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ISRO की 100वीं लॉन्च ( ISRO’s 100th launch ) – UPSC PRELIMS POINTER

ISRO ने गगनयान के पहले बिना चालक मिशन के लिए क्रू मॉड्यूल भेजा

चर्चा में क्यों

ISRO ने 2025 की पहली लॉन्च के साथ अपनी 100वीं रॉकेट लॉन्चिंग पूरी की, जब GSLV-F15 ने सफलतापूर्वक NVS-02 नेविगेशन सैटेलाइट को कक्षा में स्थापित किया।

GSLV-F15 के बारे में

  • यह भारत के भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) की 17वीं उड़ान है।
  • स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण के साथ यह 11वीं उड़ान है।
  • स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण के साथ GSLV की यह 8वीं परिचालन उड़ान है।

NVS-02: NavIC प्रणाली का हिस्सा

  • NVS-02 भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (NavIC) के लिए पांच प्रतिस्थापन उपग्रहों में से एक है।
  • यह NVS श्रृंखला का दूसरा उपग्रह है, जो NavIC प्रणाली का हिस्सा है।
  • NVS-01, जो मई 2023 में लॉन्च हुआ था, पहला द्वितीय-पीढ़ी का NavIC उपग्रह था और इसमें भारत का पहला स्वदेशी परमाणु घड़ी (Atomic Clock) शामिल था।

उन्नत विशेषताएँ
✅ पहले के उपग्रहों की तुलना में अधिक भारी और लंबी मिशन अवधि।
✅ स्वदेशी रूप से विकसित परमाणु घड़ी, जो अधिक सटीकता प्रदान करती है।
L1 फ्रीक्वेंसी सक्षम, जो अमेरिकी GPS प्रणाली में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है—इससे व्यक्तिगत ट्रैकर्स और अन्य उपकरणों के साथ बेहतर संगतता होगी।
भारत की नेविगेशन प्रणाली की विश्वसनीयता और उपलब्धता में वृद्धि, जिससे नागरिक और रणनीतिक दोनों उपयोगों में सुधार होगा।


NavIC: भारत की क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली

NavIC (Navigation with Indian Constellation) एक सात-उपग्रहों वाली क्षेत्रीय स्थिति निर्धारण प्रणाली है, जो भारतीय उपमहाद्वीप और 1,500 किलोमीटर के दायरे में स्थान डेटा प्रदान करती है।

कवरेज और सटीकता

📍 20 मीटर तक की स्थिति सटीकता प्रदान करता है (मानक सेवा के तहत)।
📍 विशिष्ट उपयोगकर्ताओं के लिए एक प्रतिबंधित सेवा, जो और भी अधिक सटीकता प्रदान करती है।

GPS पर NavIC की प्रमुख श्रेष्ठताएँ

🔹 भारत में GPS से अधिक सटीक, क्योंकि NavIC के उपग्रह सीधे ऊपर स्थित हैं।
🔹 घाटियों और जंगलों जैसे कठिन इलाकों में बेहतर सिग्नल उपलब्धता, जबकि GPS सिग्नल भारत में एक कोण पर पहुंचते हैं।


वैश्विक नेविगेशन प्रणालियाँ

NavIC दुनिया की एकमात्र क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली है।
अन्य प्रमुख वैश्विक प्रणालियाँ:
🌍 GPS (USA)
🌍 GLONASS (रूस)
🌍 Galileo (यूरोप)
🌍 Beidou (चीन)

(📌 जापान की QZSS प्रणाली GPS सिग्नल को बढ़ाती है लेकिन स्वतंत्र नहीं है।)

ISRO की यात्रा 🚀

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

ISRO की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) से हुई, जिसकी स्थापना 1962 में परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत हुई थी।
1969 में, इसे औपचारिक रूप से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के रूप में स्थापित किया गया, उसी वर्ष जब अमेरिका ने अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजा था।
1972 में, एक स्वतंत्र अंतरिक्ष विभाग बनाया गया।


रॉकेट प्रगति और उपलब्धियां

ISRO ने छह पीढ़ियों के प्रक्षेपण यान (Launch Vehicles) विकसित किए हैं, जिनमें से चार वर्तमान में सक्रिय हैं:

1️⃣ PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) – “कार्य घोड़ा” 🚀

✅ 62 सफल उड़ानें
✅ 2,000 किलोग्राम तक का भार निचली पृथ्वी कक्षा (LEO) में ले जाने की क्षमता
✅ केवल दो असफल लॉन्च

2️⃣ GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) – क्रायोजेनिक शक्ति 🔥

✅ प्रारंभ में रूसी क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग किया, बाद में भारत ने स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण विकसित किया।
GSLV-F15 (100वीं लॉन्च) इसी श्रृंखला का हिस्सा है।

3️⃣ GSLV Mk III (LVM3) – सबसे भारी रॉकेट 🚀

✅ 8,500 किलोग्राम तक की भार क्षमता (LEO में)
चंद्रयान-2, चंद्रयान-3, और गगनयान मिशन के लिए उपयोग किया गया।

4️⃣ SSLV (Small Satellite Launch Vehicle) – छोटे उपग्रहों के लिए 📡

तीन विकासात्मक उड़ानें पूरी कर चुका है।
✅ वाणिज्यिक छोटे उपग्रहों के लिए डिज़ाइन किया गया।


प्रमुख उपलब्धियां 🎯

100 लॉन्चों के माध्यम से 548 उपग्रह (120 टन) कक्षा में स्थापित किए गए।
✅ इनमें 433 विदेशी उपग्रह (23 टन) शामिल हैं।
✅ संचार, पृथ्वी अवलोकन, नेविगेशन, और प्रयोगात्मक उपग्रह लॉन्च किए।
✅ प्रमुख वैज्ञानिक मिशन:

  • AstroSat (अंतरिक्ष वेधशाला)
  • मंगलयान (Mangalyaan) – भारत का पहला मंगल मिशन
  • चंद्रयान-1, 2, और 3
  • XpoSat (उच्च-ऊर्जा खगोल भौतिकी)
  • आदित्य-L1 (सौर मिशन)

ISRO के आगामी मिशन 🔭

🔹 चंद्रमा से नमूना लाने का मिशन
🔹 शुक्र (Venus) मिशन
🔹 भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना
🔹 मानवयुक्त चंद्र मिशन


अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान (NGLV) 🚀

✅ 30,000 किलोग्राम तक का भार निचली पृथ्वी कक्षा (LEO) में ले जाने में सक्षम
✅ 91 मीटर ऊंचा – LVM3 (43 मीटर) से दोगुना
✅ पुन: उपयोग योग्य प्रथम चरण – 15-20 बार उपयोग किया जा सकता है, जिससे लॉन्च लागत घटेगी।


तीसरा लॉन्च पैड – नई अधोसंरचना 🚀

✅ भारतीय कैबिनेट ने ₹3,984.86 करोड़ की लागत से निर्माण को मंजूरी दी।
✅ NGLV और मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया।
भारी वाणिज्यिक लॉन्च की क्षमता को बढ़ाएगा।


ISRO की 100वीं लॉन्च FAQs ❓

Q1. ISRO द्वारा लॉन्च किया गया 100वां उपग्रह कौन सा है?
उत्तर: NVS-02 नेविगेशन उपग्रह, जो NavIC प्रणाली का हिस्सा है, ISRO की 100वीं लॉन्च (GSLV-F15) में भेजा गया।

Q2. भारत ने अपनी 100वीं अंतरिक्ष मिशन कब लॉन्च की?
उत्तर: ISRO ने अपनी 100वीं अंतरिक्ष मिशन 29 जनवरी 2025 को सफलतापूर्वक लॉन्च की, जिसमें NVS-02 उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया गया।

Q3. ISRO द्वारा लॉन्च किया गया पहला उपग्रह कौन सा था?
उत्तर: आर्यभट्ट (Aryabhata), जिसे 19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ के कपुस्टिन यार लॉन्च सुविधा से लॉन्च किया गया था।

Q4. GSLV-F15 का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: GSLV-F15 उपग्रहों को Geosynchronous Transfer Orbit (GTO) में स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिससे भारत की NavIC नेविगेशन प्रणाली को समर्थन मिलेगा।

Q5. भारत का पहला स्पेसशिप कौन सा है?
उत्तर: भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट (Aryabhata), 1975 में लॉन्च किया गया था।


ISRO की यह 100वीं लॉन्च भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो भविष्य में और भी बड़े मिशनों का मार्ग प्रशस्त करेगी! 🚀🌍🇮🇳


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