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भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति: एक परिचय

भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति: एक परिचय

भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति (Neighbourhood First Policy) एक प्रमुख विदेश नीति है, जिसका उद्देश्य भारत के पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करना, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना, और आर्थिक, सांस्कृतिक, और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करना है। इस नीति का आधार इस विचार पर है कि भारत की सुरक्षा, स्थिरता और विकास उसके पड़ोसी देशों के साथ घनिष्ठ और सकारात्मक संबंधों पर निर्भर करता है।

नीति का उद्देश्य

  1. क्षेत्रीय स्थिरता: दक्षिण एशिया में स्थिरता और शांति सुनिश्चित करना।
  2. आर्थिक सहयोग: व्यापार, निवेश और पारस्परिक विकास के लिए सहयोग को प्रोत्साहन देना।
  3. सांस्कृतिक संबंध: पड़ोसी देशों के साथ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को बढ़ावा देना।
  4. रणनीतिक सुरक्षा: सीमा विवादों को सुलझाना और आतंकवाद जैसी समस्याओं का समाधान करना।
  5. साझा विकास: क्षेत्रीय संगठनों, जैसे सार्क (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC), के माध्यम से साझा विकास की दिशा में काम करना।

पड़ोसी प्रथम नीति के प्रमुख पहलू

  1. सार्क (SAARC): दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
  2. बांग्लादेश के साथ संबंध: जल वितरण, सीमा प्रबंधन, और व्यापार जैसे मुद्दों पर सहयोग।
  3. नेपाल के साथ संबंध: पारंपरिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना।
  4. श्रीलंका के साथ सहयोग: तमिल मुद्दे, मछुआरों की समस्याएं, और रणनीतिक साझेदारी।
  5. भूटान: ऊर्जा परियोजनाओं और सांस्कृतिक संबंधों में सहयोग।
  6. पाकिस्तान: संघर्षों के बावजूद संवाद बनाए रखना।
  7. मालदीव: समुद्री सुरक्षा और पर्यटन क्षेत्र में सहयोग।

नीति की सफलता

भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति के तहत कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हुई हैं, जो निम्नलिखित हैं:

1. आर्थिक सहयोग का विस्तार:

  • बांग्लादेश, नेपाल, और भूटान के साथ ऊर्जा व्यापार में वृद्धि।
  • भारत और नेपाल के बीच पेट्रोलियम पाइपलाइन का निर्माण।
  • बांग्लादेश के साथ व्यापार और निवेश में वृद्धि।

2. सांस्कृतिक आदान-प्रदान:

  • सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा।
  • भारत और भूटान के बीच परंपरागत संबंधों का संरक्षण।

3. रणनीतिक साझेदारी:

  • मालदीव में समुद्री सुरक्षा सहयोग।
  • श्रीलंका में बंदरगाह विकास परियोजनाओं में भागीदारी।
  • बांग्लादेश के साथ “बंगबंधु-1” सैटेलाइट प्रोजेक्ट में सहयोग।

4. सार्क और बिम्सटेक के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग:

  • बिम्सटेक (BIMSTEC) के माध्यम से पूर्वी और दक्षिण एशिया को जोड़ने का प्रयास।
  • क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं में निवेश।

5. आपदा प्रबंधन और सहायता:

  • नेपाल भूकंप (2015) के समय भारत द्वारा त्वरित सहायता।
  • श्रीलंका और मालदीव में चिकित्सा और आपातकालीन सहायता।

नीति की असफलता

हालांकि, “पड़ोसी प्रथम” नीति में कई सफलताएं रही हैं, परंतु कुछ कमजोरियां और चुनौतियां भी सामने आई हैं:

1. पाकिस्तान के साथ संबंध:

  • सीमा पर संघर्ष और आतंकवाद के मुद्दे।
  • कश्मीर समस्या और राजनीतिक संवाद की कमी।

2. चीन की भूमिका:

  • चीन का दक्षिण एशिया में प्रभाव बढ़ना।
  • श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों में चीनी निवेश।
  • नेपाल और मालदीव में चीन की बढ़ती गतिविधियां।

3. आंतरिक राजनीतिक समस्याएं:

  • नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं।
  • श्रीलंका में तमिल मुद्दे।

4. सार्क की अप्रभाविता:

  • सार्क की बैठकें असफल रहना।
  • सदस्य देशों के बीच आपसी संघर्ष।

5. सीमित आर्थिक संसाधन:

  • क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं में धीमी प्रगति।
  • भारत की घरेलू आवश्यकताओं और विदेश नीति की प्राथमिकताओं में संतुलन की कमी।

विस्तार और नई दिशाएं

भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति को नई ऊंचाई देने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:

1. क्षेत्रीय संपर्क को मजबूत करना:

  • सड़क, रेल, और जल परिवहन नेटवर्क का विस्तार।
  • डिजिटल कनेक्टिविटी परियोजनाओं में निवेश।
  • बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के साथ बहुपक्षीय परियोजनाएं।

2. सार्क का पुनरुद्धार:

  • सदस्य देशों के बीच विश्वास बढ़ाने के उपाय।
  • आतंकवाद और व्यापार जैसे मुद्दों पर संयुक्त मंच तैयार करना।

3. चीन का मुकाबला:

  • पड़ोसी देशों में अधिक रणनीतिक और आर्थिक निवेश।
  • भारत-अमेरिका, भारत-जापान जैसी साझेदारियों का लाभ उठाना।
  • चीन के “बेल्ट एंड रोड” परियोजना का विकल्प प्रदान करना।

4. नवीनतम तकनीकी सहयोग:

  • सौर ऊर्जा, कृषि तकनीक, और स्मार्ट शहरों के विकास में सहयोग।
  • डिजिटल इंडिया पहल को पड़ोसी देशों तक विस्तारित करना।

5. सामाजिक-सांस्कृतिक संपर्क:

  • शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग।
  • छात्र और पेशेवरों के लिए आदान-प्रदान कार्यक्रम।

नीति की समीक्षा और सुधार

भारत को अपनी विदेश नीति के कार्यान्वयन की समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिए। इसके तहत:

  1. पड़ोसी देशों की प्राथमिकताओं को समझना: उनकी आर्थिक और राजनीतिक जरूरतों का आकलन करना।
  2. स्थानीय स्तर पर प्रभाव बढ़ाना: भारत की नीति को सिर्फ सरकार तक सीमित न रखकर, जनता तक पहुंचाना।
  3. तेज निर्णय प्रक्रिया: परियोजनाओं की समय पर पूर्ति सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष

भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति एक महत्वाकांक्षी और आवश्यक नीति है, जो दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता, और विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। हालांकि, इस नीति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि चीन का बढ़ता प्रभाव, पाकिस्तान के साथ संबंधों में जटिलता, और क्षेत्रीय संगठनों की अप्रभाविता। इन चुनौतियों का समाधान करते हुए भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ दीर्घकालिक और सतत् संबंध बनाने पर ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त, क्षेत्रीय सहयोग को नई दिशा देने के लिए एक मजबूत, प्रगतिशील और सहभागी दृष्टिकोण अपनाना होगा।


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