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सुबनसिरी लोअर हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (SLHEP) – UPSC

Subansiri Lower Hydro Electric Project

सुबनसिरी लोअर हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (SLHEP) ( Subansiri Lower Hydro Electric Project ) : भारतीय ऊर्जा क्षेत्र और पर्यावरण नीति के संदर्भ में UPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। यह परियोजना न केवल जलविद्युत ऊर्जा उत्पादन से संबंधित है, बल्कि इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव भी हैं, जो सामान्य अध्ययन (GS Paper II और III) और निबंध के विषयों में आने की संभावना रखते हैं। नीचे इस परियोजना के महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं, जो UPSC के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो सकते हैं:

परियोजना का उद्देश्य और महत्व:

  • ऊर्जा उत्पादन: SLHEP का उद्देश्य अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी सियांग जिले में सुबनसिरी नदी पर स्थित एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना के माध्यम से 2000 मेगावाट (MW) बिजली का उत्पादन करना है।
  • राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा: यह परियोजना भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगी, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बिजली की आपूर्ति पर्याप्त नहीं है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: यह जलविद्युत ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत होने के कारण नवीकरणीय ऊर्जा नीति के तहत महत्व रखता है।

निर्माण और कार्यान्वयन:

  • संचालनकर्ता: यह परियोजना उत्तरपूर्वी इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NEEPCO) द्वारा विकसित की जा रही है।
  • निर्माण की स्थिति: परियोजना के निर्माण में देरी हुई है, और पर्यावरणीय चिंताओं के कारण कुछ बाधाएं आई हैं। हालाँकि, इसे भारतीय सरकार की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं में से एक माना जाता है।

मुख्य बिंदु ( आयाम )

1. ऊर्जा नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा

  • ऊर्जा आत्मनिर्भरता: SLHEP जैसे जलविद्युत परियोजनाएँ ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, यह परियोजना नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन का एक बड़ा स्रोत प्रदान करेगी। इससे भारत की ऊर्जा आपूर्ति स्थिर होगी और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: जलविद्युत एक नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है, जो पर्यावरण के लिए फायदेमंद होता है और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है। यह जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में एक सकारात्मक पहलू है।

2. पर्यावरणीय प्रभाव

  • जलवायु और पारिस्थितिकी पर प्रभाव: इस प्रकार की परियोजना नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बदल सकती है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है। नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ सकता है, जैसे कि जलजीवों की प्रजातियाँ और वनस्पतियाँ प्रभावित हो सकती हैं। इससे विविधता संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन की चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • पर्यावरणीय विरोध और चुनौती: स्थानीय पर्यावरणीय संगठन और कुछ समुदाय इस परियोजना का विरोध करते हैं, क्योंकि इसे लेकर उनका मानना है कि इसके द्वारा जैव विविधता और पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो सकता है। विभिन्न पर्यावरणीय स्वीकृतियों और निगरानी की प्रक्रिया में देरी हो सकती है, जिससे परियोजना की कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव: SLHEP जैसी परियोजनाएँ जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में जलवायु अनुकूलन और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करती हैं।

3. सामाजिक और स्थानीय प्रभाव

  • स्थानीय समुदायों का विस्थापन: इस परियोजना के कारण स्थानीय आदिवासी और ग्रामीण समुदायों को अपनी ज़मीनों से विस्थापित होना पड़ सकता है, जिससे उनके जीवनयापन और सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ सकता है। यह सामाजिक स्थिरता और विकासात्मक असंतुलन को जन्म दे सकता है।
  • नौकरी और सामाजिक विकास: हालांकि, परियोजना से स्थानीय रोजगार और विकास के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं, खासकर निर्माण कार्य में श्रमिकों की आवश्यकता होगी। इससे स्थानीय विकास और सामाजिक कल्याण को भी बढ़ावा मिल सकता है।
  • सामाजिक विरोध और विवाद: स्थानीय समुदायों के विरोध की संभावना है, जो इस परियोजना से अपनी ज़मीनों और संसाधनों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर सकते हैं।

4. आर्थिक प्रभाव

  • विद्युत उत्पादन और आपूर्ति: SLHEP से उत्पन्न होने वाली बिजली न केवल अरुणाचल प्रदेश बल्कि पूरे उत्तर-पूर्वी भारत और अन्य क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति में सुधार कर सकती है। इससे व्यावसायिक विकास और औद्योगिक विस्तार को बढ़ावा मिलेगा।
  • आर्थिक विकास: परियोजना क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास, जैसे कि सड़क, पानी की आपूर्ति, और बिजली की आपूर्ति में सुधार हो सकता है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • विदेशी निवेश और सहयोग: जलविद्युत क्षेत्र में निवेश के अवसरों के कारण विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है, जिससे देश की ऊर्जा नीति को मजबूती मिलेगी।

5. राजनीतिक और प्रशासनिक आयाम

  • केंद्र और राज्य सरकार के बीच सहयोग: SLHEP जैसी परियोजनाएँ केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संसाधन आवंटन और विकास कार्यों के सामंजस्य की आवश्यकता को दर्शाती हैं। इसमें राजनीतिक इच्छा शक्ति और दोनों स्तरों के प्रशासनिक सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
  • कानूनी पहलू: परियोजना को पर्यावरणीय और सामाजिक स्वीकृतियाँ प्राप्त करने में कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, विशेषकर स्थानीय समुदायों द्वारा उठाए गए विरोध और कानूनी दावों के कारण। यह संविधान और नीति के मुद्दों से जुड़ा है, जो UPSC के सामान्य अध्ययन Paper II (गवर्नेंस और संविधान) में शामिल किया जा सकता है।

6. राजनीतिक और कानूनी विवाद

  • स्थानीय विरोध: परियोजना को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद हो सकते हैं, खासकर स्थानीय अधिकारों और संसाधन वितरण पर। इससे संविधानिक मुद्दों और संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी हो सकता है, जिन पर UPSC में चर्चा हो सकती है।


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