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कोविड-19 महामारी को पाँच साल | current affairs | UPSC

कोविड-19 महामारी को पाँच साल / Five years on from the Covid-19 pandemic

Table Of Contents
  1. चर्चा में क्यों

चर्चा में क्यों

हाल ही में विश्व में कोविड-19 महामारी को पाँच साल बीत चुके हैं, जिससे लाखों लोगों की मृत्यु, अभूतपूर्व आर्थिक व्यवधान और महत्त्वपूर्ण सामाजिक चुनौतियाँ उत्पन्न हुई थी।

  • यद्यपि यह तीव्र संकट लगभग समाप्त हो चुका है, फिर भी अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं, कानूनों और समाज पर इसके दुष्परिणाम अभी भी विश्व की दिशा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल रहे हैं।

कोविड-19 महामारी ने विश्व को कैसे बदल दिया?

  • आर्थिक प्रभाव:
    • GDP अंतराल:
      • भारत ने वर्ष 2020-21 के दौरान अपनी GDP वृद्धि दर में तीव्र गिरावट दर्ज की गई, जो कि लॉकडाउन के कारण -5.8% तक गिर गई, जो कोविड-पूर्व औसत 6.6% थी।
      • महामारी के बाद की रिकवरी मज़बूत रही, जिसके बाद के तीन वर्षों (2021 से 2023) में वृद्धि दर 9.7%, 7% और 8.2% रही, लेकिन अर्थव्यवस्था महामारी-पूर्व की स्थिति से कई वर्ष पीछे है।
      • यद्यपि अर्थव्यवस्था महामारी से अच्छी तरह उबर गई है, और उसके बाद के तीन वर्षों (2021-2023) में 9.7%, 7% और 8.2% की दर से वृद्धि हुई है, फिर भी अर्थव्यवस्था अभी भी महामारी-पूर्व की गति से कई साल पीछे है।
      • वर्ष 2020 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 3.1% की गिरावट आई है, और वर्ष 2023 वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट आधार वर्ष 2020 के पूर्वानुमान से लगभग 4.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी का संकेत प्रदर्शित करती है।
      • अमेरिका और चीन सहित बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भी इसी प्रकार के उत्पादन अंतराल का सामना करना पड़ा, जो व्यापार तनाव और बाह्य चुनौतियों के कारण और भी बदतर हो गया।
    • ऋण की स्थिति:
      • महामारी के दौरान विश्व की सरकारों ने बहुत अधिक कर्ज लिया, जिसके कारण वर्ष 2020 में सार्वजनिक ऋण में 20 वर्षों की सबसे बड़ी वृद्धि हुई।
      • सार्वजनिक ऋण कोविड-पूर्व स्तर से उच्च बना हुआ है तथा नेट-शून्य प्रतिबद्धताओं, यूरोप के रक्षा बजट में वृद्धि एवं बढ़ते संरक्षणवाद के कारण खर्च में वृद्धि होने का अनुमान है।
      • उच्च ऋण बोझ से राजकोषीय अनुकूलन बाधित होता है, जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचे जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कम संसाधन मिलते हैं।
  • औद्योगिक नीतियाँ:
    • महामारी से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की कमज़ोरियों पर प्रकाश (विशेष रूप से सेमीकंडक्टर और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्र में इनपुट हेतु चीन पर अत्यधिक निर्भरता का होना) पड़ा है।
    • विश्व स्तर पर सरकारों ने नई औद्योगिक नीतियाँ शुरू की हैं, जिनमें अमेरिकी चिप्स अधिनियम, भारत की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना एवं मेड इन चाइना 2025 शामिल हैं, जिनका उद्देश्य आत्मनिर्भरता बढ़ाना है।
    • वर्ष 2019 से 2024 के बीच, भू-राजनीतिक चिंताओं एवं आपूर्ति शृंखला संबंधी अनुकूलन को मज़बूत करने के प्रयासों से प्रेरित होकर, वैश्विक स्तर पर राज्य हस्तक्षेप में तीन गुना वृद्धि हुई है।
  • सामाजिक एवं राजनीतिक गतिशीलता:
    • विश्वास में कमी आना:
      • एडेलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर द्वारा सरकारों, व्यवसायों एवं मीडिया जैसी संस्थाओं के बीच वैश्विक विश्वास को मापा जाता है। महामारी के बाद इस विश्वास में तीव्र गिरावट देखी गई है, जिससे शासन एवं नेतृत्व के प्रति जनता के असंतोष पर प्रकाश पड़ता है।
      • वर्ष 2023 में 24 देशों में किये गये प्यू सर्वेक्षण (Pew Survey) से पता चलता है कि 74% लोग निर्वाचित पदाधिकारियों से अलग महसूस करते हैं और 59% लोग लोकतंत्र से असंतुष्ट हैं।
      • सत्ता-विरोधी भावना में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2024 में 54 में से 40 चुनावों में सत्ताधारी दलों को हार का सामना करना पड़ा, जिससे महामारी के दीर्घकालिक राजनीतिक दुष्परिणामों पर प्रकाश पड़ता है।
    • बदलते कार्य मॉडल:
      • महामारी से हाइब्रिड कार्य को लोकप्रियता मिली है, जिसके तहत वर्ष 2024 में नौकरी चाहने वाले 42% भारतीयों ने लचीले कार्य घंटों को प्राथमिकता दी।
      • गिग वर्क और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के उदय से श्रमिकों को वैकल्पिक आय के स्रोत तलाशने में सहायता मिली है।
      • कार्य-जीवन संतुलन पर अधिक बल देने से नियोक्ताओं को कर्मचारी कल्याण को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ अपनाने हेतु प्रोत्साहन मिला।

कोविड-19 महामारी का प्रभाव:

कोविड-19 महामारी, जिसे 2019 के अंत में पहली बार चीन के वुहान शहर में पहचाना गया, ने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। यह एक अभूतपूर्व संकट था, जिसने मानव जीवन के हर पहलू पर गहरा प्रभाव डाला।


1. स्वास्थ्य पर प्रभाव

1.1. सीधी स्वास्थ्य चुनौतियां:

  • संक्रमण और मृत्यु दर:
    भारत में लाखों लोग वायरस से संक्रमित हुए, और कई अपनी जान गंवा बैठे। महामारी ने देश की स्वास्थ्य प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया।
  • अस्पतालों पर दबाव:
    अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर, वेंटिलेटर और आवश्यक दवाओं की भारी कमी देखने को मिली।

1.2. स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार की आवश्यकता:

  • कोविड-19 ने यह दिखाया कि स्वास्थ्य सेवाओं को विस्तार और निवेश की आवश्यकता है।
  • भारत ने अपने टीकाकरण अभियान में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच में चुनौतियां रहीं।

1.3. लंबी अवधि की स्वास्थ्य समस्याएं:

  • कोविड-19 से उबर चुके मरीजों में ‘लॉन्ग कोविड’ जैसी समस्याएं देखी गईं, जिसमें थकावट, सांस की तकलीफ और मानसिक समस्याएं शामिल हैं।

2. आर्थिक प्रभाव

2.1. व्यापार और उद्योगों पर प्रभाव:

  • लॉकडाउन ने असंख्य छोटे और मध्यम व्यापारों को बंद करने पर मजबूर किया।
  • होटल, पर्यटन, और मनोरंजन जैसे उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए।

2.2. रोजगार और आय पर प्रभाव:

  • बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां छूट गईं। प्रवासी मजदूरों को शहर छोड़कर अपने गांवों की ओर लौटना पड़ा।
  • महिलाओं और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों पर इसका असर अधिक पड़ा।

2.3. सरकार की नीतियां:

  • सरकार ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाएं चलाईं।
  • डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और मुफ्त राशन जैसी योजनाओं ने गरीबों को सहायता प्रदान की।

3. शिक्षा पर प्रभाव

3.1. ऑनलाइन शिक्षा का उदय:

  • स्कूल और कॉलेज बंद होने से शिक्षण पूरी तरह ऑनलाइन हो गया।
  • शिक्षकों और छात्रों को डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना पड़ा।

3.2. डिजिटल विभाजन:

  • गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को इंटरनेट और उपकरणों की कमी के कारण शिक्षा में पिछड़ना पड़ा।
  • शहरी और ग्रामीण छात्रों के बीच सीखने के अवसरों में असमानता और बढ़ गई।

3.3. लंबी अवधि का प्रभाव:

  • स्कूल बंद होने के कारण बच्चों की सीखने की गति और सामाजिक कौशल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

4. सामाजिक प्रभाव

4.1. लॉकडाउन और सामाजिक दूरी:

  • सामाजिक जीवन ठप हो गया। परिवारों को लंबे समय तक घरों में बंद रहना पड़ा।
  • समारोह, त्योहार, और धार्मिक आयोजन सीमित हो गए।

4.2. माइग्रेंट वर्कर्स की समस्या:

  • प्रवासी मजदूरों ने पैदल यात्रा करके अपने गांवों की ओर रुख किया, जिससे उनकी दुर्दशा की भयावह तस्वीर सामने आई।
  • सरकार को इन मजदूरों के लिए विशेष योजनाएं बनानी पड़ीं।

5. मनोवैज्ञानिक प्रभाव

5.1. मानसिक तनाव और डिप्रेशन:

  • लंबे समय तक घर में बंद रहने और अनिश्चितता ने लोगों में चिंता और डिप्रेशन बढ़ा दिया।
  • बच्चों और युवाओं पर इसका विशेष रूप से प्रभाव पड़ा, क्योंकि उनकी शिक्षा और सामाजिक गतिविधियां ठप हो गईं।

5.2. सकारात्मक पहलू:

  • कई परिवारों ने एक साथ समय बिताने का अवसर पाया।
  • योग और ध्यान जैसी गतिविधियों ने मानसिक स्वास्थ्य सुधारने में मदद की।

6. पर्यावरण पर प्रभाव

  • प्रदूषण में कमी:
    लॉकडाउन के दौरान वायु और जल प्रदूषण में कमी आई। नदियां साफ दिखने लगीं, और वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ।
  • प्रकृति का पुनरुद्धार:
    जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में अधिक स्वतंत्रता मिली।

7. सरकार की प्रतिक्रिया

7.1. स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार:

  • सरकार ने अस्थायी अस्पताल और कोविड केयर सेंटर स्थापित किए।
  • ‘मेक इन इंडिया’ के तहत वेंटिलेटर और पीपीई किट का निर्माण बढ़ाया गया।

7.2. टीकाकरण अभियान:

  • भारत ने ‘को-विन’ प्लेटफॉर्म के जरिए विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाया।
  • भारत ने कई देशों को टीके भी निर्यात किए।

8. भविष्य की चुनौतियां और समाधान

8.1. स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाना:

  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और निवेश की आवश्यकता है।
  • सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।

8.2. डिजिटल पहुंच का विस्तार:

  • हर गांव और समुदाय तक इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों की पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए।

8.3. आर्थिक पुनरुत्थान:

  • छोटे व्यवसायों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
  • स्वरोजगार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना।

8.4. मनोवैज्ञानिक समर्थन:

  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • समाज में मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

कोविड-19 महामारी: चुनौतियां और समाधान

कोविड-19 महामारी ने मानवता के सामने कई अभूतपूर्व चुनौतियां प्रस्तुत कीं। इन चुनौतियों ने विभिन्न स्तरों पर हमारी क्षमताओं और संसाधनों की परीक्षा ली। हालांकि, हर चुनौती के साथ समाधान की संभावनाएं भी होती हैं।


मुख्य चुनौतियां और उनके समाधान

1. स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव

  • चुनौती:
    • अस्पतालों में बेड, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडरों की भारी कमी।
    • स्वास्थ्यकर्मियों पर अत्यधिक काम का दबाव और संक्रमण का खतरा।
  • समाधान:
    • स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और अधिक निवेश।
    • मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार, जैसे कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोलना।
    • स्वास्थ्यकर्मियों को नियमित प्रशिक्षण और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पेशकश।

2. आर्थिक संकट और बेरोजगारी

  • चुनौती:
    • लॉकडाउन के कारण लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं।
    • सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्यमों (MSME) का बंद होना।
  • समाधान:
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसी योजनाओं के माध्यम से स्थानीय व्यवसायों को प्रोत्साहन।
    • प्रवासी मजदूरों और बेरोजगारों के लिए रोजगार गारंटी योजनाओं का विस्तार।
    • टैक्स रियायत और आसान कर्ज योजनाओं के जरिए MSME को पुनर्जीवित करना।

3. शिक्षा का बाधित होना

  • चुनौती:
    • स्कूल और कॉलेज बंद होने से शिक्षा व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव।
    • डिजिटल शिक्षा की असमानता, खासतौर पर ग्रामीण और वंचित वर्गों में।
  • समाधान:
    • ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ाना।
    • छात्रों को किफायती डिजिटल उपकरण उपलब्ध कराना।
    • ‘हाइब्रिड मॉडल’ (ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा का संयोजन) को अपनाना।

4. मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं

  • चुनौती:
    • महामारी के कारण चिंता, तनाव, और डिप्रेशन जैसी समस्याओं में वृद्धि।
    • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच।
  • समाधान:
    • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और टेलीमेडिसिन की सुविधा।
    • मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता अभियान चलाना।
    • कार्यस्थलों और स्कूलों में काउंसलिंग सेवाएं प्रदान करना।

5. माइग्रेंट वर्कर्स की समस्याएं

  • चुनौती:
    • प्रवासी मजदूरों को अचानक काम और आवास का नुकसान।
    • उनके गांव लौटने के दौरान असुरक्षित स्थितियां और बुनियादी सुविधाओं की कमी।
  • समाधान:
    • प्रवासी मजदूरों के लिए एक व्यापक डेटाबेस बनाना।
    • रोजगार गारंटी योजनाओं का विस्तार और उनके लिए आवास और भोजन की व्यवस्था।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करना।

6. वैक्सीन और स्वास्थ्य उपकरणों की कमी

  • चुनौती:
    • टीकों और अन्य चिकित्सा उपकरणों की वैश्विक मांग।
    • ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों तक वैक्सीन पहुंचाना चुनौतीपूर्ण।
  • समाधान:
    • घरेलू वैक्सीन उत्पादन बढ़ाना और विदेशी साझेदारियों का उपयोग।
    • टीकाकरण अभियान में समुदाय आधारित संगठनों की भागीदारी।
    • प्रभावी लॉजिस्टिक्स और कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण।

7. भ्रष्टाचार और संसाधनों का दुरुपयोग

  • चुनौती:
    • राहत योजनाओं और स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता की कमी।
  • समाधान:
    • तकनीकी आधारित पारदर्शी तंत्र, जैसे कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT)।
    • निगरानी और जवाबदेही के लिए स्वतंत्र निकायों की स्थापना।

8. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन

  • चुनौती:
    • लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण में सुधार हुआ, लेकिन यह अस्थायी साबित हुआ।
  • समाधान:
    • स्वच्छ ऊर्जा और स्थायी विकास को प्राथमिकता देना।
    • लॉकडाउन के दौरान लागू किए गए पर्यावरणीय सुधारों को दीर्घकालिक नीतियों में बदलना।

9. सामाजिक असमानता

  • चुनौती:
    • वंचित वर्गों पर महामारी का अधिक प्रभाव।
  • समाधान:
    • समाज के कमजोर वर्गों के लिए विशेष योजनाएं लागू करना।
    • भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुलभता सुनिश्चित करना।

दीर्घकालिक समाधान की दिशा में कदम

  1. मजबूत स्वास्थ्य ढांचा:
    • अधिक अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, और प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी।
    • महामारी प्रबंधन के लिए विशेष बजट आवंटन।
  2. डिजिटल क्रांति:
    • हर गांव तक इंटरनेट और तकनीकी उपकरणों की पहुंच।
    • डिजिटल शिक्षा और डिजिटल कार्य प्रणाली को बढ़ावा देना।
  3. आर्थिक सुधार और स्थिरता:
    • छोटे उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए कर और ऋण में राहत।
    • रोजगार के नए अवसर पैदा करना।
  4. मानसिक स्वास्थ्य पर जोर:
    • मानसिक स्वास्थ्य को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल करना।
    • समुदाय स्तर पर काउंसलिंग और सहायता समूह स्थापित करना।
  5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी और शोध।

निष्कर्ष:

कोविड-19 महामारी ने हमें कई चुनौतियों से रूबरू कराया, लेकिन यह सीखने और सुधारने का अवसर भी है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, मजबूत अर्थव्यवस्था, और एकजुट समाज के निर्माण के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। चुनौतियों को समाधान में बदलकर हम एक अधिक सुरक्षित और समृद्ध भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।


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