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Daily Current Affairs For UPSC IAS | 13 February 2025

DAILY CURRENT AFFAIRS IN HINDI FOR UPSC IAS – Prelims And Mains Examination 2025 | 13 FEBRUARY 2025 – UPSC PRELIMS POINTER Fact Based Current Affairs.

DAILY Current Affairs Analysis For UPSC Pre And Mains Examination

Daily Archive

प्रधान मंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना (PRADHAN MANTRI ANUSUCHIT JAATI ABHYUDAY YOJANA -PM-AJAY)

प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना (पीएम-अजय) और केंद्रीय सलाहकार समिति की बैठक:

हालिया घटनाक्रम

भारत सरकार ने प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना (PM-AJAY) को अनुसूचित जाति (SC) समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक उत्थान के लिए लागू किया है। इस योजना से जुड़ी केंद्रीय सलाहकार समिति (CAC) की बैठक हाल ही में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार की अध्यक्षता में आयोजित की गई। बैठक का उद्देश्य योजना की प्रगति की समीक्षा, इसके कार्यान्वयन में सुधार और भविष्य की नीतियों पर चर्चा करना था


1. पीएम-अजय योजना का परिचय

प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना (PM-AJAY) को अनुसूचित जाति के लोगों के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए लागू किया गया है। इस योजना में मुख्य रूप से आर्थिक सशक्तिकरण, बुनियादी ढांचे का विकास और सामाजिक उत्थान पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

मुख्य उद्देश्य:

  • अनुसूचित जातियों के लिए बुनियादी ढांचे का विकास, जैसे कि सड़कें, सामुदायिक केंद्र, पेयजल, स्वच्छता, आवास आदि
  • शिक्षा और कौशल विकास को बढ़ावा देना, जिससे युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर मिल सकें।
  • स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण योजनाओं को बेहतर बनाना।
  • महिला सशक्तिकरण और वित्तीय समावेशन को मजबूत करना।

2. केंद्रीय सलाहकार समिति (CAC) की बैठक: प्रमुख बिंदु

केंद्रीय सलाहकार समिति (CAC) की बैठक में निम्नलिखित महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई:

(A) योजना की प्रगति की समीक्षा

  • अब तक योजना के अंतर्गत कितने लाभार्थियों को सहायता मिली है, इस पर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
  • उन राज्यों और जिलों की पहचान की गई, जहां इस योजना के क्रियान्वयन में सुधार की आवश्यकता है।
  • फंडिंग और बजट आवंटन पर चर्चा हुई, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी लक्षित लाभार्थियों तक सहायता पहुंचे।

(B) प्रमुख सुधार और आगामी रणनीति

  1. डिजिटल पारदर्शिता:
    • लाभार्थियों की पहचान और योजनाओं के प्रभाव को ट्रैक करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करने की सिफारिश की गई।
    • सरकारी पोर्टल पर रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम को मजबूत करने की बात कही गई।
  2. समावेशी विकास:
    • अनुसूचित जाति समुदाय के कमजोर वर्गों, महिलाओं और दिव्यांगजनों को प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया।
    • अधिक से अधिक स्वरोजगार और स्टार्टअप को प्रोत्साहन देने की रणनीति बनाई गई।
  3. राज्यों की भागीदारी बढ़ाना:
    • राज्यों को अधिक अधिकार और फंडिंग देने पर चर्चा की गई, जिससे वे स्थानीय जरूरतों के अनुसार योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन कर सकें।
  4. स्वास्थ्य और शिक्षा को प्राथमिकता:
    • अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में अधिक स्कूल, छात्रावास, कॉलेज और स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव दिया गया।
    • स्कॉलरशिप और स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाने पर सहमति बनी।

3. पीएम-अजय योजना का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

(A) सामाजिक प्रभाव:

  • जातिगत भेदभाव को कम करने में मदद, क्योंकि यह योजना अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रही है।
  • सामाजिक बुनियादी ढांचे में सुधार, जिससे पिछड़े क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता बेहतर होगी।
  • महिला और युवाओं के लिए नए अवसर, जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलेगा।

(B) आर्थिक प्रभाव:

  • आजीविका के नए साधन उपलब्ध होंगे, जिससे SC समुदाय के लोग आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
  • बेरोजगारी दर में कमी, क्योंकि इस योजना के तहत कौशल विकास और स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • स्टार्टअप और छोटे व्यवसायों को प्रोत्साहन, जिससे SC उद्यमियों को नया अवसर मिलेगा।

4. योजना की प्रमुख चुनौतियाँ और समाधान

चुनौतीसंभावित समाधान
योजना का धीमा क्रियान्वयनराज्यों और जिला प्रशासन को अधिक स्वायत्तता और बजट आवंटन बढ़ाना
लाभार्थियों की पहचान में कठिनाईडिजिटल डेटाबेस और आधार-लिंक्ड पहचान प्रणाली लागू करना
भ्रष्टाचार और फंड के दुरुपयोग का खतरापारदर्शी मॉनिटरिंग सिस्टम और तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट
ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमीजागरूकता अभियान और पंचायत स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

ज़रूरी भाग:

  • अनुसूचित जाति बहुल गांवों का “आदर्श ग्राम” के रूप में विकास:
    • महत्वपूर्ण अनुसूचित जाति आबादी वाले गांवों को सम्मानजनक जीवन के लिए आवश्यक बुनियादी सेवाओं और बुनियादी ढांचे तक पहुंच के साथ आदर्श गांवों में बदलना।
    • नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, इस घटक के अंतर्गत कुल 29,881 गांव शामिल किये गये हैं, जिनमें से 6,087 को आदर्श ग्राम घोषित किया गया है।
  • राज्यों/जिलों को सहायता अनुदान:
    • व्यापक आजीविका परियोजनाओं और बुनियादी ढांचे के विकास सहित अनुसूचित जाति समुदायों की सामाजिक-आर्थिक बेहतरी के उद्देश्य से परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
    • 3,242.07 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई है, जिससे 850,611 व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं।
  • छात्रावासों का निर्माण/मरम्मत:
    • अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों, विशेषकर ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में सहायता देने के लिए छात्रावासों का निर्माण और मरम्मत करना।
    • वर्ष 2021-22 से अब तक 5,185 लाभार्थियों के लिए 126.30 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ 46 छात्रावास स्वीकृत किए गए हैं।
  • इस योजना का 100% वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। हालांकि, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश चाहें तो अपने संसाधनों से अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराने के लिए स्वतंत्र हैं।

निष्कर्ष और आगे की राह

प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना (PM-AJAY) भारत में अनुसूचित जाति समुदाय के समग्र विकास के लिए एक महत्वपूर्ण पहल हैकेंद्रीय सलाहकार समिति (CAC) की बैठक से यह स्पष्ट होता है कि सरकार इस योजना के प्रभाव को और व्यापक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है

भविष्य के लिए अपेक्षित कदम:

  • योजना के क्रियान्वयन की गति को तेज करना
  • डिजिटल निगरानी और पारदर्शिता को मजबूत बनाना
  • अनुसूचित जाति समुदाय की आवश्यकताओं के अनुसार अधिक केंद्रित योजनाएँ बनाना
  • स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्यमिता और महिला सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान देना

यदि इन सुझावों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो PM-AJAY भारत में सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है

सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद (GROSS DOMESTIC KNOWLEDGE PRODUCT) – Daily Current Affairs

ज्ञान अर्थव्यवस्था को जीडीपी के पूरक मीट्रिक के रूप में शामिल करने की योजना:

हालिया घटनाक्रम

सरकार ने 2021 में स्थगित किए गए एक विचार को पुनर्जीवित करते हुए, अब ज्ञान अर्थव्यवस्था (Knowledge Economy) को मापने के लिए एक नया मीट्रिक विकसित करने की योजना बनाई है। इसका उद्देश्य सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ-साथ देश के बौद्धिक और नवाचार-आधारित विकास को ट्रैक करना है।

1. ज्ञान अर्थव्यवस्था क्या है?

ज्ञान अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करती है जहां जानकारी, नवाचार, अनुसंधान और तकनीकी प्रगति आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यह मुख्य रूप से शिक्षा, अनुसंधान एवं विकास (R&D), डिजिटल तकनीक, स्टार्टअप्स, बौद्धिक संपदा (IP) और मानव पूंजी पर केंद्रित होती है।

2. परंपरागत GDP मीट्रिक की सीमाएँ

  • जीडीपी मूल रूप से उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मात्रात्मक मापन करता है, लेकिन यह ज्ञान, नवाचार और डिजिटल अर्थव्यवस्था के प्रभाव को पूरी तरह नहीं दर्शा पाता
  • आधुनिक अर्थव्यवस्था में सॉफ्टवेयर, डेटा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), और नवाचार-आधारित उद्योगों का योगदान बढ़ा है, जिसे पारंपरिक GDP मॉडल में प्रभावी ढंग से मापा नहीं जाता।
  • इसलिए, सरकार एक पूरक मीट्रिक विकसित करना चाहती है जो ज्ञान और नवाचार से उत्पन्न आर्थिक मूल्य को परिभाषित कर सके

3. नया मीट्रिक कैसे मदद करेगा?

  • R&D और नवाचार में निवेश का मूल्यांकन करने में सहायता करेगा।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था, स्टार्टअप्स, और उच्च-तकनीकी उद्योगों की सटीक आर्थिक भागीदारी को माप सकेगा।
  • मानव पूंजी और कौशल विकास को अधिक समग्र रूप से आंका जाएगा।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और स्वचालन जैसी तकनीकों के आर्थिक प्रभाव को भी दर्शाएगा।

4. सरकार की रणनीति और संभावित चुनौतियाँ

  • सरकार को इस मीट्रिक के लिए सटीक डेटा संग्रह प्रणाली विकसित करनी होगी, जिससे ज्ञान और नवाचार आधारित गतिविधियों को प्रभावी रूप से मापा जा सके।
  • बौद्धिक संपदा, पेटेंट, डिजिटल सेवाओं और अनुसंधान विकास में निवेश के लिए एक मानक मापन प्रणाली तैयार करनी होगी।
  • विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मॉडलों (OECD, WIPO, World Bank) का अध्ययन करके भारत के लिए उपयुक्त प्रारूप तैयार करना होगा।
  • इस मीट्रिक को लागू करने में संभावित नीति चुनौतियाँ हो सकती हैं, जैसे कि डेटा पारदर्शिता, मानकीकरण और विभिन्न क्षेत्रों में इसे प्रभावी रूप से लागू करना

5. अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और भारत की संभावनाएँ

  • कई विकसित देश पहले से ही GDP के साथ अन्य पूरक मीट्रिक्स जैसे ग्रोस नेशनल हैप्पीनेस (GNH), ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI) और नॉलेज इकोनॉमी इंडेक्स (KEI) को शामिल कर रहे हैं।
  • भारत में तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था, स्टार्टअप इकोसिस्टम और तकनीकी नवाचारों को देखते हुए, यह मीट्रिक नीतिगत निर्णयों को और अधिक सटीक बनाने में मदद कर सकता है

मुख्य बिंदु

  • सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद (जीडीकेपी) एक नवीन मीट्रिक है जिसे किसी देश की ज्ञान-आधारित परिसंपत्तियों और गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करके उसकी आर्थिक प्रगति का आकलन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद (जीडीकेपी) की अवधारणा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तरह एक मानक आर्थिक शब्द नहीं है, लेकिन इसे एक सैद्धांतिक या उभरते ढांचे के रूप में समझा जा सकता है जो किसी देश के भीतर ज्ञान-आधारित गतिविधियों, नवाचार और बौद्धिक पूंजी से उत्पन्न आर्थिक मूल्य को मापता है।
  • फोकस: यह आधुनिक अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास के प्रमुख चालकों के रूप में ज्ञान, सूचना और रचनात्मकता की भूमिका पर जोर देता है।
  • वर्तमान में, बौद्धिक संपदा उत्पादों (आईपीपी) पर सभी व्यय सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) के अंतर्गत दर्ज किए जाते हैं – जो अर्थव्यवस्था के लिए जीडीपी डेटासेट में पूंजी निवेश का संकेतक है।
  • जीडीकेपी पर 2021 में पहले भी चर्चा हुई थी, जब नीति आयोग ने कॉन्सेप्ट नोट पर एक प्रेजेंटेशन दिया था। तब राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने बताया था कि कॉन्सेप्ट नोट में जीडीकेपी के डेटा को कैप्चर करने और गणना करने की कार्यप्रणाली नहीं बताई गई थी।

निष्कर्ष

ज्ञान अर्थव्यवस्था को मापने के लिए एक पूरक मीट्रिक विकसित करने की सरकार की योजना आधुनिक अर्थव्यवस्था की वास्तविकता को अधिक सटीक रूप से दर्शाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह GDP पर निर्भरता को संतुलित करेगा और भारत की नवाचार-आधारित आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने में सहायक होगा। हालाँकि, इस पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार किस प्रकार से डेटा संग्रह, नीति क्रियान्वयन और क्षेत्रीय विविधताओं को ध्यान में रखते हुए इसे लागू करती है

बाल्टिक राज्यों का यूरोपीय पावर ग्रिड पर स्विच, रूस के साथ संबंध ख़त्म ( BALTIC STATES SWITCH TO EUROPEAN POWER GRID, ENDING RUSSIA TIES )

तीन बाल्टिक देशों का रूसी ग्रिड से अलग होना:

हालिया घटनाक्रम

तीन बाल्टिक देश – एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया – ने अपनी बिजली प्रणाली को रूस के पावर ग्रिड से पूरी तरह से अलग कर लिया है। यह कदम यूरोपीय संघ (EU) के साथ अधिक निकटता से एकीकरण करने और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उठाया गया है। इस निर्णय के भू-राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव महत्वपूर्ण हैं।

1. भू-राजनीतिक दृष्टिकोण

बाल्टिक देश लंबे समय से रूस पर अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहे थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद भी, इन देशों की बिजली प्रणाली रूस और बेलारूस के साथ एकीकृत थी। हालाँकि, यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर ऊर्जा निर्भरता को ख़त्म करने की दिशा में यूरोपीय देशों ने ठोस कदम उठाए हैं। यह डिस्कनेक्शन रूस से ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण संकेत है।

2. यूरोपीय संघ के साथ समन्वय

अब इन देशों की बिजली प्रणाली EU के ENTSO-E (यूरोपियन नेटवर्क ऑफ ट्रांसमिशन सिस्टम ऑपरेटर्स फॉर इलेक्ट्रिसिटी) से जुड़ जाएगी। इससे बिजली आपूर्ति में स्थिरता बढ़ेगी और बाल्टिक देशों को पश्चिमी यूरोप के ऊर्जा बाजारों से जुड़ने का अवसर मिलेगा।

3. ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक लाभ

  • रूस से बिजली आपूर्ति काटने के बाद इन देशों पर किसी भी संभावित रूसी ऊर्जा ब्लैकमेलिंग का असर नहीं पड़ेगा।
  • EU के ग्रिड में शामिल होने से बिजली आपूर्ति अधिक स्थिर और लागत प्रभावी होगी।
  • पश्चिमी देशों के साथ एकीकृत होने से नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में मदद मिलेगी।

4. आर्थिक प्रभाव

शॉर्ट टर्म में, इस बदलाव में बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने की लागत अधिक हो सकती है, लेकिन लॉन्ग टर्म में इससे ऊर्जा बाजार में स्थिरता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी। यह परिवर्तन ऊर्जा की कीमतों को संतुलित करने और नई ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाने में मदद करेगा।

मुख्य बिंदु

  1. बाल्टिक देशों के अपने पूर्व सोवियत साम्राज्यवादी शासक के ग्रिड से अलग होने की योजना, जिस पर दशकों से चर्चा चल रही थी, 2014 में मास्को द्वारा क्रीमिया के कब्जे के बाद गति पकड़ने लगी।
  2. यह ग्रिड रूस से जुड़े तीनों देशों का अंतिम शेष लिंक था, जिन्होंने सोवियत संघ के विघटन के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में पुनः उभरकर 2004 में यूरोपीय संघ और नाटो की सदस्यता प्राप्त की।
  3. कीव के कट्टर समर्थक इन तीनों देशों ने 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद रूस से बिजली खरीदना बंद कर दिया, लेकिन ब्लैकआउट से बचने के लिए आवृत्तियों को नियंत्रित करने और नेटवर्क को स्थिर करने के लिए रूसी ग्रिड पर निर्भर रहे।
  4. बाल्टिक सागर क्षेत्र हाई अलर्ट पर है क्योंकि बाल्टिक देशों और स्वीडन या फिनलैंड के बीच बिजली केबल, टेलीकॉम लिंक और गैस पाइपलाइन में रुकावटें देखी गई हैं। ऐसा माना जाता है कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद समुद्र तल पर जहाजों द्वारा लंगर खींचे जाने के कारण ये क्षति हुई। रूस ने किसी भी प्रकार की संलिप्तता से इनकार किया है।
  5. रूस के लिए, इस अलगाव का अर्थ है कि लिथुआनिया, पोलैंड और बाल्टिक सागर के बीच स्थित उसका कालिनिनग्राद क्षेत्र रूस के मुख्य ग्रिड से कट जाएगा, जिससे उसे अपनी बिजली प्रणाली को स्वतंत्र रूप से बनाए रखना पड़ेगा।
  6. बाल्टिक देशों ने 2018 से अब तक अपनी ग्रिड प्रणालियों को उन्नत करने के लिए लगभग 1.6 बिलियन यूरो (1.66 बिलियन डॉलर) खर्च किए हैं, जबकि मास्को ने कालिनिनग्राद में कई गैस आधारित बिजली संयंत्रों सहित 100 अरब रूबल (1 बिलियन डॉलर) खर्च किए हैं।

निष्कर्ष

बाल्टिक देशों का यह कदम सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और रणनीतिक निर्णय है। यह रूस पर निर्भरता समाप्त करने और यूरोपीय संघ के साथ अधिक मजबूती से जुड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम है। आने वाले वर्षों में, यह बदलाव बाल्टिक देशों की ऊर्जा स्वतंत्रता, सुरक्षा और आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाएगा।