भारतीय सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश: लंबित आपराधिक मामलों के समाधान के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अस्थायी नियुक्ति
पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आपराधिक मामलों के बढ़ते बोझ का निपटारा करने के लिए हाई कोर्ट में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अस्थायी (ad hoc) नियुक्ति का सुझाव दिया। यह कदम भारतीय न्यायिक व्यवस्था में लंबित मामलों के दबाव को कम करने और न्याय तक शीघ्र पहुंच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया है।
2021 में सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 224A के तहत अब तक केवल तीन बार अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है, जिसे एक “निष्क्रिय प्रावधान” (dormant provision) कहा गया।
मुख्य बिंदु
- अनुच्छेद 224A का प्रावधान:
- संविधान का अनुच्छेद 224A उच्च न्यायालयों को सक्षम बनाता है कि वे सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उनकी सहमति से अस्थायी रूप से न्यायिक कार्यों के लिए नियुक्त कर सकते हैं।
- यह नियुक्ति तभी की जा सकती है जब हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश यह महसूस करे कि न्यायालय में लंबित मामलों के बोझ के कारण न्यायिक प्रक्रिया बाधित हो रही है।
- समस्या का दायरा:
- भारतीय न्यायालयों में लाखों आपराधिक मामले लंबित हैं।
- न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या और वास्तविक संख्या में बड़ा अंतर है।
- समय पर न्याय प्रदान न होने से न्यायालयों की विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशें:
- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को अस्थायी आधार पर नियुक्त किया जाए ताकि वे विशेष मामलों, विशेषकर आपराधिक मामलों, को प्राथमिकता के आधार पर निपटा सकें।
- लंबित मामलों की समीक्षा के लिए विशेष बेंच का गठन।
- सभी हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के खाली पदों को शीघ्रता से भरने की प्रक्रिया।
- फायदे:
- लंबित मामलों में कमी और न्यायिक प्रक्रिया में तेजी।
- वरिष्ठ और अनुभवी न्यायाधीशों की विशेषज्ञता का लाभ।
- न्यायपालिका पर जनता का विश्वास बहाल रखना।
- चुनौतियां:
- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की सहमति प्राप्त करना।
- न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तालमेल।
- हाई कोर्ट में उपलब्ध संसाधनों और कार्यक्षमता की कमी।
भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों की स्थिति
- राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार, उच्च न्यायालयों में लाखों मामले लंबित हैं।
- आपराधिक मामलों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है, जिससे न केवल पीड़ित बल्कि आरोपी पक्ष भी प्रभावित हो रहा है।
संवैधानिक और कानूनी महत्व
- न्याय का अधिकार: न्याय का शीघ्र वितरण अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।
- प्रस्तावित कदमों की आवश्यकता: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायिक प्रणाली को सुचारु बनाने और संविधान में दिए गए नागरिक अधिकारों को प्रभावी बनाने के लिए एक सार्थक पहल हो सकती है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह सुझाव भारतीय न्यायिक प्रणाली के सुधार की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। हालांकि, इसे लागू करने में कई व्यावहारिक चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि लंबित मामलों का निपटारा शीघ्रता से हो और न्यायपालिका पर बढ़ते बोझ को कम किया जा सके।
यह पहल न्याय तक पहुंच के अधिकार को सशक्त बनाएगी और संविधान के अनुच्छेद 224A के प्रभावी कार्यान्वयन में एक नई दिशा प्रदान करेगी।
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