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भारत का राजकोषीय समेकन ( India’s fiscal consolidation )

India's fiscal consolidation

भारत का राजकोषीय समेकन (Fiscal Consolidation)

परिचय:
राजकोषीय समेकन का अर्थ है सरकार की वित्तीय स्थिति को स्थिर और मजबूत करने की प्रक्रिया, जिसमें राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) और सार्वजनिक ऋण (Public Debt) को नियंत्रित करना शामिल है। यह नीति एक स्वस्थ और टिकाऊ अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए अपनाई जाती है।


राजकोषीय समेकन के प्रमुख लक्ष्य:

  1. राजकोषीय घाटे को कम करना:
    • राजस्व और व्यय के बीच के अंतर को कम करके घाटे को नियंत्रित करना।
  2. पब्लिक डेब्ट प्रबंधन:
    • सरकार के ऋण स्तर को इस प्रकार बनाए रखना कि यह GDP के अनुपात में स्थिर रहे।
  3. राजस्व संग्रह में सुधार:
    • कर-ग्रहण (Tax Revenue) और गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue) बढ़ाने के उपाय।
  4. व्यय की गुणवत्ता में सुधार:
    • फालतू खर्चों को कम करना और विकासात्मक परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।

भारत में राजकोषीय समेकन की आवश्यकता:

  1. उच्च राजकोषीय घाटा:
    • भारत का राजकोषीय घाटा GDP का बड़ा हिस्सा है। इसे नियंत्रित करना आवश्यक है ताकि अर्थव्यवस्था स्थिर बनी रहे।
  2. सरकारी ऋण का बढ़ता स्तर:
    • सार्वजनिक ऋण को GDP के 60% के भीतर रखना वित्तीय स्थिरता के लिए आवश्यक है।
  3. महँगाई नियंत्रण:
    • राजकोषीय असंतुलन मुद्रास्फीति (Inflation) बढ़ा सकता है, जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
  4. ब्याज दरों पर दबाव:
    • घाटे को कम करने से ब्याज दरें कम होती हैं, जिससे निजी निवेश को बढ़ावा मिलता है।

भारत में राजकोषीय समेकन के प्रयास:

  1. राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM Act), 2003:
    • यह कानून सरकार को राजकोषीय घाटे और सार्वजनिक ऋण को सीमित करने के लिए बाध्य करता है।
    • FRBM के तहत राजकोषीय घाटे को GDP के 3% तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है।
  2. वित्तीय सुधार:
    • वस्तु और सेवा कर (GST) जैसे सुधारों ने राजस्व संग्रह में पारदर्शिता और स्थिरता लाई।
    • डिजिटल भुगतान और कर अनुपालन में सुधार ने राजस्व बढ़ाने में मदद की।
  3. आर्थिक प्रोत्साहन के साथ समेकन:
    • COVID-19 महामारी के दौरान सरकार ने राजकोषीय समेकन की रणनीतियों को लचीला बनाते हुए अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन पैकेज दिए।
  4. नवीन योजनाएँ:
    • राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP): सरकारी परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करके राजस्व बढ़ाने की योजना।
    • व्यय प्रबंधन आयोग: सरकार के व्यय को कुशल और प्रभावी बनाने के लिए।
  5. मध्यम अवधि का राजकोषीय रोडमैप:
    • भारत ने 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को GDP के 4.5% तक लाने का लक्ष्य रखा है।

FRBM अधिनियम, 2003 (Fiscal Responsibility and Budget Management Act, 2003):

FRBM अधिनियम का उद्देश्य सरकार की वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करना और राजकोषीय अनुशासन को बढ़ावा देना है। इसे भारत सरकार ने 2003 में लागू किया, ताकि राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक ऋण को नियंत्रित किया जा सके और अर्थव्यवस्था को वित्तीय स्थिरता प्रदान की जा सके।

FRBM अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य:

  1. राजकोषीय घाटा कम करना:
    • सरकार को राजकोषीय घाटे को GDP के 3% तक सीमित करने के लिए निर्देशित करता है।
  2. राजस्व घाटा खत्म करना:
    • सरकार को अपने कुल खर्चों को अपने कुल राजस्व से पूरा करने की दिशा में काम करने का प्रावधान।
  3. सार्वजनिक ऋण प्रबंधन:
    • सरकार के कुल ऋण को GDP के एक सुरक्षित स्तर पर सीमित करना।
  4. पारदर्शिता बढ़ाना:
    • सरकार को बजट और राजकोषीय डेटा को पारदर्शी रूप से प्रस्तुत करने की आवश्यकता।

एन.के. सिंह समिति की सिफारिशें (2016):

FRBM अधिनियम में समयानुसार सुधार की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, 2016 में एन.के. सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। समिति ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें दीं:

1. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) का लक्ष्य:

  • लक्ष्य: 2022-23 तक राजकोषीय घाटे को GDP के 2.5% तक सीमित करने का सुझाव।
  • लचीलापन: राजकोषीय घाटे को प्रबंधित करने में थोड़ी लचीलापन की अनुमति दी जाए, जैसे प्राकृतिक आपदा या आर्थिक मंदी के दौरान।

2. सार्वजनिक ऋण (Public Debt) प्रबंधन:

  • सार्वजनिक ऋण का लक्ष्य:
    • केंद्र सरकार का ऋण 2022-23 तक GDP का 40% तक सीमित किया जाए।
    • कुल सरकारी ऋण (केंद्र और राज्य) GDP के 60% से अधिक न हो।

3. राजस्व घाटा (Revenue Deficit):

  • राजस्व घाटे को पूरी तरह समाप्त करने और इसे प्राथमिकता देने की सिफारिश।

4. राजकोषीय नीति के लिए एक नई रूपरेखा:

  • मध्यम अवधि का राजकोषीय रोडमैप:
    • सरकार को तीन वर्षों के लिए एक विस्तृत वित्तीय रोडमैप प्रस्तुत करना चाहिए।
  • राजकोषीय परिषद (Fiscal Council) का गठन:
    • एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना हो, जो सरकार की राजकोषीय नीतियों की निगरानी करे और पारदर्शिता सुनिश्चित करे।

5. राजकोषीय घाटे में लचीलापन:

  • कुछ परिस्थितियों में (जैसे मंदी, युद्ध, या प्राकृतिक आपदा), राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में 0.5% तक का लचीलापन दिया जाए।

6. सामाजिक और पूंजीगत व्यय का संरक्षण:

  • सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढाँचे पर व्यय को बनाए रखते हुए राजकोषीय घाटे को कम किया जाए।

7. उभरती चुनौतियों का समाधान:

  • डिजिटल अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन, और वैश्विक वित्तीय अस्थिरता जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए राजकोषीय रणनीतियाँ बनाई जाएँ।

एन.के. सिंह समिति की सिफारिशों का महत्व:

  1. वित्तीय अनुशासन:
    • सरकार को अपने व्यय और राजस्व के प्रबंधन में अधिक जिम्मेदार बनाना।
  2. आर्थिक स्थिरता:
    • राजकोषीय घाटे और ऋण को नियंत्रित करके भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर और टिकाऊ बनाना।
  3. पारदर्शिता:
    • बजट और वित्तीय योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
  4. सामाजिक और विकासशील व्यय का संतुलन:
    • बुनियादी ढाँचे और सामाजिक कल्याण पर खर्च को बनाए रखना।
  5. वैश्विक निवेश आकर्षित करना:
    • भारत की क्रेडिट रेटिंग में सुधार कर विदेशी निवेश को आकर्षित करना।

राजकोषीय समेकन के लाभ:

  1. आर्थिक स्थिरता:
    • सरकारी व्यय और राजस्व में संतुलन बनाए रखने से अर्थव्यवस्था स्थिर होती है।
  2. मुद्रास्फीति पर नियंत्रण:
    • घाटा कम होने से मुद्रास्फीति नियंत्रित रहती है।
  3. निजी निवेश में बढ़ोतरी:
    • ब्याज दरें कम होने से निजी क्षेत्र को सस्ता ऋण मिलता है।
  4. क्रेडिट रेटिंग में सुधार:
    • नियंत्रित घाटा भारत की क्रेडिट रेटिंग में सुधार करता है, जिससे विदेशी निवेश आकर्षित होता है।
  5. आने वाली पीढ़ियों पर ऋण भार कम करना:
    • सार्वजनिक ऋण कम होने से भविष्य की पीढ़ियों पर बोझ घटता है।

भारत के सामने चुनौतियाँ:

  1. महामारी का प्रभाव:
    • COVID-19 के कारण राजस्व संग्रह घटा और खर्च बढ़ा, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ गया।
  2. सामाजिक कल्याण योजनाओं का दबाव:
    • गरीबी, शिक्षा, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में खर्च बढ़ाने की आवश्यकता।
  3. बुनियादी ढाँचे में निवेश:
    • देश के विकास के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है, जो वित्तीय समेकन में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  4. विकास और समेकन में संतुलन:
    • एक ओर विकास की गति बनाए रखना और दूसरी ओर वित्तीय स्थिरता।
  5. राज्यों का राजकोषीय घाटा:
    • राज्यों का वित्तीय घाटा भी एक प्रमुख चुनौती है।

आगे का रास्ता:

  1. राजस्व संग्रह बढ़ाना:
    • कर आधार का विस्तार और कर अनुपालन में सुधार।
  2. संपत्ति मुद्रीकरण:
    • सरकारी परिसंपत्तियों का बेहतर उपयोग करके राजस्व जुटाना।
  3. डिजिटल तकनीकों का उपयोग:
    • डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर सरकारी योजनाओं और कर संग्रह को पारदर्शी बनाना।
  4. राज्यों के साथ सहयोग:
    • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय से राजकोषीय लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारत का राजकोषीय समेकन एक जटिल लेकिन आवश्यक प्रक्रिया है। यह देश को आर्थिक स्थिरता, विकास, और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है। सरकार को वित्तीय अनुशासन बनाए रखते हुए सामाजिक और बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करना होगा। टिकाऊ आर्थिक विकास के लिए वित्तीय समेकन का रोडमैप सफलतापूर्वक लागू करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।


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