नागरिक अधिकारों का निलंबन:
- नागरिक प्रशासन के स्थान पर सैन्य प्रशासन आ जाता है।
- मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, जैसे:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- सार्वजनिक सभा और विरोध का अधिकार।
- प्रेस और मीडिया पर सेंसरशिप।
2. सैन्य शक्ति का उपयोग:
- सैन्य बलों को कानून और व्यवस्था बनाए रखने का अधिकार दिया जाता है।
- सेना को गिरफ्तारी, तलाशी, और दमनकारी कार्रवाई करने का अधिकार होता है।
3. सैन्य अदालतों की स्थापना:
- नागरिक मामलों की सुनवाई के लिए सैन्य न्यायालय बनाए जा सकते हैं।
- यह आम तौर पर नागरिक अदालतों के कामकाज को अस्थायी रूप से रोकता है।
4. प्रशासनिक नियंत्रण:
- स्थानीय और राज्य प्रशासन की शक्तियाँ सैन्य अधिकारियों के पास चली जाती हैं।
- रोज़मर्रा के प्रशासनिक कार्य सैन्य अधिकारियों के अधीन होते हैं।
5. आपातकालीन कानून:
- विशेष कानून और आदेश लागू किए जा सकते हैं जो सामान्य समय में लागू नहीं होते।
भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रक्रिया (Impeachment of the President of India)
भारत के राष्ट्रपति देश के संविधान का संरक्षक और सर्वोच्च नागरिक पदाधिकारी हैं। हालांकि, संविधान में राष्ट्रपति को व्यापक अधिकार दिए गए हैं, लेकिन अगर वह संविधान का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें महाभियोग (Impeachment) द्वारा पद से हटाया जा सकता है।
महाभियोग की प्रक्रिया:
1. संबंधित अनुच्छेद:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति के महाभियोग की प्रक्रिया को निर्दिष्ट करता है।
2. आधार:
राष्ट्रपति को पद से हटाने का केवल एक ही कारण हो सकता है – संविधान का उल्लंघन।
- हालांकि, “संविधान का उल्लंघन” की परिभाषा संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं दी गई है।
3. प्रक्रिया के चरण:
चरण 1: प्रस्ताव की शुरुआत
- महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में पेश किया जा सकता है।
- प्रस्ताव पेश करने के लिए सदन के कुल सदस्यों का कम से कम 1/4 हिस्सा (25%) लिखित रूप में समर्थन करता है।
चरण 2: नोटिस और जाँच
- प्रस्ताव पेश करने के बाद राष्ट्रपति को कम से कम 14 दिन का नोटिस दिया जाता है।
- प्रस्ताव को दोनों सदनों में जाँच और चर्चा के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
चरण 3: विशेष बहुमत की आवश्यकता
- प्रस्ताव को पास करने के लिए दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है:
- सदन की कुल सदस्यता का 2/3 बहुमत।
- यह बहुमत सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों पर आधारित नहीं, बल्कि पूरे सदन की सदस्यता पर आधारित होता है।
चरण 4: दोनों सदनों की सहमति
- यदि प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति को पद से हटाने का आदेश जारी किया जाता है।
महाभियोग की प्रमुख विशेषताएँ:
- पार्टी व्हिप लागू नहीं होता:
- इस प्रक्रिया में सांसदों पर पार्टी व्हिप लागू नहीं होता, और वे अपने विवेक के अनुसार मतदान करते हैं।
- अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाँच:
- राष्ट्रपति के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जाँच के लिए संसद द्वारा एक समिति बनाई जा सकती है।
- संवैधानिक संतुलन:
- महाभियोग की प्रक्रिया को इतना कठिन बनाया गया है कि इसे केवल गंभीर परिस्थितियों में ही इस्तेमाल किया जा सके।
महाभियोग से संबंधित प्रमुख बिंदु:
- संविधान का उल्लंघन क्या है?
- यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है, लेकिन इसका अर्थ ऐसे कृत्य हो सकते हैं जो संविधान के प्रावधानों, नियमों, या लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हों।
- भारत में महाभियोग का इतिहास:
- अब तक किसी भी राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटाया नहीं गया है।
- 1970 के दशक में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दौरान इस पर चर्चा हुई थी, लेकिन कोई प्रस्ताव पेश नहीं किया गया।
- महाभियोग और न्यायपालिका:
- महाभियोग का मामला पूरी तरह से संसद के दायरे में आता है। इसे न्यायपालिका द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
भारत में राष्ट्रपति पर महाभियोग क्यों कठिन है?
- उच्च बहुमत की आवश्यकता:
- दोनों सदनों में 2/3 बहुमत प्राप्त करना कठिन है, खासकर जब संसद में कई दल शामिल हों।
- राष्ट्रपति का प्रतीकात्मक पद:
- राष्ट्रपति के पास आमतौर पर कार्यकारी शक्तियाँ नहीं होतीं; इसलिए उनकी भूमिका में विवाद की संभावना कम होती है।
- संवैधानिक संतुलन बनाए रखना:
- महाभियोग का कठोर प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि इसे केवल गंभीर मामलों में ही लागू किया जाए।
अन्य देशों की तुलना:
- अमेरिका:
- राष्ट्रपति पर “महाभियोग” (Impeachment) और “सजा” के लिए अलग-अलग प्रक्रिया होती है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ ट्रम्प और क्लिंटन के मामले चर्चित हैं।
- ब्रिटेन:
- ब्रिटिश राजशाही के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया लगभग अप्रचलित है।
निष्कर्ष:
भारत में राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक संतुलन की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसे इतना कठिन बनाया गया है कि केवल अत्यधिक गंभीर परिस्थितियों में ही इसका उपयोग हो। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करें और लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान बनाए रखें।
दक्षिण कोरिया का मार्शल लॉ बनाम भारत में मार्शल लॉ
दक्षिण कोरिया और भारत में मार्शल लॉ की अवधारणा और इसका क्रियान्वयन अपने ऐतिहासिक, संवैधानिक और राजनीतिक ढांचे के कारण भिन्न है। नीचे इन दोनों देशों के मार्शल लॉ के बीच मुख्य अंतर प्रस्तुत किए गए हैं:
1. संवैधानिक आधार
दक्षिण कोरिया:
- दक्षिण कोरिया के संविधान में स्पष्ट रूप से मार्शल लॉ लागू करने का प्रावधान है।
- इसे राष्ट्रीय सुरक्षा, आंतरिक अशांति, या आपातकालीन परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है।
- मार्शल लॉ के तहत सैन्य प्रशासन को नागरिक प्रशासन और न्यायपालिका से ऊपर रखा जाता है।
भारत:
- भारतीय संविधान में “मार्शल लॉ” का उल्लेख प्रत्यक्ष रूप से नहीं है।
- भारत में मार्शल लॉ का उपयोग केवल संसद की सहमति और नागरिक अधिकारों के स्थगन के साथ किया जा सकता है।
- यह तब लागू किया जा सकता है जब देश के किसी क्षेत्र में कानून और व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो जाए और नागरिक प्रशासन असफल हो जाए।
2. लागू करने का अधिकार
दक्षिण कोरिया:
- मार्शल लॉ लागू करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है।
- इसे सैन्य बलों द्वारा लागू किया जाता है, और राष्ट्रपति इसकी अवधि और सीमाएँ तय करते हैं।
- उदाहरण: 1980 में ग्वांगजू विद्रोह के दौरान मार्शल लॉ लागू किया गया, जिससे सैन्य शासन मजबूत हुआ।
भारत:
- मार्शल लॉ लागू करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, लेकिन इसे पूरी तरह से संवैधानिक प्रक्रिया और संसद की अनुमति के तहत ही लागू किया जा सकता है।
- सैन्य प्रशासन नागरिक प्रशासन को तभी संभाल सकता है, जब कानून व्यवस्था बहाल करना असंभव हो।
3. अधिकारों पर प्रभाव
दक्षिण कोरिया:
- मार्शल लॉ के दौरान नागरिक अधिकारों को पूरी तरह निलंबित किया जा सकता है।
- सेना को गिरफ्तारी, न्यायालय चलाने, और नागरिक स्वतंत्रताओं को नियंत्रित करने की शक्ति मिलती है।
- मीडिया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध प्रदर्शन पर कड़ी पाबंदी लगाई जाती है।
भारत:
- भारत में मार्शल लॉ के तहत भी मौलिक अधिकार पूरी तरह निलंबित नहीं किए जा सकते।
- न्यायपालिका की भूमिका बनी रहती है, और सेना को जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
- इसका उपयोग केवल आंशिक क्षेत्रों में किया जाता है और नागरिक स्वतंत्रता पर पाबंदियाँ अस्थायी होती हैं।
4. ऐतिहासिक संदर्भ
दक्षिण कोरिया:
- दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ का उपयोग राजनीतिक नियंत्रण और असंतोष को दबाने के लिए कई बार किया गया है।
- उदाहरण:
- 1961 में जनरल पार्क चुंग-ही का सैन्य तख्तापलट।
- 1980 में ग्वांगजू विद्रोह का सैन्य दमन।
- 2024 में राष्ट्रपति यूं सुक-योल द्वारा मार्शल लॉ लागू करना।
भारत:
- भारत में मार्शल लॉ का उपयोग बहुत दुर्लभ है।
- ऐतिहासिक संदर्भ:
- ब्रिटिश शासन के दौरान 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड के समय मार्शल लॉ का प्रयोग किया गया था।
- आज़ादी के बाद भारत में कभी भी मार्शल लॉ औपचारिक रूप से लागू नहीं किया गया।
5. न्यायपालिका की भूमिका
दक्षिण कोरिया:
- मार्शल लॉ के तहत न्यायपालिका की शक्ति सीमित या निलंबित हो जाती है।
- सैन्य अदालतें नागरिक मामलों की सुनवाई कर सकती हैं।
भारत:
- भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र रहती है और मार्शल लॉ की वैधता की समीक्षा कर सकती है।
- उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए सक्षम हैं।
6. अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और लोकतांत्रिक प्रभाव
दक्षिण कोरिया:
- दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ का अक्सर उपयोग लोकतांत्रिक मूल्यों के उल्लंघन के रूप में देखा गया।
- 1980 और 2024 की घटनाओं ने देश में विरोध प्रदर्शनों और मानवाधिकार हनन को बढ़ावा दिया।
भारत:
- भारत ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से लोकतांत्रिक परंपराओं को बनाए रखा है।
- मार्शल लॉ का प्रयोग अत्यधिक सावधानी से करने की आवश्यकता है, और इसे संविधान और कानून के दायरे में रहकर लागू किया जाता है।
मुख्य अंतर सारांश तालिका:
बिंदु | दक्षिण कोरिया | भारत |
---|---|---|
संवैधानिक आधार | स्पष्ट रूप से उल्लेखित | प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं |
लागू करने वाला प्राधिकरण | राष्ट्रपति | केंद्र सरकार |
नागरिक अधिकार | पूरी तरह निलंबित हो सकते हैं | मौलिक अधिकार पूरी तरह समाप्त नहीं |
न्यायपालिका की भूमिका | सीमित या निलंबित | स्वतंत्र और जवाबदेही तय कर सकती है |
प्रयोग का इतिहास | बार-बार उपयोग | बहुत दुर्लभ |
निष्कर्ष:
दक्षिण कोरिया और भारत के मार्शल लॉ के बीच सबसे बड़ा अंतर संवैधानिक नियंत्रण और नागरिक अधिकारों पर इसके प्रभाव में है।
- दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ का उपयोग अक्सर राजनीतिक नियंत्रण और दमन के लिए किया गया है।
- भारत में मार्शल लॉ अत्यंत दुर्लभ है और इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है, वह भी संविधान और न्यायपालिका के तहत।
यह अंतर दोनों देशों की लोकतांत्रिक परंपराओं और राजनीतिक ढांचे के विकास को दर्शाता है।
भारत और कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) के संबंध
भारत और कोरिया गणराज्य के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और राजनीतिक संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है। ये संबंध समय के साथ और भी गहरे हुए हैं, और दोनों देश रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
1. ऐतिहासिक संबंध
प्राचीन सांस्कृतिक संपर्क:
- भारत और कोरिया के बीच संपर्क की जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हुई हैं।
- कोरियाई किंवदंती के अनुसार, राजकुमारी सूरो रत्ना (किसी भारतीय राज्य की राजकुमारी) ने कोरिया के राजा किम सू-रो से शादी की थी।
- इस संबंध का उल्लेख कोरिया के सम्गुक युसा (Samguk Yusa) में किया गया है।
- बौद्ध धर्म का प्रसार भारत से कोरिया तक हुआ, जिसने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को गहरा किया।
बौद्ध धर्म और दर्शन:
- कोरिया में बौद्ध धर्म को विकसित करने में भारत का योगदान महत्वपूर्ण है।
- ह्वांग-ओक मंदिर (गिम्हे, कोरिया) भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।
2. आधुनिक कूटनीतिक संबंध
स्वतंत्रता संग्राम के समय:
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और कोरिया की जापानी औपनिवेशिक शासन से आज़ादी की लड़ाई ने दोनों देशों को एक समान उद्देश्य से जोड़ा।
- 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद, भारत ने कोरिया के विभाजन और युद्ध के दौरान शांति का समर्थन किया।
आधिकारिक राजनयिक संबंध:
- भारत और दक्षिण कोरिया के बीच 1973 में आधिकारिक कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए।
- 2010 में दोनों देशों ने अपने संबंधों को “रणनीतिक साझेदारी” का दर्जा दिया।
- 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान इसे “विशेष रणनीतिक साझेदारी” में उन्नत किया गया।
3. आर्थिक संबंध
व्यापार और निवेश:
- दक्षिण कोरिया, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है।
- 2023-24 में, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार $27 बिलियन तक पहुँच गया।
- भारत से कोरिया को मुख्य निर्यात: खनिज, पेट्रोकेमिकल्स, और फार्मास्यूटिकल्स।
- कोरिया से भारत को मुख्य आयात: इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहन, और मशीनरी।
- संपूर्ण आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) 2010 में लागू हुआ, जिसने व्यापार को बढ़ावा दिया।
कोरियाई कंपनियाँ भारत में:
- सैमसंग, एलजी, ह्युंडई जैसी प्रमुख कोरियाई कंपनियों ने भारत में बड़े पैमाने पर निवेश किया है।
- ये कंपनियाँ भारत के मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया अभियानों में योगदान कर रही हैं।
4. रणनीतिक और रक्षा सहयोग
- रक्षा सहयोग 2005 में एक समझौते के तहत औपचारिक रूप से शुरू हुआ।
- साझा नौसैनिक अभ्यास और रक्षा प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान बढ़ा है।
- भारत ने कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और स्थिरता का समर्थन किया है।
- रक्षा उपकरण निर्माण में सहयोग: कोरिया की मदद से भारत में K-9 वज्र-T तोप बनाई गई।
5. सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंध
सांस्कृतिक संपर्क:
- के-पॉप और कोरियाई ड्रामा भारत में बहुत लोकप्रिय हैं, जबकि कोरिया में भारतीय योग, बॉलीवुड, और भोजन का प्रभाव है।
- कोरिया में भारतीय फिल्म फेस्टिवल का आयोजन होता है।
शैक्षिक सहयोग:
- कोरियाई विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों की संख्या बढ़ रही है।
- दोनों देशों के बीच छात्र आदान-प्रदान कार्यक्रम और शैक्षणिक समझौतों में बढ़ोतरी हो रही है।
सांस्कृतिक केंद्र:
- सियोल में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र और भारत में कोरियाई सांस्कृतिक केंद्र दोनों देशों की संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं।
6. चुनौतियाँ और संभावनाएँ
चुनौतियाँ:
- व्यापार असंतुलन: भारत के पक्ष में व्यापार घाटा है।
- रक्षा सहयोग और तकनीकी हस्तांतरण में धीमी प्रगति।
संभावनाएँ:
- ग्रीन एनर्जी और इलेक्ट्रिक वाहन: दोनों देश स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों में सहयोग कर सकते हैं।
- डिजिटल और तकनीकी साझेदारी: कोरिया की तकनीक और भारत की डिजिटल क्षमताओं का उपयोग।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग: भारत और कोरिया मुक्त और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए सहयोग कर रहे हैं।
7. भारत और उत्तर कोरिया के साथ संबंध:
- भारत का कोरिया प्रायद्वीप के उत्तर और दक्षिण दोनों के साथ कूटनीतिक संबंध है।
- हालांकि भारत उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रमों का विरोध करता है, लेकिन उसने मानवीय सहायता प्रदान की है।
- भारत, कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और पुनर्एकीकरण का समर्थन करता है।
निष्कर्ष:
भारत और कोरिया गणराज्य के संबंध इतिहास, संस्कृति और रणनीतिक साझेदारी के कारण गहरे हैं।
- आर्थिक सहयोग और तकनीकी साझेदारी दोनों देशों के लिए लाभकारी हैं।
- 21वीं सदी में भारत और दक्षिण कोरिया के संबंध “रणनीतिक साझेदारी” के साथ एक नया आयाम प्राप्त कर रहे हैं।
यह सहयोग इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता और विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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